(18/02/2016) 
"रंगमंच में हम नाटको के रूपक अपने जीवन से ही बनाते है": डॉ चंद्रशेखर कम्बार
नई दिल्ली : मास्टर क्लास श्रृंखला के आखरी सत्र में ,पद्मश्री डॉ चंद्रशेखर कम्बार ने, 18 वें भारत रंग महोत्सव के दौरान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के बहुमुख सभागार के मंच को सुशोभित किया। डॉ कम्बार एक प्रमुख कवि, नाटककार, निर्देशक और फोल्कोरिस्ट है। उन्होंने 25 नाटकों, कविता की 11 संकलन, 5 उपन्यासों और 16 शोध कार्य लिखें।

रंगमंच के क्षेत्र में अपनी यात्रा साझा करते हुए, डॉ कम्बार ने कहा, " भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष और राजनीतिक अशांति के दौरान हमने अपनी कलात्मक स्वभाव को खो दिया था। " कम्बार भारतीय संदर्भ में आधुनिक रंगमंच का भी ज्ञान रखते है। आधुनिक रंगमंच के मूल्य के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, "हमारे क्षेत्रीय अनुवाद में 13 शेक्सपियर है।" लोक रंगमंच पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कम्बार ने व्यक्त किया, "लोक रंगमंच में दर्शकों की भागीदारी की जरूरत है , न केवल अभिनेताओं। लोक रंगमंच आधुनिक रंगमंच के मुक़ाबले परिष्कृत नहीं है, लेकिन अभिनेता दर्शकों में से ही उभरते है।" जब रंगमंच और साहित्य के बारे में चर्चा की गई , क्म्बार ने रंगमंच और साहित्य के व्यावहारिक संदर्भ के बारे में कहा, " जब साहित्य और रंगमंच एक सही सामंजस्य में जोड़ते है, तब नाटक बनता है।"
कला के मूल्य पर जोर देते हुए कम्बार ने कहा, "रंगमंच में हम नाटको के रूपक अपने जीवन से ही बनाते ।"
कम्बार ने दर्शकों की मांग पर प्रार्थना गीत की उनकी कृतियों का पाठ किया। "मीट दी डायरेक्टर्स में कल की प्रस्तुति: प्रोतारक ( संदीप भट्टाचार्य ), दी वाइल्ड ( थॉम पास्कुली ) और टार आया ( पांडु रंगा) के निर्देशक अन्तरमुख में उपस्थित हुए। निर्देशकों ने नाटक खेलने के पहलुओं के बारे में दर्शकों के साथ बातचीत की।
प्रस्तुति के व्यवहार की व्याख्या करते हुए अमेरिका से आये निर्देशक थॉम पास्कुली ने कहा, " मेरा नाटक  एक प्रयोगशाला प्रस्तुति है। यह एक विल्डरनेस प्रकृति है। पूर्वाभ्यास कक्ष अराजकता के लिए भी अनुमति देता है।"
एनएसडी डिप्लोमा प्रस्तुति टार आया के निर्देशक पांडु रंगा ने कहा, " दलित साहित्य कि हमेशा से उपेक्षा की गई है ।एक दलित लेखक द्वारा लिखी गयी कहानी के रूपांतरण के माध्यम से, मैं उनकी महत्तवता को उजागर करना चाहता हूँ। "
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