लखनऊ । सरकारी स्कूलों के बच्चे नये सत्र से अब सही राष्ट्रगान पढ़ेंगे। राजकीय प्रकाशन की पुस्तकों के पिछले पृष्ठ पर साल-द साल प्रकाशित होते आ रहे राष्ट्रगान में 'सिंधु' शब्द के स्थान पर अब 'सिंध' शब्द होगा। प्रदेश के सरकारी व सहायता प्राप्त प्राथमिक व जूनियर स्कूलों के करीब सवा दो करोड़ बच्चों को मिलने वाली निरूशुल्क पुस्तकों में सालों से राष्ट्रगान में 'सिंधु' शब्द छपता आ रहा है। बच्चे राष्ट्रगान का पाठ करते हुए 'पंजाब, सिंधु गुजरात, मराठा ' बोलते रहे हैं परंतु अब इसमें संशोधन कर लिया गया है। अब बच्चे पंजाब के साथ सिंध पढ़ेंगे। सर्व शिक्षा अभियान के पाठ्यपुस्तक अधिकारी कार्यालय से बताया गया कि 15 जून के बाद आ रही नई पुस्तकों के पीछे वाले पृष्ठ पर अब संशोधित राष्ट्रगान रहेगा। राज्य शिक्षा संस्थान ने 2014 में प्रमाण सहित सिंधु के स्थान
पर सिंध करने का प्रस्ताव पाठ्यपुस्तक अधिकारी को भेजा था। प्रस्ताव में भारत
सरकार के प्रकाशन विभाग की ओर से 'भारत-2014 का हवाला दिया गया था। भारत-2014
में सही राष्ट्रगान छपा है। इससे पहले 2009 में पुस्तकों की समीक्षा के दौरान इस
पर चर्चा में आए सुधार के प्रस्ताव पर राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद (एससीईआरटी)
ने इस बाबत प्रमाण मांगे थे। उस समय भी 'सिंधु' के स्थान पर 'सिंध' शब्द होने के
प्रमाण दिए गए थे परंतु संशोधन न हो सका। शिक्षा विभाग की ओर से रिकार्ड की जांच
करने पर 2001 से त्रुटिपूर्ण राष्ट्रगान प्रकाशित किए जाने की पुष्टि हुई है।
सिंधु को सिंध करने के पीछे तर्क किताबों में प्रकाशित राष्ट्रगान की संबंधित पंक्ति 'पंजाब, सिंधु, गुजरात मराठा' में सिंधु नदी का
नाम है जबकि पंजाब व मराठा प्रदेश हैं। तर्क है,प्रदेशों के बीच
नदी के नाम का क्या औचित्य हो सकता है? राष्ट्रगान से जुड़े पांच सच 24 जून 1919 को कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में गीत को
बंगाली व हिंदी में गाया गया था। पहली बार
यह गान 1932 में ब्रह्म समाज की पत्रिका 'तत्ववोधिनी' में प्रकाशित हुआ।
गुरुदेव टैगोर ने इसे बांगला भाषा में रचा था।
गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगौर के इस गान को 24 जून 1950 की संविधान सभा में
राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया था। मूल गान में कुल पांच पद हैं परंतु उसे
वर्तमान स्वरूप में ही राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया। गाये जाने वाले
राष्ट्रगान के गायन में कुल 52 सेकेंड का समय लगता है। |