(10/09/2016) 
16 सितंबर से श्राद्ध, क्यों करें श्राद्ध - मदन गुप्ता सपाटू
अक्सर आधुनिक युग में श्राद्ध का नाम आते ही इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती हैं । प्रशन किया जाता है कि क्या श्राद्धों की अवधि में ब्राहमणों को खिलाया गया भोजन पित्तरों को मिल जाता है? क्या यह हवाला सिस्टम है कि पृथ्वी लोक में दिया और परलोक में मिल गया? फिर जीते जी हम माता पिता को नहीं पूछते मरणेापरांत पूजते हैं! ऐसे कई प्रशन हैं जिनके उत्तर तर्क से देने कठिन होते हैं फिर भी उनका औचित्य अवश्य होता है।

 सामाजिक  व पारिवारिक दृष्टिकोण 
आप अपने सुपुत्र से कभी पूछें कि उसके दादा - दादी जी या नाना -नानी जी  का क्या नाम है। आज के युग में 90 प्रतिषत बच्चे या तो सिर खुजलाने लग जाते हैं या ऐं.... ऐं ...... करने लग जाते हैं। परदादा का नाम तो रहने ही दें ।
संभव है वह आपके पिता जी का नाम कुछ का कुछ बता दे और आप मेहमानों के आगे खिसिया खिसिया के बगलें झांकते रह जाएं।यदि आप चाहते हैं कि आपका नाम आपका पोता भी जाने तो आप श्राद्ध के महत्व को समझें। सदियों से चली आ रही भारत की इस व्यावहारिक एवं सुंदर परंपरा का निर्वाह अवश्य करें। हम पश्चिमी सभ्यता की नकल कर के मदर डे,फादर डे, सिस्टर डे,वूमन डे,वेलेंटाइन डे आदि पर  पर ग्रीटिंग कार्ड या गीफट देके डे मना लेते हैं ।  उसके पीछे निहित भावना या उदे्श्य को अनदेखा कर देते हैं। परंतु श्राद्धकर्म का एक समुचित उदेश्य है जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है।
       श्राद्ध , आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं। जिन दिवंगत आत्माओं के कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है, उनकी कुर्बानियों व योगदान को स्मरण करने के ये 15 दिन होते है। इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्ष व कार्यकलापों के बारे बताएं ताकि वे कुटुंब की स्वस्थ परंपराओं का निर्वाह करें।
ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दुओं में ही मृतकों को याद करने की प्रथा है,   इसाई समाज में निधन के 40 दिनों बाद एक रस्म की जाती है जिसमें सामूहिक भोज का आयोजन होता है।इस्लाम में भी 40 दिनों बाद कब्र पर जाकर फातिहा पढ़ने का रिवाज है। बौद्ध धर्म में भी ऐसे कई प्रावधान है। तिब्बत में इसे तंत्र-मंत्र से जोड़ा गया है। पश्चिमी समाज में मोमबत्ती प्रज्जवलित करने की प्रथा ळें
अफ्रीका के एक भाग में तो एक समुदाय अपने मृत अभिभावकों को कब्र से निकाल कर , नए कपड़े पहना कर उन्हें याद करते हैं।
 चंद्र ग्रहण से हो रहा है  पितृपक्ष  आरंभ ?
इस वर्ष पितृ पक्ष 16 सितंबर से 30 सितंबर , अमावस , तक होगा । इस साल श्राद्ध का पहला दिन ही चंद्र ग्रहण से आरंभ हो रहा है जो  16 सितंबर की रात्रि 10 बजकर 24 मिनट पर कुंभ राशि में  लगेगा और 17 तारीख की प्रातः 2 बजकर 23 मिनट पर समाप्त भी हो जाएगा। 
दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति,मुक्ति एवं श्रद्धा पूर्वक की गई क्रिया का नाम ही श्राद्ध है। आश्विन मास का कृष्ण पक्ष श्राद्ध के लिए तय है। ज्योतिषीय दृष्टि से इस अवधि में सूर्य कन्या राशि पर गोचर करता है। इसलिए इसे कनागत भी कहते हैं। जिनकी मृत्यु तिथि मालूम नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस को किया जाता है। इसे सर्वपितृ अमावस या सर्वपितृ श्राद्ध भी कहते हैं। यह एक श्रद्धा पर्व है....भावना प्रधान पक्ष है। इस बहाने अपने पूर्वजों को याद करने का एक रास्ता। जिनके पास समय अथवा धन का अभाव है, वे भी इन दिनों आकाश की ओर मुख करके ,दोनों हाथों द्वारा आवाहन करके पितृगणों को नमस्कार कर सकते हैं। श्राद्ध ऐसे दिवस हैं जिनका उद्ेश्य परिवार का संगठन बनाए रखना है। विवाह के अवसरों पर भी पितृ पूजा की जाती है।
दिवंगत परिजनों के विशय में वास्तुशास्त्र का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। घर में पूर्वजों के चित्र सदा नैर्ऋत्य दिशा में लगाएं। ऐसे चित्र देवताओं के चित्रों के साथ न सजाएं। पूर्वज आदरणीय  एवं श्रद्धा के प्रतीक हैं। पर वे ईष्ट देव का स्थान नहीं ले सकते। जीवित होते हुए अपनी न तो  प्रतिमा बनवाएं और न ही अपने चित्रों की पूजा करवाएं। ऐसा अक्सर फिल्म उद्योेग या राजनीति में होता है जिसे किसी भी प्रकार शास्त्रसम्मत नहीं माना जा सकता।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण 
हमारे समाज में हर सामाजिक व वैज्ञानिक अनुष्ठान को धर्म से जोड़ दिया गया था ताकि परंपराएं चलती रहें। श्राद्धकर्म उसी श्रृंखला का एक भाग है जिसके सामाजिक या पारिवारिक  औचित्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता। 
मान्यता है कि  मृत्यु के पष्चात आत्मा, सूक्ष्म शरीर धारण कर लेती है और पितृ शरीर को प्राप्त कर , जल के रुप में भोजन खींच सकने में स्मर्थ होती है। यही नहीं, आज कल सूक्ष्म शरीर पर कई प्रकार के परीक्षण चल रहे हैं जिसमें ऐसी कितनी ही आत्माओं की मौजूदगी के चित्र खींचे गए हैं। कितने ही सी सी टी वी कैमरों पर उनकी उपस्थिति  रिकार्ड  हुई है। पश्चिमी देश भी सूक्ष्म शरीर की मौजूदगी से इंकार नहीं करते। भारत में तो प्राचीन काल से ही आत्मा तथा अदृश्य शरीर के अस्त्तिव को मान्यता प्राप्त है। आधुनिक युग में टेलीपैथी या डिस्टैंट हीलिंग अर्थात दूर बैठे रेकी द्वारा ईलाज करना संभव माना गया है। समस्त वायुमंडल में अर्थावा जिसे अंग्रेजी में ईथर कहते हैं, मौजूद है। इस वायुमंडल में संपर्क साधा जा सकता है और पितरों को भोजन पहुंचाया जा सकता है। मोबाईल फोन आज इसका जीता जागता उदाहरण है जो वर्तमान माध्यम से कुछ भी एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में सक्षम है। आपने भी अपने परिवारों में संकट के समय अपने परिवार की कई मृतआत्माओं को स्वप्न में आकर कुछ तसल्ली या सुझाव देते देखा होगा। कभी कभी ऐक्सीडेंट होते होते बचे होंगे और आपको लगा होगा कि किसी हवा के एक झोंके ने आपको धक्का दिया और आप तेज गति से आते वाहन से कुछ सैकेंड पहले एक दम किनारे हो गए और बच गए। विवाह समारोहों से पूर्व दिवंगत आत्माएं अपना आशीर्वाद देने सपने या साक्षात रुप में चली आती हैं। इसी लिए भारतीय संस्कृति में किसी भी मंगल कार्य के समय एक थाली पितरों के लिए, एक गाय, एक कउव्वे  और एक कुत्ते के लिए निकाली जाती है ताकि हमारे पूर्वज किसी रुप में भी हों , वे प्रसन्न होकर आशीष दें और कार्य सफल हो। यह श्राद्ध  का ही एक अंग है जिसका अर्थ है अपने दिवंगत पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त करना ।
पितृ दोष में अवश्य करें श्राद्ध
मान्यता है कि यदि ज्योतिषीय दृष्टि से यदि कुंडली में पितृ दोष है तो निम्न परिणाम देखने को मिलते हैं
1.संतान न होना 2.
धन हानि 3.
गृह क्लेश
 4.दरिद्रता 5.मुकदमे
6.कन्या का विवाह न होना 
7.घर में हर समय बीमारी 
8.नुक्सान पर नुक्सान 
9.धोखे 10.दुर्घटनाएं
11.शुभ कार्यों में विघ्न

कैसे करें श्राद्ध ?
इसे  ब्राहमण या किसी सुयोग्य कर्मकांडी द्वारा करवाया जा सकता है। आप स्वयं भी कर सकते हैं।
ये सामग्री ले लें -.सर्प-सर्पिनी का जोड़ा,चावल,काले तिल,सफेद वस्त्र,11 सुपारी,दूध,जल, तथा माला.।.पूर्व या दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें.सफेद कपड़े पर सामग्री रखें.108 बार माला से जाप करें या सुख षांति,समद्धि प्रदान करने तथा संकट दूर करने  की क्षमा याचना सहित पित्तरों से प्रार्थना करें।.जल में तिल डाल के 7 बार अंजलि दें.।.शेष सामग्री को पोटली में बांध के प्रवाहित कर दें. । हलुवा,खीर,भोजन,ब्राहमण,निर्धन,गाय, कुत्ते,पक्षी को दें।

श्राद्ध के 5 मुख्य कर्म अवश्य करने चाहिए  

1.तर्पण-दूध,तिल,कुशा,पुष्प,सुगंधित  जल पित्तरों को नित्य अर्पित करें.
2. पिंडदान-चावल या जौ के पिंडदान,करके भूखों को भोजन भेाजन दें 
3. वस्त्रदानःनिर्धनों को वस्त्र दें.
4.दक्षिणाःभोजन के बाद दक्षिणा दिए बिना एवं चरण स्पर्श बिना फल नहीं मिलता।
5.पूर्वजों के नाम पर , कोई भी सामाजिक कृत्य जैसे -शिक्षा दान,रक्त दान, भोजन दान, वृक्षारोपण ,चिकित्सा संबंधी दान आदि अवश्य करना चाहिए।
श्राद्ध की समय सारणी -सितंबर
पूर्णिमा का श्राद्ध 16 को पूरा दिन
प्रतिपदा 17 - महालय ,पितृपक्ष श्राद्ध आरंभ
द्वितीया 18- पंचक समाप्त
तृतीया 19- श्री गणेश यतुर्थी व्रत
चतुर्थी 20- पंचमी का श्राद्ध
पंचमी 21- षष्ठी का श्राद्ध
षष्ठी 22- सप्तमी का श्राद्ध
सप्तमी 22- सप्तमी तिथि का क्षय
अष्टमी 23- अष्टमी का श्राद्ध
नवमी 24- सौभाग्यवती नवमी  का श्राद्ध
दशमी 25- दशमी का श्राद्ध
एकादशी 26-एकादशी का श्राद्ध
द्वादशी 27- सन्यासियों का श्राद्ध
त्रयोदषी 28- मघा श्राद्ध
चतुर्दषी 29- आक्सिमक मृत्यु वालों का श्राद्ध
अमावस 30- सर्वपितृ श्राद्ध ,आश्विन महालय अमावस श्राद्ध समाप्त 
शरद् नवरात्र आरंभ- पहली अक्तूबर  
मदन गुप्ता सपाटू
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