(03/04/2016) 
फतवों की बंदिश में भारत माता
भारत माता की जय बोलने को लेकर मचे घमासान के बीच दारूल उलूम देवबंद ने जहां इसे गैर इस्लामिक करार देते हुए अपना फतवा जारी कर दिया है। वहीं इससे बिफरी शिवसेना ने भी धमकी दे दी है कि भारत माता की जय नहीं बोलने वालों से पार्टी शिवसेना स्टाइल में निपटेगी। जाहिर है यह मामला जल्द शांत होने वाला नहीं है। असदुद्दीन ओवैसी से शुरू हुआ यह विवाद नित नये रंग लेता जा रहा है। दारूल उलूम देवबंद के फतवे में कहा गया है कि जिस तरह 'वंदे मातरम' नहीं बोल सकते उसी तरह 'भारत माता' की जय भी नहीं बोल सकते।

इसके पीछे तर्क दिया गया है कि इंसान ही इंसान को जन्म दे सकता है, तो फिर धरती मां कैसे हो सकती है। संस्था ने ये भी कहा है कि मुसलमान एक खुदा में यकीन रखने वाला और खुदा के सिवा किसी दूसरे की पूजा नहीं कर सकता। जबकि, इस नारे में हिंदुस्तान को देवी की तरह समझा गया है, जो कि इस्लाम मजहब को मानने वालों के लिए शिर्क (अल्लाह के सिवा किसी और की इबादत करना) है। फतवे में मुसलमानों से खुद को इस नारे से अलग कर लेने की बात कही गई है। हालांकि दारुल उलूम देवबंद ने कहा- 'हम देश से प्यार करते हैं, लेकिन हम सिर्फ एक ईश्वर में यकीन रखते हैं।' मुफ्ती-ए-कराम ने फतवे में दो टूक कहा कि हिंदुस्तान के कानून में हर शख्स को अपने मजहब और उसके कायदे कानून को मानने का हक है, इसलिए कोई कानून के खिलाफ किसी काम को मजबूर न करे। 
वैसे इस्लामिक संस्थाओं की तरफ से अक्सर ऐसे फतवे आते रहते हैं जिनमें कई हास्यास्पद होते हैं तो कुछ भारतीय संविधान को मुंह चिढ़ाते से प्रतीत होते हैं। कुछ हास्यास्पद फतवे देखिए। अभी कुछ ही साल पहले एक मौलवी ने फतवा जारी किया था कि मुस्लिम महिलाओं को केला, खीरा, बैगन या इसी तरह के अन्य फलों व सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इनको देखने से उनके मन में कामुकता का भाव जगेगा। एक और फतवे ने तो कमाल का फरमान जारी किया। इस फतवे के अनुसार कामकाजी मुस्लिम महिलाओं को अपने पुलिस सहकर्मियों को अपना स्तनपान कराना चाहिए। इससे सहकर्मी पुत्रवत हो जाएंगे। हद है इस दिमागी दिवालिएपन की। इस पर सवाल भी उठे कि जब कोई जवान महिला किसी जवान पुरुष सहकर्मी को स्तनपान कराएगी तो उस समय उनके मन में गलत भावनाएं नहीं जागेंगी इसकी क्या गारंटी है। 
बहरहाल, मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देकर चार-चार शादियां करने की बात हो या तीन तलाक का मुद्दा अथवा नसबंदी की बात। ऐसे सभी मामलों में आये फतवे भारतीय कानून की अवहेलना करने जैसा प्रतीत होते हैं। ताजा विवाद के जनक हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की भारत में रहेंगे पर भारत माता की जय नहीं बोलेंगे जैसी हठधर्मिता भी इसी की बानगी है। हालांकि सारा का सारा मुस्लिम समुदाय इसी तरह का हठ पाले हुए है, यह कहना नाइंसाफी होगी। एक अच्छा खासा तबका इन सबके विरोध में है। हालांकि उसकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर दब जाती है। असदुद्दीन ओवैसी के बयान का शबाना आजमी ने यह कहकर करारा जवाब दिया था कि यदि ओवैसी को भारत माता की जय बोलने में शर्म आ रही है तो वे भारत अम्मी की जय बोलें। इसी तरह हैदराबादी सांसद को मुहल्ला छाप नेता बताते हुए जावेद अख्तर ने भी उनकी जमकर लानत मलामत की थी। संविधान की आड़ लेकर भारत माता की जय नहीं बोलने की बात कहने वाले असदुद्दीन ओवैसी पर पलटवार करते हुए अख्तर ने कहा था कि संविधान में तो शेरवानी पहनने के लिए भी नहीं लिखा गया है तो क्या वे शेरवानी व टोपी पहनना बंद कर देंगे। यही नहीं अपने भाषण के दौरान जावेद अख्तर ने तीन बार भारत माता की जय कहकर ओवैसी के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ा था। बावजूद इसके औवैसी बंधु जैसे लोग नफरत की खेती करने से बाज नहीं आते। इसका परिणाम होता यह है कि हिंदू समुदाय के एक तबके में आक्रोश पनपता है। जो यदा कदा परिलक्षित होता रहता है। ऐसे में सवाल उठता है कि देश में भारतीय कानून लागू है या शरियत का कानून चल रहा है। हालांकि संघ की तरफ से मोहन भागवत ने साफ कर दिया है कि भारत माता की जय बोलने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जाएगा, तथापि संघ के ही एक अन्य बड़े नेता भैयाजी जोशी का कहना है कि भाईयों जैसे रहने के लिए भारत माता की जय बोलना जरूरी है, जो भारत को भोगभूमि मानते हैं वे भारत माता की जय नहीं करेंगे। उनका यह भी कहना है कि भारत माता की जय इसलिए बोलना है, क्योंकि इससे पूरे देश के तमाम लोगों के प्रति भातृभाव रहेगा। सभी भाई होंगे। बहरहाल, भारत माता की जय कहने से धर्म पर आने वाले संकट के आलोक में यह पूछा जरूर जाना चाहिए कि यदि मातृभूमि से प्रेम करना या उसकी जय बोलना शिर्क है तो मादरे वतन के क्या निहितार्थ हैं?
बद्रीनाथ वर्मा
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