(16/08/2016) 
मोदी के भाषणों से देश की तक़दीर संवरना मुश्किल ही नहीं बल्कि असम्भव: मायावती
नई दिल्ली, 16 अगस्त, 2016: बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, मायावती जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 70वें स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से कल दिये गये भाषण को अन्यन्त ही नीरस बताते हुये कहा कि ऐसे प्रेसनोट रूपी भाषणों से देश की तक़दीर संवरना मुश्किल ही नहीं बल्कि असम्भव लगता है।


मायावती जी ने आज यहाँ जारी एक बयान में कहा कि लाल क़िले के प्राचीर से दिये जाने वाले तमाम भाषणों में से यह शायद अब तक का सबसे नीरस व बेजान भाषण माना जायेगा। लगभग 11 हज़ार से अधिक शब्दों वाले  नरेन्द्र मोदी की तक़रीर में देश के लोगों में नया जोश, नई उमंग व नई उम्मीद पैदा करने वाला कुछ भी नहीं है। अपने पूरे भाषण में मेरी सरकार के बजाय, मैंने, मैंने पर ही नरेन्द्र मोदी ने ज्यादा बल दिया है। साथ ही अपने अत्यन्त ही लम्बे भाषण में जिन बातों का उल्लेख बड़े गर्व से किया वे सारी बातें लोग पिछले एक साल से विभिन्न सरकारी प्रेसनोटों व केन्द्रीय मन्त्रियों की प्रेस कांफ्रेन्सों आदि के माध्यम से लगातर सुनते चले आ रहे हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर  नरेन्द्र मोदी का दिनांक 15 अगस्त सन् 2016 को लाल क़िले के प्राचीर से दिया गया भाषण सरकारी प्रेसनोटों का संकलन मात्र ही कहा जायेगा।
वैसे भी माननीय प्रधानमंत्री जी ने अपनी जिन भी तथाकथित उपलब्धियों का उल्लेख अपने भाषण में किया है, उसका सही लाभ ज़मीनी स्तर पर अगर गरीबों, किसानों व विभिन्न पेशों में लगे लोगों को मिल रहा होता तो निश्चय ही इस भाजपा सरकार के प्रति एक अच्छी अवधारणा लोगों में ज़रूर बनती। लेकिन ज़मीन पर ठीक इसके उल्टे लोगों की व ख़ासकर व्यापारियों आदि की इस सरकार के प्रति शिकायतें बढ़ी हैं। ख़ासकर देश का छोटा व्यापारी वर्ग आज भाजपा से जितना दुःखी नज़र आता है उतना दुःखी वह शायद पहले कभी नहीं था।
इसके अलावा नरेन्द्र मोदी ने जिस-जिस क्षेत्र में अपनी सरकार की तमाम कार्यकलापों का उल्लेख किया है वे ज्यादातर केन्द्र सरकार की उपलब्धियों की श्रेणी में नहीं आती हैं। आमतौर पर इस प्रकार के दावे राज्य सरकारें ही करती हैं। 
साथ ही, नरेन्द्र मोदी आंकड़ों के मकड़जाल से व विदेशी संस्थानों की रेटिंग आदि के हवाले से अपनी सरकार की वाहवाही सुनना चाहते हैं, जबकि देश की आमजनता अपने अनुभव के आधार पर अपनी धारणा स्वंय बनती है और इस बारे में आम अवधारणा यह है कि  नरेन्द्र मोदी की सरकार देश की ज्वलन्त समस्याओं जैसे ग़रीबी व बेरोजगारी दूर करने, महंगाई कम करने, आमजनता के जीवन के कष्ट को कम करने व इन सबसे बढ़कर जनहित, जनकल्याण व सामाजिक न्याय के मामले में यह सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने में काफी ज्यादा विफल साबित हुई हैं। कुल मिलाकर इस भाजपा सरकार का अब तक का कार्यकलाप जनविरोधी, गरीब-विरोधी, दलित व अन्य पिछड़ा वर्ग एवं मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समाज विरोधी तथा किसान-विरोधी आदि रहा है, अर्थात् यह सरकार केवल बड़े-बड़े पूँजीपतियों व धन्नासेठों को ही समर्पित सरकार रही है।
इतना ही नहीं बल्कि  नरेन्द्र मोदी ने विदेशों से कालाधन लाकर देश के प्रत्येक ग़रीब परिवार के हर सदस्य को 15 से 20 लाख रूपये देने के अपने ताली बटोरने वाले वायदे को भुला दिया और उसका थोड़ा सा उल्लेख भी अपने भाषण में नहीं किया। इसी प्रकार गन्ना किसानों का कई सौ करोड़ रूपये के बकाये की अदायगी के सम्बन्ध में किसानों को भ्रमित करने वाली बात की। ख़ासकर यू.पी. के गन्ना किसानों के बारे में केन्द्र व राज्य की सपा सरकार के दावे अलग-अलग हैं और इस बारे में वास्तविकता यह है कि गन्ने के बक़ाया की अदायगी के सम्बन्ध में यहाँ के किसान परेशान व दुःखी हैं।
इतना ही नहीं बल्कि  नरेन्द्र मोदी के लाल क़िले के भाषण पर आमजनता के साथ-साथ माननीय न्यायपालिका ने भीे ज़बर्दस्त मायूसी प्रकट की है। आज अपने देश में रोजगार, स्वास्थ्य व प्राथमिक शिक्षा की तरह सुगम न्याय का भी घोर अभाव है, जिसके सम्बन्ध में न्यायपालिका बार-बार केन्द्र सरकार का ध्यान आकृष्ट कर रहा है परन्तु केन्द्र सरकार का रवैया इस मामले में भी उदासीन ही नहीं बल्कि नकारात्मक ही नजर आता है।
साथ ही बी.एस.पी का यही कहना है कि केन्द्र की सरकार को कश्मीर के साथ-साथ कश्मीर के लोगों से भी अपने लगाव को प्रदर्शित करते हुये वहाँ के हालात को जल्द-से-जल्द सुधार कर सामान्य बनाने का सार्थक प्रयास करना चाहिये। देश में शायद कश्मीर जैसी स्थिति कहीं भी नहीं रही होगी जब एक महीनेे से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद वहाँ कफ्र्यू लगातार जारी है। यह वहाँ की पी.डी.पी.-भाजपा गठबन्धन सरकार की घोर विफलता का प्रतीक है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तानी राज्य बलुचिस्तान व पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के सम्बन्ध में कुछ बातें कहकर पाकिस्तान से सम्बन्धित विदेश नीति में जो परिवर्तन किया है वह अलग बात है, परन्तु हमारा स्टैण्ड तभी मजबूत होगा जब हमारी सरकार जम्मू-कश्मीर में आम जनजीवन सामान्य बनाने में सफल होगी। इस बारे में केन्द्र की सरकार केवल बयानबाज़ी ही अब तक करती रही है।
कुल मिलाकर  नरेन्द्र मोदी ने लाल किले से दिये गये अपने भाषण को इण्डिया शाईनिंग की तरह पेश करना चाहते थे और इस क्रम में अपनी सरकार के सामान्य कार्यकलापों को भी उपलब्धियों के रूप में पेश किया, जिस कारण उनका लम्बा-चैड़ा भाषण काफी ज्यादा नीरस बन गया। वास्तव में लाल किला से दिया जाने वाला भाषण देश की तकदीर संवारने का गाइड होना चाहिये था, ना कि सरकारी कार्यकलापों पर अक्सर जारी होने वाले प्रेसनोटों जैसा।
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