(04/11/2012) 
कैथल में लगा सरस मेला, लोगों को लूभा रही है हस्त शिल्पि कला.
राष्ट्रीय स्तर के सरस मेले में हस्त शिल्पियों की कला के उत्कृष्ट नमूनों को देखने के लिए जाट स्कूल के मैदान में मानो मिनी भारत सिमट आया है। कैथल और उसके आस-पास के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के अलावा दूसरों प्रदेशों के लोग भी इन हस्त शिल्पकार, दस्तकार व मूर्तिकारों के सधे हुए हाथों से बने सामान को देख जहां सराह रहे हैं, वहीं खरीददारों की भी कमी नही है।

?एक तरफ इस आकर्षक सामान के स्टाल सभी को मेला परिसर में प्रवेश करते ही अपनी ओर खींच लेते हैं तो दूसरी ओर प्रशासनिक मंच के दाईं तरफ लजीज व्यंजनों की महकी खूशबू हर आने जाने वालों को इनका स्वाद चखने के लिए मजबूर कर रही है। यहां दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश से आए दुकानदार अपने-अपने क्षेत्र के खाने-पीने के सामान सजाकर लोगों की भूख-प्यास को अपने स्वादिष्ट व्यंजनों से मिटाने का काम भी कर रहे हैं। कैथल शहर में पहली बार गगन चंूबी एवं घड़ीनूमा झुले भी कम आकर्षक नही हैं, यहां दिनभर तो इनका आनंद लेने वालों की भीड़ जमी रहती है, वहीं सायं कालीन सत्र के शुरू होते-होते और सरस मेले के रात्रि के दौरान चमचमाती रोशनी के बीच यह झुले अलग ही नजारा दूसरे से प्रस्तुत करते हैं। यहां रात के समय दृश्य देखते ही बनता है। अभिभावक अपने काम-काज से मुक्त होकर सायं कालीन सत्र में अपने बच्चों के साथ न केवल सामान खरीदते हैं, अपितू उन्हें झुलों का असीम आनंद भी दिलवाते हैं। इन सबसे ऊपर प्रतिदिन की सायं कालीन सांस्कृतिक संध्या देश की विभिन्न कला संस्कृतियों को समर्पित रहती है। इस मंच के माध्यम से स्थानीय दर्शक देर रात तक बैठकर हरियाणवी, पंजाबी, हिंदी, राजस्थानी संगीत का आनंद लेते दिखाई देते हैं। इस सांस्कृतिक मंच पर मानों देश की अलग-अलग संस्कृतियां सायं कालीन सत्र में मिलन करने के लिए उतर आती हैं। इस सरस मेले को जहां अपनी भव्यता, आकर्षण और देश भर के कलाकारों की अनूठी कलाकृतियों के लिए याद किया जाएगा, वहीं यह सांस्कृतिक मंच अलग-अलग संस्कृतियों की मिलन स्थली के रूप में भी सभी के जहन में एक अहम स्थान बनाने में कामयाब रहेगा। मेले के बीचों-बीच बनाए गए दो बड़े पंडालों में उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर से आए हस्त शिल्पियों द्वारा तैयार शीशम, आम की लकड़ी तथा रो टायरन फर्नीचर व लकड़ी का फर्नीचर भी अच्छी कीमत अदा करने वाले खरीददारों की पहली पसंद बन चुका है। लोग इस फर्नीचर को देखकर इसे अपने ड्राईंग रूम और बैड रूम में सजाने का सपना संजो लेते हैं और जो इनकी कीमत अदा कर पाता है उनकी कल्पनाएं साकार भी हो जाती हैं। देश के अलग-अलग जिलों से डीआरडीए के माध्यम से लगाए गए स्टाल जहां गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की मेहनत से बनाए गए सामान को दर्शा रहे हैं, वहीं डीआरडीए कैथल के माध्यम से गांव रोहेड़ा के जय जगदम्बे स्वयं सहायता समूह और नरड़ के समूह द्वारा भी बनाया गया हैंडलूम व हथकरघा सामान भी कहीं दूसरे जिलों से कमतर नही दिखाई दे रहा है। इसी तरह भागल का दर्द निवारक तेल बेचने का नुस्खा भी मेले में आने वालों के लिए कारगर होता दिखाई दिया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सरस मेला संभव संस्था के विरासत स्टाल से शुरू होकर खाने-पीने के लजीज व्यंजनों से होता हुआ नरेश कुमार की गोहाना की मशहूर जलेबी का स्वाद चखते हुए सुंदर फर्नीचर के बारास्ता सांस्कृतिक मंच तक पहुंचता है और उस पर आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मीठी स्मृतियां लेकर आने जाने वाले सैलानी एक विशेष जुनून में इस मेला परिसर को छोड़ते हैं। यह सरस मेला उनके दिलों में अपनी छाप छोड़ जाता हैं।?
कैथल, से ?राजकुमार अग्रवाल?की रिपोर्ट....
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