(03/05/2016) 
वेतन बढ़ोतरी और ठेकेदारी प्रथा को लेकर दिल्ली सरकार एक बार फिर सवालों के घेरे में
दिल्ली में आम आदमी का चेहरा बनकर आई आम आदमी पार्टी की सरकार चाहे कितने भी दावे करे कि आम आदमी के हक़ के लिए वे तेजी से काम कर रहे हैं। लेकिन ऐसा कम ही देखने को मिल रहा है। ताजा मामला दिल्ली में लेबर डिपार्टमेंट द्वारा न्यूनतम मजदूरी दर जारी करने और नई भर्तियों को लेकर प्रकाश में आया है। जहाँ एक तरफ विधायकों को 4 लाख से भी ज्यादा वेतन देने कि सिफारिश करने वाली दिल्ली सरकार विवादों में है वहीँ दूसरी तरफ ये वही सरकार है जिसने न्यूनतम मजदूरी के रूप में मात्र 89 रूपये की बढ़ोतरी करके एक विवादस्पद चर्चा को जन्म दे दिया है।

ताजा मामले के अनुसार दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने विभ्भिन पदों पर सेवानिवृत कर्मचारियों के लिए आवेदन पत्र आमंत्रित किए हैं। जिनमे लिपिक और एस्टेट मैनेजर के पद शामिल हैं जिनका वेतनमान 25000 रूपये निर्धारित किया गया है जबकि इन पदों के लिए योगयता क्रमशः बारहवीं पास और स्नातक निर्धारित की गई  है। अब इस मसले को अनुबंध के आधार पर काम कर रहे लाखों कर्मचारियों से जोड़कर देखते हैं। सर्वविदित है कि दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी दर के आधार पर सभी विभागों में विभ्भिन पदों पर कॉन्ट्रेक्ट पर डाटा एंट्री आपरेटर, एलडीसी, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, आईटी असिस्टेंट, कम्प्यूटर इंस्ट्रक्टर और अन्य पदों पर सालों नियुक्तियां की हुई हैं। जिनके लिए उन्हें न्यूनतम मजदूरी के हिसाब से भुगतान किया जाता हैं। 

उदाहरण के तौर पर एक बारहवीं पास कम्प्यूटर ऑपरेटर को न्यूनतम मजदूरी के रूप में 10140 रूपये दिए जाते हैं जबकि एक कम्प्यूटर ओपेरटर पर सरकार के लगभग 14000 रुपये खर्च होते हैं | मसलन ठेकेदारी प्रथा के चलते सरकार का 3000 रूपये प्रति कर्मचारी व्यर्थ में ठेकेदार के पास चला जाता है। लेकिन सरकार के पास इस नुकसान के प्रति कोई ध्यान नहीं हैं। मूल रूप से अगर ये कहें कि सरकार की दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी पर जीवन गुजार रहे कर्मचारियों के प्रति राहत भरा कदम उठाने की कोई मंशा भी नहीं हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योकि जिन कम्पनियों ने ये ठेके लिए हुए हैं उनकी अच्छी खासी पैंठ सरकार में नज़र आती है। 
हम सवाल इसलिए उठा रहें हैं कि क्या सालों से काम कर कर्मचारियों को चुनाव पूर्व केवल बरगलाया था। आप भी इन सवालो पर नज़र डालें जो आज हम उठा रहें हैं और तय करें कि क्या ये कर्मचारी भी बेहतर मेहनताने का हक़ रखते हैं ? 

1.  जब आप नए कर्मचारी अनुबंध आधार पर 25000 में भर्ती कर सकते हो तो पुराने कर्मचारी जो सालों से काम कर रहे हैं उन्हें क्यों नहीं इस उस पद के लिए नियमित वेतन दे सकते ? 
2. जब आप विधायकों के वेतन से सबंधित कमेटी का गठन रातों रात कर सकते हैं और उसकी रिपोर्ट में आनन फानन में पेश की जा सकती है तो कर्मचारियों के सबंध में ऐसा क्यों नहीं ?
3. जब आप नए कर्मचारियों को वेतन बढ़ा कर भर्ती कर सकते है तो पुराने कर्मचारियों को क्यों नहीं?

उपरोक्त सवालो को मद्देनज़र रखते हुए तय कीजिए कि क्या दशक भर से शोषित अनुबंध आधारित कर्मचारी केवल वायदों पर जीवन जी सकेंगे। क्या सरकार को केवल कांग्रेस सरकार द्वारा ठेकेदारी प्रथा को समाप्त करते हुए एक नज़ीर पेश करनी चाहिए।

सागर शर्मा 
समाचार वार्ता 
नई दिल्ली 
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