(16/04/2016) 
प्रियंका गांधी ने वाजपेयी सरकार को हैसियत का हवाला देकर काम कराया था बंगले का किराया
नई दिल्ली। प्रियंका गाधी के सरकारी मकान और उसके किराए को लेकर एक नया खुलासा हुआ है। प्रियंका गांधी ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान सरकारी बंगले का किराया कम करने की अपील की थी। 14 वर्ष पहले वाजपेयी सरकार के दौरान ऐसा ही हुआ था। जिसके बाद उन्हें दिल्ली के सबसे पॉश माने जाने वाले लुटियन जोंस में 53,421 रुपये रेंट वाला मकान सिर्फ 8,888 रुपये में दे दिया गया।

नोएडा के देव आशीष भट्टाचार्य द्वारा दायर आरटीआइ के जवाब में मिले 8 जुलाई 2003 के कैबिनेट कमिटी के नोट से यह सब खुलासा हुआ है। इसके मुताबिक, यह माना गया कि चारों लोग प्राइवेट सिटीजंस हैं और सुरक्षा कारणों के चलते उन्हें तय नियम के हिसाब से घर दिए गए हैं, वे लाइसेंस फीस का मार्केट रेट के हिसाब से रेंट नहीं दे सकते। इसलिए रेंट की समीक्षा की गई। समीक्षा के बाद प्रियंका गांधी के लिए 24 जुलाई 2003 से स्पेशल लाइसेंस फी संशोधित कर 8888 कर दी और बाकी लोगों का रेंट भी कम कर दिया गया।
वर्तमान में प्रियंका गांधी 35, लोधी एस्टेट के टाइप-VI सरकारी आवास में रह रही हैं और इसके लिए वे 31,300 रुपए अदा करती हैं। सरकार ने प्रियंका गांधी और तीन अन्य नागरिकों को सुरक्षा कारणों के चलते वीआईपी इलाके में घर प्रदान किए थे। इसमें प्रियंका गांधी वाड्रा के अलावा पंजाब के पूर्व डीजीपी केपीएस गिल, ऑल इंडिया टेररिस्ट फ्रंट चीफ एमएस बिट्टा और पंजाब केसरी के एडिटर अश्विनी कुमार शामिल थे। गिल और बिट्टा, प्रियंका गांधी के बराबर ही धनराशि का भुगतान कर रहे हैं जबकि अश्विनी कुमार ने 2012 में घर खाली कर दिया था।
माना जा रहा है कि गिल और बिट्टा भी प्रियंका गांधी वाड्रा जितना ही किराया दे रहे हैं। अश्विन कुमार 2012 में बंगाल खाली कर चुके हैं। 7 मई 2002 को प्रियंका ने सरकार को चिट्ठी लिखी थी कि 53,421 रुपए किराया बहुत ज्यादा और हमारे वश से बाहर है। एसपीजी के कहने पर हमें यह सरकारी बंगला किराए पर लेना पड़ा था। बंगाले के बड़े हिस्सा पर तो एसपीजी का कब्जा है। मेरा परिवार अपनी मर्जी से वहां नहीं रह रहा है। प्रियंका ने अनुरोध किया था कि उन्हें पिछली दर यानी 28,451 रुपए किराया चुकाने की अनुमति दी जाए। प्रियंका के बाद अन्य तीन लोगों ने भी यही आवाज उठाई। इसके चलते किराया बढऩे के बाद भी चारों पुराना किराया ही भरते रहे।
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