(14/03/2016) 
आम आदमी और विजय माल्या में फर्क क्यों?
देश भर में पिछले कुछ दशकों में राजनैतिक मजबूरी का खामियाजा जनता को भरपूर रूप से चुकाना पड़ा है। चाहे ललित मोदी प्रकरण ले या विजय माल्या, सुरेश कलमाड़ी या ए राजा और कनिमोड़ी । इन सभी को किसी ना किसी मजबूरी के चलते सरकार के करीब लाया गया या उनसे कोई फायदा लेने की चाह में। सफेदपोशो के निजी फायदों के चलते नौकरशाहों, प्रॉपर्टी के दलालो, औद्योगिक घरानों के मुखिया को फायदा पहुँचाने के मामले राजस्थान, गुजरात, हरियाणा , महाराष्ट्र , मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में सामने आते रहे हैं। इन सभी मामलो में भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और अन्य दलो की सरकारें रही है। जो पार्टी विपक्ष में रही उसने खूब हल्ला मचाया और सत्तासीन पार्टी ने जैसे कान मूँद कर मुंह पर फेविकोल का मजबूत लेप लगा लिया हो। ऐसा लेप जिसे अच्छे से अच्छा न खोल पाये।

लेकिन आज बात करोडो रुपयों को डकार कर देश से भाग चुके विजय माल्या की करें तो यह मामला केवल उसके भागने भर का नहीं  है। एक शख्स तमाम बैंको से लोन लेकर खुलेआम अय्याशी करता है। यही नहीं राजनैतिक दलों और मीडिया तक को खिलाने पिलाने का दावा भी करता है। ऐसे में देश में गरीब किसान के बैंक की ज्यादती से आज़िज आकर आत्महत्या की खबर झकझोर देने वाली है।
आज समाज में बड़े छोटे, अमीर गरीब का अंतर खाई का रूप लेता ही जा रहां है। आम धारना यह भी बनती जा रही है कि कानून केवल गरीब के लिए ही बने हैं। अमीर का कानून कुछ नहीं बिगाड़ पाता। ललित मोदी और विजय माल्या मामले ने यह बात सिद्ध कर भी दी है। केंद्रीय अन्वेक्षण ब्यूरो का रवैया विजय माल्या मामले में दोयम दर्जे का रहा ये सबने देखा। मीडिया तक को औकात बताने वाले विजय माल्या की न्यूज हर खबरिया चैनल की सुर्खी बनी। लेकिन क्या मीडिया पर उठे इस सवाल को दरकिनार किया जाना चाहिए। साथ ही राजनैतिक दलों के साथ विजय माल्या के संपर्क और रिश्तों के बिना राज्यसभा सांसद बनने का रास्ता कैसे साफ़ हो सकता था इस तथ्य को भी नजरअंदाज करना वाज़िब नहीं होगा।

विजय माल्या तो भाग गया। अब इस मुद्दे पर खूब राजनीति हो रही है और होगी भी, मगर उसका कुछ बिगड़ेगा ये कम ही लगता है। लेकिन अगर कोई गरीब आदमी गलती से बेटी के ब्याह के लिए कर्ज ले ले तो बैंक उसका खून तब तक चूसता रहेगा जब तक कि उसकी सांस न निकल जाए। लेकिन माल्या मामले में बैंक भी सेटिंग में शामिल हों इससे इंकार नहीं किया जा सकता। नौ हज़ार करोड़ की कर्ज की राशि के लिए बैंक का रवैया कैसा होना चाहिए उसके लिए एक उदाहरण ले सकते हैं। दिल्ली सचिवालय में कार्यरत एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने सिंडिकेट बैंक से मकान बनाने के लिए दो लाख रूपये कर्ज पर ले लिए और उसके कुछ दिन बाद उसकी मौत हो गई। लेकिन इस मामले में जिन दो अन्य कर्मचारियों ने लोन गारंटी के रूप हस्ताक्षर किये बैंक ने उन्हें अदालत में घसीट लिया। जिला न्यायायल तीस हज़ारी से दोनों कर्मचारियों को राहत नहीं मिली क्योंकि उक्त दोनों कर्मचारियों ने लोन की गारंटी पर हस्ताक्षर जो कर दिए थे। उसके बाद दोनों कर्मी दिल्ली उच्च न्यायलय पहुंचे और तर्क दिया कि जिसने लोन लिया था उसकी बीवी को क्षतिपूर्ति के रूप में दिल्ली सरकार ने सरकारी नौकरी दे दी है लिहाजा लोन राशि उसकी बीवी ही दे। लेकिन बैंक ने अड़ियल रुख बनाया हुआ है कि उक्त दोनों कर्मी ही ये राशि अदा करें।

अब इस मामले को विजय माल्या मामले से जोड कर देखें और बताएं कि क्या क़ानून केवल गरीब आदमी के लिए है? क्या बैंक अधिनियम में वे दो कर्मचारी जिन्होंने लोन गारंटी दी थी और विजय माल्या में केवल यही फर्क है की एक गरीब और एक बिगड़ैल रईश ।  अगर विजय माल्या की पहचान पर नजर डालें तो वह किंगफिशर के मालिक है।  उन पर भारत के विभिन्न बैंकों का करीब 9000 करोड़ रुपए का कर्ज है। माल्या नए साल और दीवाली पर अपने VIP दोस्तों समेत तमाम सांसदों को गिफ्ट भेजते हैं। गिफ्ट के तौर पर वे अपनी कंपनी की महंगी शराब, स्नैक्स और किंगफिशर कंपनी का कैलेंडर भेजते रहे हैं। मप्र के एक सांसद को भी एक बार उन्होंने गिफ्ट भेजे थे, लेकिन बात बिगड़ गई थी।
सांसद प्रभात झा के मुताबिक साल 2009 में वे पहली बार म.प्र से राज्यसभा सांसद बने थे। दीवाली के दौरान उन्हें देशभर से शुभकामनाओं के पत्र आ रहे थे। इसी दौरान उन्हें बंगले पर एक बॉक्स आया। इस पर भेजने वाले का नाम विजय माल्या किंगफिशर लिखा हुआ था। वे माल्या के नाम से भली-भांति परिचित थे। अपनी  क्रिकेट टीम, एयरलाइन्स और होटल्स के शौकीन विजय माल्या आज देश से बाहर अपने रसूकों के चलते साफ़ निकल गए हैं और अब केवल लकीरे ही पीटी जा रही है।
सोचना हमें और आपको है कि क्या देश में राजनैतिक दल अमीर और गरीब के बीच समानता बनाने की इच्छाशक्ति रखते हैं। मूल रूप से कहा जाए तो हर चीज आज बिकाऊ नज़र आती है। जिसको आप इस कविता के माध्यम से भी समझ सकते हैं  
 

इस रंग बदलती दुनियाँ में सब कुछ  बिकता है  और सब खरीदा जाता है । 
जिसको चाहा हो चाहत से ज्यादा अक्सर वही तो रुलाता है ॥ 

कहते थे जो  हमारी  परछाई  खुद  को, भूल गये हम यारो  वक़्त आने पर साया भी साथ छोड़ जाता है।
जरुरतों पर टिकी है  दुनियाँ  सारी, भाई जहाँ भाई के खून का प्यासा हो जाता है छोटी छोटी बातों पर घर टुकडों में बँट जाता है ॥ 

रोज़ रोज़ के कलह से हर माँ का कलेजा मुँह को आता है लेकिन बेटा तो बेटा है उसको कहाँ कुछ समझ में आता है । 
पैसे की महिमा के आगे सब बौना हो जाता है , रिश्तों की अहमियत आज हर कोई भूलता ही जाता है ॥ 

हद हो जाती है तब जब  कहीँ  बहू  सास  को नौकरानी तो कहीँ बेटा बूढे बाप  को नौकर बताता है। 
कहीँ महबूबा के इंतजार में मर मिटता है आशिक और कहीँ आशिक बना  कर वीडियो गर्लफ्रेंड का बाजार में सस्ते में बेच जाता है ॥

कहीँ मारी जाती है बेटी दहेज की खातिर जिस बेटी की खातिर बाप किडनी तक बेच जाता है।  सौदा हो गई है ये इश्क की बीमारी जहाँ हर कोई नया भाव लगाता है ॥ 

रिश्तों के इस मकडजाल में फँस कर रह गया इंसान जहाँ, अपना ही अपनो को हवस का शिकार बनाता है ।
दामिनी को देंगे क्या इंसाफ ये  दुनियाँ वाले जहाँ हर रोज़ एक लड़की का दामन नोंचा जाता है ॥
माफ करना सागर ऐसे तो दिल मेरा भर आता है ।

हवा हो रही शिक्षा की महिमा जहाँ छात्र शिक्षक के लिये पैग बनाता है । 
शिक्षक और छात्र में देखा अजब कॉम्पिटिशन सागर , कौन सिगरेट के धुएँ का छल्ला बनाता है, देख गोलमाल ऐसा गला रुंध सा जाता  हैं ॥

जिम्मा जिन पर सुरक्षा का मुल्क की, अक्सर वो फौजी राजनीति की भेंट चढ़ जाता हैं । 
इजाजत मिलती नही फायर की लेकिन दुश्मन सर तक इनका ले जाता है ॥ 

सब कुछ झुक गया गंदी राजनीति कदमो तले , जब  सोते लोगों पर दिल्ली  में लट्ठ चल जाता हैं  । 
चुनाव आते ही सफेद बिरादरी से जग सारा सफेद सफेद हो जाता है, वादों से इनकी आम इंसान बस मंत्र मुग्ध हो जाता है  ॥ 

मिल गया बहुमत अगर बस काम इनका बन जाता है  । 
वरना सांसद , विधायक खरीदने का खेल शुरू  हो जाता  है  ।। 

बौनी  हो  गई  संविधान की  वेदी , सब सफेदपोशो को भेंट चढ़ जाता है  । 
जब जब चला कोर्ट का चाबुक इन पर , बच निकलने का संसद में कानून नया बन जाता है  ॥ 
धरे रह गये एक्ट सारे जब नेता रंग में आता है । 

जान बचाने की खातिर जब मरीज बेचारा  अस्पताल तक आता है । 
भगवान का दर्जा पाये डॉक्टर इंसानियत तक भूल जाता है ॥ 
सौदा होता देख हॉस्पिटल में लाशों पर आँसू आँखों से सागर लुढक ही आता है  । 
लगा कर ऑक्सिजन लाश  पर मरीज की लाखों का चैक बन  जाता है ।। 
हद हो जाती है तब जब एक नौसिखिया बेच बेच किडनी गरीबों की खुद किडनी किंग बन जाता है । 

कितना सच्चा हो या को कितना भी झूठा , कौन वकील किसको बचाता है  । 
ये सब निर्भर है कितना भारी भुगतान कर पाता है  ॥ 

मर्यादा होती है तार तार जब कानून की देवी की आँखों पर पट्टी बँधी देख , हर कोई अंधा हो जाता है । 
अदालत के बहार होता है गवाहों का सौदा , जहा अदालत तमाम सबूतों और गवाहों की रोशनी मे फ़ैसला सुनाता है ॥ 
एक बेगुनाह चढ़ता जब फाँसी पर घर में उसके सन्नाटा  पसर  जाता है । 
कुछ इस तरह उन सभी गवाहों और सबूतों की रौशनी में  फाँसी पर उसका पूरा परिवार चढ़ जाता है ॥ 
और अगले दिन एक नये केस के साथ वकील साहब अदालत  में पेश हो जाता है । 

तार तार होती देखी गरिमा औरत की जब भँवर में भँवरी के मदेरना फँस जाता है  । 
एक सीडी से पूरा  राजस्थान हिल जाता है ॥ 
खबरों की मारधाड़ में आम आदमी खो जाता है तरस आता है। 
खुद पर जब यह तंत्र भी बिक जाता है । 
 खबरों की आपाधापी में एक ऐंकर खुद को  प्रधानमंत्री कह जाता है । 
 औरों पर उठा उठा कर उँगली खुद का अस्तितिव ढूँढ नहीँ पाता है ॥ 
लाज शर्म की बात कहाँ जब पैसा बाप बन जाता है । 

लिखने वाला कुछ भी लिख लें , पढ़ कर आप जैसा महानुभाव आगे बढ़ जाता है । 
मगर मेरे यारो सागर का यहीं काम ख़त्म नही हो जाता है  ॥ 

इसलिये ही तो कहता है सागर
इस रंग बदलती दुनियाँ में सब कुछ  बिकता है  और सब खरीदा जाता है॥ 

सागर शर्मा
ब्यूरो रिपोर्ट
समाचार वार्ता
नई दिल्ली
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