(20/03/2016) 
सीमा रेखा लांघती अभिव्यक्ति की आजादी
देश में इन दिनों अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जो कुछ चल रहा है वह वाकई चिंतनीय होने के साथ निंदनीय भी है। मोदी व भाजपा विरोध अब अपनी सारी सीमाएं लांघते हुए राष्ट्रविरोध की हद तक पहुंच गया है।

जेएनयू से शुरू हुआ राष्ट्रविरोधी नारों का यह सिलसिला एआईएमआईएम अध्यक्ष असादुद्दीन ओवैसी के भारत माता की जय नहीं बोलने जैसी हठधर्मिता अख्तियार कर रहा है। बावजूद इसके दादरी कांड को लेकर आसमान सर पर उठा लेने वाली सेक्यूलर जमात के मुंह पर ताले जड़े हैं। अगर इसके खिलाफ कहीं से कोई आवाज उठी भी तो इस जमात की तरफ से अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला करने वाला संघी करार देने में जरा भी विलंब नहीं किया गया। जाहिर है पीएम मोदी व भाजपा के अंधविरोध में सारी नैतिकता ताक पर रख दी गई है। महाराष्ट्र के लातूर जिले के उडगीर में आयोजित एक सभा में ओवैसी का यह कहना कि वह भारत माता की जय नहीं बोलेंगे। चाहे मेरे गले पर चाकू लगा दो पर मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा। आप क्या कर लेंगे। आखिर ओवैसी का यह बयान अभिव्यक्ति की आजादी की किस श्रेणी में आता है। ओवैसी का यह बयान संघ प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान के बाद आया जिसमें उन्होंने जेएनयू प्रकरण को लेकर कहा था कि नई पीढ़ी को भारत माता की जय बोलना सीखाना होगा।
ओवैसी का हठ देखिए। उन्होंने कहा कि मैं भारत में रहूंगा पर भारत माता की जय नहीं बोलूंगा। क्योंकि यह हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि भारत माता की जय बोलना जरूरी है। चाहे तो मेरे गले पर चाकू लगा दीजिए, पर भारत माता की जय नहीं बोलूंगा। इसकी आजादी मुझे मेरा संविधान देता है। हालांकि वह यह भूल गये कि संविधान में न तो चार-चार शादियां करने का जिक्र है और न ही बीच सड़क पर बैठकर नमाज पढ़ने का। बावजूद इसके यह सब किया जाता है और ताल ठोंककर किया जाता है। बहरहाल, न्यूटन के सिद्धांत के अनुरूप इस क्रिया की भी प्रतिक्रिया हुई। न केवल शिवसेना-भाजपा की तरफ से बल्कि मशहूर गीतकार व राज्यसभा सांसद जावेद अख्तर व उनकी पत्नी फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी ने भी इस पर तल्ख टिप्पणी है। जाहिर है ओवैसी के बयान ने सियासी गर्मी ला दी है। सबसे तीखी टिप्पणी शिवसेना की तरफ से आई। शिवसेना ने भारत माता की जय बोलने से इनकार करने वाले असदुद्दीन ओवैसी को मताधिकार से वंचित करते हुए उनकी नागरिकता रद्द करने की मांग की। साथ ही सवाल किया कि ऐसे लोगों को इस देश में रहने का क्या अधिकार है। पार्टी ने मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस पर भी निशाना साधते हुए कि महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता में है, ओवैसी यहां आते हैं और भारत माता का अपमान करके सुरक्षित ढंग से निकल जाते हैं। महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें वापस कैसे जाने दिया। मुख्यमंत्री फडणवीस को इन सवालों का जवाब देना होगा। वहीं राज्यसभा में अपने विदाई संबोधन में जावेद अख्तर ने ओवैसी का नाम लिए बिना उन्हें जमकर लताड़ लगाई। उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश में एक शख्स हैं जो शेरवानी व टोपी पहनते हैं और जिन्हें गुमान हो गया है कि वह राष्ट्रीय नेता हैं जबकि उनकी हैसियत एक शहर या मुहल्ले छाप नेता से ज्यादा नहीं है। वह कहते हैं कि वह किसी भी कीमत पर भारत माता की जय नहीं बोलेंगे क्योंकि यह संविधान में नहीं लिखा है। ओवैसी पर प्रहार जारी रखते हुए अख्तर ने कहा कि वह बताएं कि संविधान में शेरवानी और टोपी पहनने की बात कहां लिखी है। बात यह नहीं है कि भारत माता की जय बोलना मेरा कर्तव्य है या नहीं, बात यह है कि भारत माता की जय बोलना मेरा अधिकार है। इसी के साथ अख्तर ने तीन बार भारत माता की जय बोलकर ओवैसी की सोच को जोरदार तमाचा जड़ा। शबाना आजमी ने भी ओवैसी को नसीहत दी है कि अगर उन्हें भारत माता की जय बोलने में शर्म महसूस हो रही है तो वे भारत अम्मी की जय बोलें। 
वैसे ओवैसी ने इस तरह का विवादित बयान पहली बार दिया हो ऐसा नहीं है। वे और उनके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी अक्सर इस तरह के बयान देते रहते हैं। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब उन्होंने अपनी पार्टी को वोट देने की गुजारिश करते हुए मुस्लिम समुदाय को कहा था कि अगर गोमांस खाना है तो उनकी पार्टी को वोट करें। वर्ना गोमांस भूल जायें। इसके पूर्व मुंबई हमलों के गुनाहगार माजिद मेनन की फांसी पर आपत्तिजनक बयान देते हुए उन्होंने कहा था कि मेनन को मुसलमान होने की वजह से फांसी दी गई है। इसके पूर्व उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने एक जनसभा के दौरान कहा था कि अगर आधे घंटे के लिए देश से सेना और पुलिस हटा ली जाये तो वह हिंदुओं की आबादी को खत्म कर देंगे। जाहिर है इस तरह के बयान देकर भी अगर वे बचे हुए हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि इसके पीछे सेलेक्टिव सेक्यूलरिज्म का बड़ा हाथ है जिसे बंगलादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने अपने एक बयान में कहा था। तस्लीमा के मुताबिक तथाकथित सेक्यूलरिस्ट हिंदू अतिवाद पर तो हायतौबा मचाते हैं लेकिन जब बात मुस्लिम सांप्रदायिकता की आती है तो वोटबैंक के लिए उनके हाथ पांव फूल जाते हैं। अब वक्त आ गया है कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उलजूलूल बयान पर पाबंदी लगाई जाए। आखिर कोई तो एक सीमारेखा तय की जाए। सवाल है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी कहा जा सकता है। यहां तक कि किसी को गाली तक दिया जा सकता है। जाहिर है, इसका जवाब ना में ही होगा। फिर इस पर इस तरह की घनघोर चुप्पी क्यों?

बद्रीनाथ वर्मा
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