(22/03/2016) 
होलिका दहन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
होली के आयोजन में अग्नि प्रज्जवलित कर वायुमंडल से संक्रामक जम्र्स दूर करने प्रयास होता है। इस दहन में वातावरणशुद्घि हेतु हवन सामग्री के अलावा गूलर की लकड़ी,गोबर के उपले, नारियल,अधपके अन्न आदि के अलावा बहुत सी अन्य निरोधात्मक सामग्री का प्रयोग किया जाता है जिससे आने वाले रोगों के कीटाणु मर जाते हैं।

जब लोग 150 डिग्री तापमान वाली होलिका के गिर्द परिक्रमा करते हैं तो उनमें रोगोत्पादक जीवाणुओं को समाप्त करने की प्रतिरोधात्मक क्षमता में वृद्घि होती है और वे कई रोगों से बच जाते है।ऐसी दूर दृष्टि भारत के हर पर्व में विद्यमान है जिसे समझने और समझाने की आवश्यकता है। देश भर में एक साथ एक विशिष्ट रात में होने वाले होलिका दहन, इस सर्दी और गर्मी की ऋतु -संधि में फूटने वाले मलेरिया ,वायरल, फलू और वर्तमान स्वाइन फलू आदि तथा अनेक संक्रामक रोग-कीटाणुओं के विरुद्घ यह एक धार्मिक सामूहिक अभियान है जैसे सरकार आज पोलियो अभियान पूरे देश में एक खास दिन चलाती है।

प्राचीन काल में होली
हिरण्यकश्यप जैसे राक्षस के यहां ,प्रहलाद जैसे भक्तपुत्र का जन्म हुआ।अपने ही पुत्र को पिता ने जलाने का प्रयास किया। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती।इसलिए प्रहलाद को उसकी गोद में बिठाया गया। परंतु सद्वृति वाला ईश्वरनिष्ठ बालक अपनी बुआ की गोद से हंसता खेलता बाहर आ गया और होलिका भस्म हो गई। तभी से प्रतीकात्मक रुप से इस संस्कृति को उदाहरण के तौर पर कायम रखा गया है और उत्सव से एक रात्रि पूर्व, होलिका दहन की परंपरा पूरी श्रद्घा व धार्मिक हर्षोल्लास से मनाई जाती है।             
 भविष्य पुराण में नारद जी युधिष्ठर से फाल्गुन पूर्णिमा के दिन  सब लोगों को अभयदान देने की बात करते हैं ताकि सारी प्रजा  उल्लासपूर्वक यह पर्व मनाए।।जैमिनी सूत्र में होलिकाधिकरण प्रकरण, इस पर्व की प्राचीनता दर्शाता है। विन्ध्य प्रदेश में 300 ईसवी पूर्व का एक शिलालेख   पूर्णिमा की रात्रि मनाए जाने वाले उत्सव का उल्लेख है। वात्सयायन के कामसूत्र में होलाक नाम से इस उत्सव का वर्णन  किया है। सातवीं शती के रत्नावली नाटिका में महाराजा हर्ष ने होली का जिक़्र किया है। ग्यारवीं शताब्दी में मुस्लिम पर्यटक अल्बरुली ने अपने इतिहास में भारत की होली का विशेष उल्लेख किया है।

होली के रंंग किस राशि के संग ?
होली आपसी मतभेद मिटाकर गले मिलने का सुअवसर है। परंतु कई बार खुशी का मौका गमी में बदल जाता है।प्रेम का प्रवाह नफरत में परिवर्तित हो जाता है। मानव शरीर पर रंगों का वैज्ञानिक और ज्योतिषीय प्रभाव दोनों ही पड़ता है। यह इंसान की मनोवृति प्रभावित करता है। अनुकूल रंग मूड को बढिय़ा बना सकता हैं। वहीं गलत रंग आपको आपस में भिड़ा सकता है।  अत: गलत रंगों से बचना चाहिए। आप यदि अपनी राशि के अनुसार रंग लगाएं और विशेष रंग से बचे तो होली का उत्सव और रंगीन हो जाएगा।
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