(28/11/2016) 
दलितों के हालातों में खास परिवर्तन नहीं - डॉ. उदित राज
नई दिल्ली : 28 नवम्बर : अनुसूचित जाति/जनजाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उदित राज के नेतृत्व में दिल्ली के रामलीला मैदान मे आरक्षण बचाओ महारैली का आयोजन किया गया |

रैली में देश के विभिन्न राज्यों दिल्ली, उत्तर-प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, केरल,कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब, झारखण्ड, आदि सेदलितों और आदिवासियों सहित लाखों की संख्या में लोगों ने भाग लिया |

 परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उदित राज ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि लगातार आरक्षण को समाप्त किये जाने के प्रयास किये जा रहे है | जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिएयदि दलितों और वंचितों से उनका एक मात्र आरक्षण का अधिकार भी छीन लिया जायेगा, तो उनका विकास कैसे हो पायेगा और वह समय के साथ और पिछड़ते चले जायेंगे | दलितों को पिछड़ेपन और गुलामी में जकड़े हुए हजारों वर्ष हो चुके है | आज हम आजाद भारत के नागरिक जरुर कहलाते है लेकिन जब दलितों की स्थिति की बात आती है तो उनके हालातों में खास परिवर्तन नहीं हुआ है |

दलितों आदिवासियों की लड़ाई लड़ने के लिए उनके सिवाय और कोई भी नहीं हैं | तो ऐसे में इनकी एकता ही अधिकार और सम्मान को सुनिश्चित कर सकती है | आज दलितों के लाखों संगठन है, और इन संगठनों की कोशिश यह होनी चाहिए कि यह बड़े- बड़े संगठनों की मदद करें वरना बिखरी शक्तियों का असर सत्ता पक्ष या सरकार पर नहीं पड़ेगा | शायद ही कोई दलित होगा जो डॉ. अम्बेडकर में आस्था न रखता हो लेकिन कुछ ऐसे दलित भी होंगे जो अम्बेडकर में आस्था नहीं रखते होंगे | दलितों का जाति के आधार पर बंटना आत्मघाती और जहर के समान हो रहा है | इसलिए भारत के दलितों, आदिवासियों से अपील किया जाता है कि वे अपने स्वयं की संतुष्टि एवं स्वार्थ के लिए अपने संगठन और जाति की दीवार को तोड़ते हुए एक होजिस तरह से एक समय में दुनिया के सभी मजदूर एक हुए थे | बाबा साहब का रंग नीला था और परिसंघ के लोग भी नीली टोपी पहन ले और यह तब तक पहने रहे जब तक कि हम अपने उद्देश्यों की पूर्ति न कर लें | अब भारत को नीलामय बनाना है | हमारे दलित आदिवासी भाई दूसरे की टोपी और झंडा के साथ नारा लगाते है अब उन्हें अपने आरक्षण को बचाने के लिए भी नारा लगाना होगा |

डॉ. उदित राज ने परिसंघ के लोगों को संकल्प दिलाया कि सभी को डिजिटल क्रांति के साथ जुड़ते हुए सोशल मीडिया के माध्यम से केवल जानकारियों का ही आदान-प्रदान न करके बल्कि एक दूसरे से जुड़ने का प्रयास भी करना चाहिए | देर-सवेर पूरी दुनिया डिजिटल हो जाएगी तो हमारे दलित आदिवासी अभी से क्यों न इसका उपयोग प्रारम्भ करें | इससे लेन-देन, व्यवसाय आदि के प्रगति करने में सहायता मिलेगी | इस समाज के लोग न तो ट्रेडर हैं, न ही उद्योगपति और कॉर्पोरेट घराने से है जिसके पास काला धन हो | ऐसे में दलितों और आदिवासियों को डिजिटल होने में फायदा ही फायदा है | ठेकेदारी प्रथा की वजह से मजदूरों का शोषण बेइंतहा होता है | अध्यापक,कर्मचारी,चपरासी और मजदूर कोई भी हो | निजी क्षेत्र में नगदी द्वारा वेतन और मजदूरी दी जाती है | जो कागज में तो पूरा दिखाया जाता है परन्तु वेतन का भुगतान आधा-अधूरा ही किया जाता है | ऐसे में सरकार द्वारा चेक या डिजिटल भुगतान से शोषण रुकेगा और इसका सर्वाधिक लाभ दलित आदिवासियों को मिलेगा |

परिसंघ की प्रमुख मांगे :-

पदोन्नति व निजी क्षेत्र में आरक्षण,ठेकेदारी प्रथा की समाप्ति,दिल्ली सरकार द्वारा लाखों कर्मचारियों को पक्का कराने, दलित उत्पीडन के खिलाफ एवं दलितों के सशक्तिकरण, साउथ अफ्रीका क्रिकेट टीम की भांति भारत में भी आरक्षण का प्रावधान, चमार रेजिमेंट इत्यादि मांगे है | जिसके लिए आज पूरे देश से दलित और आदिवासी रामलीला मैदान पहुँचे हैं |   

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