(18/03/2016) 
सियासत की मंडी में भारत रत्न की नीलामी
हिंदुस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न सियासतदानों के लिए अपनी सियासी दुकान चमकाने व वोट बटोरने का जरिया बन गया है। देश में इन दिनों अपने अपने सियासी फायदे के हिसाब से भारत रत्न की मांग व अपने अपने समुदायों के लिए आरक्षण की मांग करना नेताओं का प्रिय शगल बन गया है। ये दो मुद्दे ऐसे ही जिन्हें कभी भी उठाया जा सकता है।

हालांकि 2 जनवरी 1954 को जब तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने इस अलंकरण की स्थापना की थी तो इस सम्मान को मरणोपरांत देने का प्रावधान नहीं किया गया था। लेकिन बाद में सरकारों ने इसे अंधा बांटे रेवड़ी, पूछ पूछ के दे, की तर्ज पर अपने हिसाब से इस सम्मान को देने की प्रक्रिया शुरू कर दी। सत्ता में आने वाला हरेक दल अपने अपने चहेतों को ही देश के इस सर्वोच्च नागरिक अलंकरण के लायक समझता है। सबसे ताजा मामला कांशीराम का है। बेशक, कांशीराम ने दलितों में राजनीतिक चेतना जगाई। उन्हें लोकतंत्र में उनके वोटों की कीमत बताई यह भी सही है लेकिन सिर्फ यही आधार भारत रत्न सम्मान के लिए मानक बना दिया जाएगा फिर तो गुरु गोलवलकर व डॉ. हेडगेवार से लेकर एमजी रामचंद्रन तथा चौधरी देवीलाल तक हजारों नामों को भारतरत्न देने की मांग उठने लगेगी। 
बहरहाल, बसपा संस्थापक को भारत रत्न देने की मांग दो छोरों से की गई है। एक तो कांशीराम की विरासत पर राज कर रहीं यूपी की पूर्व सीएम व बसपा सुप्रीमो मायावती की तरफ से और दूसरा अभी हाल ही में सियासत की गंदगी को सियासी कीचड़ से साफ करने के लिए सियासत के दलदल में उतरे आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरफ से। दरअसल, केजरीवाल को पंजाब में चुनाव लड़ना है इसलिए कांशीराम को भारत रत्न देने की हवा देने से उनको सियासी फायदा हो सकता है। वहीं अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं तो मायावती को भी दलित सेंटिमेंट का फायदा होगा। एक बात तो तय है कि समय की नजाकत को देखकर ही भारत रत्न और आरक्षण के मुद्दे गर्म होते हैं। चूंकि 15 मार्च को बसपा संस्थापक मान्यवर कांशीराम का जन्मदिन था, सो इस दिवस को अपनी अपनी सियासत चमकाने के लिए इन दोनों नेताओं को अच्छा अवसर दिखा। सो, कर डाली कांशीराम को भारत रत्न देने की मांग। दरअसल, कांशीराम को भारत रत्न देने की मांग केजरीवाल ने पंजाब चुनाव को ध्यान में रखकर की है। कांशीराम के जन्म दिवस पर कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर के बुलावे पर उनके पैतृक गांव बुंगासाहिब पहुंचकर केजरीवाल ने उनके लिए भारत रत्न की मांग की। केजरीवाल ने बसपा संस्थापक को डॉ. भीमराव अम्बेडकर के काम को आगे बढ़ाने वाला निरूपित करते हुए दावा किया कि आजादी के पश्चात साहिब कांशीराम ने दलितों के उत्थान के लिए जितना काम किया है उतना शायद किसी ने भी नहीं किया। डॉ. अम्बेडकर के सपनों को साकार करने के लिए कांशीराम जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे। उन्होंने मांग की कि बसपा के संस्थापक कांशीराम को दलित समुदाय के उत्थान की दिशा में अमूल्य योगदान को ध्यान में रखते हुए भारत रत्न से नवाजा जाए। दिल्ली के सीएम यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने वादा किया कि बसपा संस्थापक को भारत रत्न की मांग को लेकर उनकी पार्टी के सांसद भगवंत मान संसद के भीतर आवाज उठाएंगे तथा वे सदन के बाहर। 
यही नहीं दलितों का समर्थन पाने के लिए उन्होंने कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर को बुआजी का संबोधन देते हुए सपरिवार दिल्ली आने का आमंत्रण भी दे दिया। दिल्ली के सीएम को लग रहा है कि पंजाब चुनाव जीतने में यह तुरुप का इक्का उनके काफी काम आएगा। तो दूसरी तरफ कांशीराम की विरासत पर काबिज मायावती इसे यूपी चुनाव में भुनाने की फिराक में हैं। चूंकि इसी दौरान संसद का बजट सत्र चल रहा था सो उन्होंने भी बगैर देर किये राज्यसभा में मान्यवर कांशीराम को भारत रत्न देने की मांग कर डाली। मायावती के मुताबिक कांशीराम हमेशा दलित, शोषित और पीड़ितों के लिए काम करते रहे और उन्होंने संविधान निर्माता बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर के अधूरे कार्यों को आगे बढ़ाया। उन्होंने बसपा के संस्थापक को भारत रत्न से सम्मानित करने की पूरजोर मांग की। यही नहीं, इसके बाद कांशीराम के जन्मदिवस पर रोपड़ में आयोजित एक जनसभा में मायावती ने खुद को कांशीराम की असली वारिस बताते हुए दावा किया कि साहिब ने बहुत सोच समझकर उन्हें पार्टी की कमान सौंपी थी। बसपा सुप्रीमो ने कहा कि समाज के लिए किए गए कांशीराम के बलिदान को ध्यान में रखते हुए उन्हें तत्काल भारत रत्न सम्मान से नवाजा जाना चाहिए। उधर, मायावती से भन्नाई कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर ने तल्ख तेवर अपनाते हुए मायावती पर  साहिब कांशी राम के सपने को ध्वस्त कर देने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनके भाई ने दलित उत्थान का जो सपना देखा था उसे मायावती ने अपनी राजनीतिक लालसा के लिए मटियामेट कर दिया।
बहरहाल, देश के इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए तय मानकों के मुताबिक इसे जीवित व्यक्तियों को ही देने का प्रावधान था। किंतु इसे सियासी फायदे के लिए एक औजार की तरह इस्तेमाल करने वाले सियासत के शातिर खिलाड़ियों ने इस सम्मान की आत्मा को ही मार डाला है। पिछले कई सालों से इस सम्मान को मृत व्यक्तियों को देने का विरोध हो रहा है। बावजूद इसके सियासी लाभ के लिए लगातार इसे रेवड़ी की तरह बांटा जा रहा है। अभी पिछले साल ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पं. मदन मोहन मालवीय को मोदी सरकार ने मरणोपरांत इस सम्मान से नवाजा है। इसे लेकर कुछ हलको से सवाल भी उठे। कहा गया कि चूंकि बनारस पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है इसलिए मालवीय जी को भारतरत्न सम्मान से नवाजा गया।
ऐसे में समय का तकाजा है कि सरकार सर्वोच्च सम्मान के मानक दोबारा से तय करे। मानकों के हिसाब से तय किया जाना चाहिए कि आखिर भारत रत्न किसे और क्यों दिया जाए। सिर्फ मांग के आधार पर यह सम्मान नहीं देना चाहिए। यहां एक गौर करने वाली बात है कि मरणोपरांत किसी को भारत रत्न देने का क्या तुक है? इस सर्वोच्च सम्मान का सम्मान तब और ज्यादा बढ़ता जब किसी जीवित व्यक्ति को दिया जाए। ताकि वह जीते-जी इस सम्मान की गरिमा का एहसास कर सके। रही बात मायावती व केजरीवाल की, तो दोनों को ही कांशीराम से कोई लेनादेना नहीं है। उन्हें तो बस इस बहाने सियासी फायदा चाहिए। सवाल पूछा जाना चाहिए केजरीवाल से कि अन्ना आंदोलन के दौरान उन्होंने क्यों नहीं यह मांग उठाई। पंजाब चुनाव के समय ही उन्हें भारत रत्न की याद क्यों आई क्या इससे पहले उनकी अंतरात्मा सो रही थी। साफ सुथरी राजनीति करने का सब्जबाग दिखाकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए केजरीवाल अपना रास्ता भटक चुके हैं। उन्होंने खुद को अन्य राजनीतिक दलों की जमात में शामिल कर लिया है। उनका एकमात्र काम रह गया है हर बात पर पीएम मोदी को कोसना। इसी तरह दलितों के नाम पर करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर राजसी ठाटबाट अपनाने वाली मायावती के लिए भी दलित उत्थान महज एक शब्द भर बनकर रह गया है।  खैर, कांशीराम के लिए भारत रत्न की मांग करने वालों के लिए सवाल तो हजारों हैं लेकिन जवाब एक भी नहीं। कांशीराम के इन शुभचिंतकों से इतना कहना काफी होगा कि पहले उनके द्वारा दलितों के लिए देखे गये सपने को पूरा करने की कोशिश करें। बाद में सियासी मंडी में भारत रत्न की बोली लगाएं।

बद्रीनाथ वर्मा
Copyright @ 2019.