(27/03/2016) 
अजा/जजा परिसंघ की दिल्ली इकाई का एकदिवसीय सम्मेलन
नई दिल्ली, 27 मार्च, 2016., आज डा0 उदित राज के नेतृत्व में अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ की दिल्ली इकाई की ओर से एन.डी.एम.सी. कन्वेंशन सेंटर, जंतर-मंतर के सामने, नई दिल्ली पर एक दिवसीय सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में परिसंघ के दिल्ली एवं एन.सीआर. के पदाधिकारी, सक्रिय कार्यकत्र्ता एवं शुभचिंतक शामिल हुए और दलित आंदोलन की दिशा व दशा पर गंभीर चर्चा हुई। सम्मेलन में सर्वसम्मति से फैसला लिया गया कि शीघ्र ही दिल्ली एवं एन.सी.आर में विभिन्न स्तरों पर अजा/जजा परिसंघ की इकाइयां गठित करके विशेष सदस्यता अभियान चलाया जाएगा।

सम्मेलन को संबोधित करते हुए अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्षडाॅ0 उदित राज जी ने कहा कि बाबा साहेब ने बौद्धिक नेतृत्व पढ़े-लिखे लोगों को दिया था न कि गांव और राजनैतिक लोगों को। अब पढ़े-लिखे लोग राजनैतिक लोगों से उम्मीद करते हैं। जाट और पटेल आंदोलन से सबक लेने की आवश्यकता है। हमारा मतलब यह कतई नहीं है कि कि अपनी मांगों के लिए असंवैधानिक एवं गैरकानूनी कार्य करना चाहिए लेकिन अधिकारों के लिए एकजुट होना चाहिए। पटेल एवं जाट दोनों आंदोलनों का नेतृत्व किसी नेता ने नहीं बल्कि लोगों ने स्वयं किया। उन्हेांने कहा कि मैंने निजी क्षेत्र में आरक्षण हेतु प्राइवेट मेंबर बिल संसद में पेश किया। यह राजनैतिक दलों के समर्थन से नहीं बल्कि समाज की ताक़त से पास होगा। जब तक लाखों की संख्या में हम एकजुट नहीं होते यह अधिकार लेना बहुत ही मुश्किल है।

उन्होंने कहा कि आरक्षण शासन-प्रशासन में दलितों की भागीदारी सुनिश्चित करता है तो एससीपी एवं टीएसपी उनके आर्थिक उत्थान का उपाय है। पिछले कुछ सालों से जिस तरह की गतिविधियां चल रही है उससे एससीपी एवं टीएसपी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पा रहा है। एस.सी.पी. एवं टी.एस.पी. की योजनाओं की गहन निगरानी होनी चाहिए एवं सूचनाएं सार्वजनिक की जानी चाहिए। राज्य स्तर पर एक उच्च स्तरीय समिति मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित की जानी चाहिएजिसका कार्य एससीपी नीतियों के निर्धारणयोजनाओं के अनुमोदनऔर निगरानी करने की होनी चाहिए।   हमारी मांग है कि एससीपी/टीएसपी को लागू करने हेतु एक विस्तृत कानून आंध्र प्रदेश अजा/जजा सब-प्लान विधेयक, 2013 की तर्ज पर संसद में पास होना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा कि पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में उपजी तमाम कानूनी पेचदियों की वजह से लाखों कर्मचारियों का उ0प्र0 में डिमोशन हो रहा है। दिसंबर 2012 में लोक सभा में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बिल पास ही होने वाला था कि समाजवादी पार्टी ने अवरोध उत्पन्न किया जिससे वह रुक गया। समाजवादी पार्टी की सरकार इस समय उ0 प्र0 में बड़ा अत्याचार कर रखा हैजो अनुसूचित जाति/जन जाति के लोग स्वयं की मेरिट से हेड कांस्टेबल और सब-इंस्पेक्टर बने उनको डिमोट कर कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल बनाया जा रहा है। केन्द्र सरकार से अनुरोध है कि वह फौरन हस्तक्षेप करे ताकि शोषण से इन्हें बचाया जा सके। निजीकरण एवं भूमण्डलीकरण के कारण रोजगार घटे हैं। चैथी श्रेणी की नौकरियां लगभग खत्म हो चुकी हैं। उनका निजीकरण किया जा चुका है और ठेकेदारी प्रथा से स्थिति और खराब हो गयी है।  ठेकेदारी प्रथा का खात्मा हो और निजी क्षेत्र में आरक्षण देने के लिए सरकार कानून बनाए। बिना शिक्षा के कोई देश आगे जा नहीं सकता। शिक्षा के निजीकरण के कारण दलित-आदिवासी एवं पिछड़ों के बच्चे ज्यादातर सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैंजहां पर शिक्षा का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है। निजी क्षेत्र में शिक्षा का स्तर बढ़ा हैजो काफी महंगी है। कानून तो है कि सभी को अनिवार्य रूप से शिक्षा दी जाए लेकिन जब तक समान शिक्षा न हो तब तक इसका कोई मतलब नहीं है।

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि सवा-सौ करोड़ नागरिकों द्वारा चुनी गयी संसद द्वारा बनाए गए कानून को  सुप्रीम कोर्ट में बैठे पांच नागरिक अर्थात् पांच जज उलट देते हैं। लगभग 400 जजों का स्थान रिक्त है और जिस तरह से कोलेजियम का व्यवहार हैनहीं लगता कि दलितोंपिछड़ों को प्रतिनिधित्व मिलेगा। गुजरात हाई कोर्ट के जज जस्टिस जे.एस. परदीवाल ने आरक्षण और भ्रष्टाचार को एक समान कहा। उन्होंने कहा कि इससे देश बर्बाद हो रहा है। ऐसे जज के खिलाफ महाभियोग चलाया जाना चाहिए। इसके विरूद्ध मैंने लोक सभा में भी आवाज उठायी।

लाखों पद खाली पड़े हुए हैंउन्हें विशेष अभियान के द्वारा भरा जाए। 20 सूत्रीय कार्यक्रम के तहत दिल्ली में गरीबों और दलितों को जमीनें दी गयी थींजिन्हें अभी भी भूमिधरी का अधिकार नहीं दिया गया। शिक्षा सबसे ज्यादा विकास की कड़ी है। सरकारी विद्यालयों में शिक्षा दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है। दलितआदिवासी  एवं पिछड़े ही ज्यादातर इन स्कूलों में पढ़ रहे हैंक्योंकि उनके पास संसाधन नहीं है कि बेहतर शिक्षा निजी संस्थाओं में ले सकें। सरकार ने शिक्षा को अनिवार्य बनाया है लेकिन समान नहीं किया और जब तक समान शिक्षा नहीं होती अनिवार्य करने से भी कोई हल नहीं। महंगाई जिस रफ्तार से बढ़ी हैउस गति से छात्रवृत्ति में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। इसलिए इसको बढ़ाया जाना चाहिए। बहुत दिनों से छात्रावास बनने बंद हो गए हैंजबकि और बनाए जाने चाहिए।

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