(03/05/2016) 
आज के परिदृश्य मे राजनीति के खिलाडियों पर साहित्य सेवक बेख़बर देहलवी की काव्य रचना
राजनीति जहाँ एक खेल बनकर रह गई है और इसके खिलाड़ी नेता जी जोकि जनता और समाज को लगातार धोखा दे रहे है |

नेताओं की धोखेबाज़ी और फरेब से  पर्दा उठाती बेखबर देहलवी की रचना "वाह मेरे नेता जी" समाचार वार्ता विशेष:

अब इस गरीब के घर भी सारे नेता आने लगे है
मेरे झोपड़ी मे बैठकर सुखी रोटीया खाने लगे है
कल तक इनसे मिलना भगवान से कम नही था
मरता रहा भुखा पेट मै मगर इनको गम़ नही था
मेरे जख्मो पर ये सियासतो की रोटी सेकते रहे
माल खुद चबाते रहे जनता को हड्डी फेकते रहे
कमाई हमारी थी खुन की तरह डकारते पीते रहे
रोती रही है जनता इनके अपने मौज में जीते रहे
कुर्सी की चाहत ये अपने नजरो में सजाये बैठे है
कल तलक जो दुश्मन थे आज भाई बनाये बैठे है
गठबंधनो के नामो पर ये जनता को छलते रहे है
सरकार बनने के बाद हम सिर्फ हाथ मलते रहे है
ऐ खुदा अब आप ही बताये कौन सी ये विरादरी
पाँच साल रहे गायब अब लगाते है रोज हाजिरी
दमदार वादे सलोने सपने मुझको दिखाने लगे है
चुनावी मौसम मे गरीबों का मसीहा बताने लगे है
नेताजी मुझसे कहते मेरा दुख अब जाने वाला है
मैं अचम्भित हूँ क्या फिर से चुनाव आने वाला है !!

साहित्य सेवक-
बेख़बर देहलवी
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