रामलीला मैदान मे आरक्षण बचाओ महारैली का आयोजन किया गया | रैली का नेतृत्व जाति/जनजाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उदित राज नें किया। साथ ही प्रधानमंत्री को कई मांगों के लिए ज्ञापन भी दिया। ज्ञापन 28 नवंबर, 2016 श्री नरेन्द्र मोदी माननीय प्रधानमंत्री रायसिना हिल, साथउ ब्लाक नई दिल्ली महोदय, आज भारी संख्या में पूरे देश से अजा/जजा
कर्मचारी-अधिकारी एवं समर्थक नई दिल्ली के रामीलाला मैदान में अनुसूचित जाति/जन
जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ के तत्वावधान में अपने संवैधानिक अधिकार और
देश की प्रगति के लिए एकत्रित हुए। अजा/जजा को दिए जाने वाले आरक्षण को अक्सर आर्थिक
विकास में बाधक कहा जाता है और साथ ही प्रषानिक दक्षता में भी बाधक माना जाता है।
आरक्षण का आरंभ दक्षिण भारत में हुआ था। सन् 1902 में षाहू जी महाराज ने कोल्हापुर
रियासत में आरक्षण लागू किया। सन् 1921 में जस्टिस
पार्टी की सरकार ने मद्रास खंड (जिसमें आज का आंध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि आते थे) में आरक्षण लागू किया। मैसूर प्रदेश में 1921 और बांबे खंड में 1931 में आरक्षण लागू
किया गया। त्रावणकोर के महाराजा ने 1935 में
आरक्षण लागू किया और उसके बाद कोचीन में भी यह लागू हुआ। आज तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण है। अगर सभी प्रदेषों के बीच तुलना की जाए तो तमिलनाडु देश
के अच्छे प्रषासनिक राज्यों में से एक है। आर्थिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के पैमाने में
दक्षिण भारत के प्रदेश अक्सर उत्तर भारत के प्रदेषों से बेहतर पाए गए हैं। सन् 1943 में भारत सरकार ने पहली बार आरक्षण लागू किया। मैं यह नहीं कहूंगा कि यह
निष्कर्ष सही है लेकिन यह जरूर प्रतीत होता है कि जहां शासन और प्रशासन में
भागीदारी ज्यादा है, वे प्रदेश बेहतर कर रहे हैं। सिर्फ भारत ही नहीं पूरा विष्व यह जानता है कि आप
मेक इन इंडिया, स्टैंड
अप इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, क्लीन इंडिया आदि का बिगुल बजा चुके हैं। अजा/जजा की आबादी पूरे देश की
आबादी का लगभग एक चौथाई है और इनको औद्यौगीकरण एवं प्रगति से अलग-थलग रखने का अर्थ
है कि इनकी क्रय शक्ति कम करनी, जिसका आर्थिक प्रगति पर
भी असर पड़ता हैं। औद्योगिक क्षेत्र के तेजी से विकसित होने का कारण भारत की
जनसंख्या है। अगर अन्य पिछड़ों की भी गिनती की जाए तो भारत में 80 प्रतिशत लोग आरक्षित वर्ग में आते हैं। आरक्षण की वजह से उनका मनोबल बढ़ता
है और क्रयशक्ति भी बढ़ती है, जिसका सीधा असर भारत के विकास
पर पड़ता है। शासन व अन्य क्षेत्रों में इनकी भागीदारी से ये भी उद्यमी बनेगें और अपना कारोबार शुरू कर पाएंगें, जिससे कि भारत देश भी मजबूत होगा और जी.डी.पी. भी बढ़ेगा। हॉल में 500 और 1000 रूपये की नोटबंदी की वजह से सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के बैंकों के पास
रिकार्ड तोड़ राशि जमा हुई है। कई सरकारी सूत्रों ने कहा है कि इसकी वजह से सस्ती
ब्याजदर पर कर्ज मिलेगें। ऐसे हालात में भारत सरकार को एक लाख करोड़ रूपये की लागत
से एक सार्वजनिक अजा/जजा बैंक की स्थापना करनी चाहिए, जैसे
महिला बैंक की स्थापना हुई। इससे कम ब्याजदर पर अजा/जजा वर्ग के उद्यमियों को कर्ज
मिलेगा और भारत सरकार को स्टैंडअप इंडिया योजना को सफल करने का अवसर मिलेगा। निजीकरण के शुरूआत से अजा/जजा वर्ग के लोग
शासन-प्रशासन से ही नहीं, परन्तु आर्थिक कार्यों से भी वंचित हो रहे हैं। इस वंचित होने का एक अहम
कारण देश की न्याय प्रणाली है। बेरहमी से विधायिका द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों
को न्यायपालिका छीन लेती है। उदाहरण के तौर पर 81वां,
82वां एवं 85वां संवैधानिक संशोधन
वाजपेयी सरकार लायी थी। 85वां संवैधानिक संशोधन
पदोन्नति में आरक्षण के लिए किया गया था, जिसे उच्चतम
न्यायालय में चुनौती दी गयी और 2006 में इसका
निर्णय आया जो नागराज केस के नाम से जाना जाता हैं। पांच जजों की पीठ ने इस
संवैधानिक संशोधन को वैध माना था लेकिन इसमें कुछ अनुचित शर्तें भी लगा दी थी, जैसे - पर्याप्त प्रतिनिधित्व, पिछड़ापन और
प्रषासनिक दक्षता पर असर न पड़ता हो। जहां तक पिछड़ेपन का सवाल है, यह तभी साबित हो जाता है, जब अजा/जजा वर्ग के
लोगों को संविधान की धारा 341 और 342 के तहत लाया जाता है, जिसका परीक्षण भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त, राष्ट्रीय
अनुसूचित जाति आयोग एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जन जाति आयोग द्वारा किया जाता है। लखनऊ उच्च न्यायालय ने 4 जनवरी, 2011 को उ0 प्र0 में
पदोन्नति में आरक्षण समाप्त कर दिया। उस समय की प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय
में याचिका दायर की, जिसने दो जजों की उच्च न्यायालय के
फैसले को वैध ठहराया। न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार छोटी पीठ, बड़ी पीठ के फैसले को अवैध नहीं ठहरा सकती लेकिन इस मामले में ऐसा ही हुआ।
दिसंबर, 2012 में राज्य सभा में पदोन्नति में आरक्षण का
बिल पास किया गया ताकि न्यायपालिका की विसंगतियों को दुरूस्त किया जा सके, पर यह बिल लोक सभा में पास नहीं हो पाया। उ0प्र0 की समाजवादी सरकार के आतंक में हजारों दलित कर्मचारियों की पदावनति हो रही
है। चीफ इंजीनियर को एक्जीक्यूटिव इंजीनियर बनाया जा रहा है और इस फैसले से लोग
इतने निराश हैं कि दलित कर्मचारी-अधिकारी कार्यालय नहीं जाना चाहते क्योंकि अभी तक
जो अधिकारी उनके नीचे कार्य करता था वह उनसे सीनियर हो गया है। भेदभाव की हद तो तब
पार हो गयी जब सामान्य योग्यता पर भर्ती हुए अधिकारियों को भी दलित होने के नाते
पदावनत किया गया है। हाल ही में जबलपुर के उच्च न्यायालय ने भी ऐसा ही एक फैसला
सुनाया है, जिसकी वजह से मध्य प्रदेश में भी ऐसी स्थिति
पैदा हो गयी है। इस तरह से सारे फैसले अतिरिक्त न्यायिक सक्रियता का प्रतीक हैं और
भारत के संविधान की आत्मा के खिलाफ हैं। मैं भारत सरकार से दरख्वास्त करता हूं कि
लोक सभा के इसी सत्र में पदोन्नति में आरक्षण बिल पास किया जाए, ताकि दलितों और आदिवासियों को इस इस क्रूरता एवं भेदभाव से बचाया जा सके। महोदय, आपके नेतृत्व में देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है, देशवासियों में आषा की एक नई
किरण जागी है। अनुसूचित जाति /जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, जिसका मैं राष्ट्रीय चेयरमैन हूं, यह पहली
संस्था है, जिसने निजी क्षेत्र में सबसे पहले आरक्षण की
मांग की थी। यूपीए सरकार ने 2004 में मंत्रियों की
एक समिति निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए गठित की थी, इसके
बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में भी कोर्डिनेशन कमेटी और वाणिज्य एवं उद्योग
मंत्रालय में अधिकारियों की एक समिति गठित की थी, पर ये
गंतव्य तक नहीं पहुंच पाए। सरकार पर निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए दबाव बनता हुआ
देख फिक्की, एसोचेम एवं सीआईआई जैसी उद्योगपतियों की
संस्थाओं ने सरकार से दरख्वास्त की कि उन पर आरक्षण थोपा न जाए बल्कि वे स्वयं
दलितों को उद्यमी बनाने के लिए कोचिंग, ट्यूशन एवं
ट्रेनिंग इत्यादि प्रदान करेगें, पर उन्होंने यह वायदा
भी नहीं निभाया। पिछली सरकार ने दलितों और आदिवासियों को सरकारी खरीद में भागीदारी
देने की बड़ी बातें की। उन्होंने यह कानून भी बनाया कि सरकारी विभाग, मंत्रालय और केन्द्र सरकार की संस्थानों में 4 प्रतिशत खरीदारी दलितों के लघु उद्योगों से हो। पर यह भी न सफल हो पाया।
आज सिर्फ .5 प्रतिशत ही खरीद दलितों के लघु उद्योगों से
की जा रही है। सरकार को इस विषय में शक्ति बरतने की जरूरत है, ताकि 4 प्रतिशत का लक्ष्य पूरा हो सके।
मेरी आपसे आग्रह है कि आप इस विषय में ठोस कदम उठाएं। रक्षा अधिग्रहण में मल्टीप्लायर ऑफसेट पॉलिसी लागू
है, जिसके
अंतर्गत कम से कम 10 प्रतिशत अधिग्रहण फॉरेन
डारेक्ट इन्वेस्टमेंट जजा/जजा वर्ग के लघु उद्योगों से हो, ऐसा ही नियम बाकी क्षेत्र जैसे रेलवे, ऊर्जा, खान, उड़ान आदि क्षेत्रों में भी लागू हों और
मल्टीप्लायर ऑफसेट प्रोविजन भी बढ़ाया जाए ताकि अजा/जजा वर्ग के लघु उद्योग
विष्वस्तरीय पुर्जे बना पाएं। काफी दुविधा है कि उच्चतम न्यायालय ने 99वां संवैधानिक संशोधन अवैध
ठहराया, जिससे कि नेशनल ज्यूडिशियन एप्वाइंटमेंट कमीशन
की स्थापना नहीं हो पाई। पूरे विष्व में कहीं भी जज स्वयं जज की नियुक्ति नहीं
करते। भारत ही इस विषय में एक ऐसा अनोखा देश है। मैं पुनः सरकार से आग्रह करता हूं
कि संविधान में संशोधन किया जाए और न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं विधायिका में समानता बरकरार रहे। यह उम्मीद करना बिल्कुल
ही गलत है कि हाल में प्रचलित कोलेजियम सिस्टम में दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं को भागीदारी
मिलेगी। ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विस की स्थापना के पक्ष में चीफ जस्टिस कांफ्रेंस
ने 1961, 1963 और 1965 में बयान दिया। भारत सरकार ने 42वां संवैधानिक
संशोधन 1976 में पास किया लेकिन इसे भारत सरकार के
राजपत्र में नहीं लाया गया और न ही इस संशोधन का अभी प्रयोग किया जा रहा है।
माननीय उच्चतम न्यायालय ने 1991 में आदेश दिया था
कि ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विस की स्थापना की जाए और इस विषय में उपयुक्त कदम
उठाने हेतु भारत सरकार को आदेश दिया। माननीय उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने
भी यह कहा कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय जैसे संवैधानिक संस्थान आरक्षण से
बच नहीं सकते। इसी तरह का दूसरा आदेश माननीय उच्चतम न्यायालय ने 2016 में दोहराया। मैं भारत सरकार से विनती करता हूं कि ऑल इंडिया ज्यूडिशियल
सर्विस की स्थापना में और विलंब न हो और इस सर्विस में अजा/जजा, अल्पसंख्यक एवं महिलाओं की भूमिका अहम रखी जाए, जैसा कि वर्तमान समय में नहीं है। यदि माना जाए कि आरक्षण शासन में भागीदारी के लिए
है तो एससीपी एवं टीएसपी गरीबी उन्मूलन और विकास के लिए हैं। एससीपी एवं टीएसपी के
सिद्धांत के अनुसार आरक्षण प्रतिशत के अनुसार बजट में भी भागीदारी होनी चाहिए।
जरूरत के अनुसार कभी भी फंड आबंटित नहीं किया गया और जितना आबंटित किया गया, वह भी अजा/जजा वर्ग के विकास
में नहीं लगाया गया। इसका उद्देष्य यह होना चाहिए कि व्यक्तिगत या पारिवारिक विकास
के लिए सीधा इन पैसों का इस्तेमाल किया जाए, लेकिन यह
कभी होता नहीं। अक्सर यह देखा गया है कि एस.सी.पी. एवं टी.एस.पी. का फंड सार्वजनिक
कार्यों में लगाए जाते हैं, जो कि बिल्कुल अनुचित है।
हमेषा से यह मांग रही है कि केन्द्र, प्रदेश और जिला
स्तर पर कमेटियां गठित हों, जो एससीपी, टीएसपी फंड के लिए योजना बनाएं और उनकी निगरानी भी करें। इसलिए मैं मांग
करता हूं कि आगामी वर्ष में एससीपी एवं टीएसपी के फंड उनके उद्देश्ययों के अनुसार
आबंटित और खर्च हों। महोदय, शिक्षा ही एकमात्र ज़रिया है, जिससे कि मानव संसाधन की कल्पना की जा सके। दुखद बात यह है कि अक्सर
अजा/जजा वर्ग के छात्र सरकारी स्कूल, कॉलेज एवं
विष्वविद्यालय में पढ़ने के लिए मजबूर होते हैं, क्योंकि
वे निजी क्षेत्र में गुणवत्ता वाली शिक्षा का खर्च नहीं वहन कर पाते। सरकार ने
सर्वशिक्षा का कानून तो लागू किया लेकिन गुणवत्ता के बिना यह बेकार है। यह भी देखा
गया है कि छात्रवृत्ति में बढ़ोत्तरी महंगाई की दर से नहीं बढ़ाई गयी है, जिसकी वजह से काफी छात्र शिक्षा का खर्च नहीं वहन कर पा रहे हैं। लंबे
अर्से से अजा/जजा वर्ग के छात्रों के लिए छात्रावास एवं स्कूल निर्माण का कार्य
लंबित है, जबकि यह कार्य और तेजी से होना चाहिए था। संविधान की धारा 370 की वजह से जम्मू व
कष्मीर के अजा/जजा वर्ग के लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता। इसका कारण यह है
कि आरक्षण कानून संसद से पास होने के बाद भी जम्मू एवं कष्मीर विधान सभा से पास
हुए बिना यह कानून वहां लागू नहीं हो पाता। इस कारण से 77वां, 81वां एवं 82वां एवं 85वां संवैधानिक संशोधन जम्मू व कष्मीर में लागू नहीं है, जिसकी वजह से लाखों लोगों को परेषानी का सामना करना पड़ रहा है और अपने हक
भी खोने पड़ रहे हैं। यदि प्रदेश सरकार भारतीय संसद के कानून मानने को तैयार नहीं
तो कम से कम उन्हें अपनी विधान सभा का आरक्षण कानून 2004 को लागू करना चाहिए। मैं आपसे आग्रह करता हूं कि जम्मू एवं कष्मीर की
सरकार को यह निर्देश दें कि अजा/जजा वर्ग के हक छीनना बंद करे। भारतीय सेना के चमार रेजीमेंट को 1946 में बंद कर दिया
गया, जबकि जाति आधारित अन्य रेजीमेंट जैसे जाट, राजपूत आदि अस्तित्व में हैं। सिर्फ चमार रेजीमेंट को ही क्यों बंद किया
गया? यदि रक्षा मंत्रालय ने इस उद्देष्य से बंद किया कि
जाति आधारित रेजीमेंट नहीं होनी चाहिए तो जाट एवं राजपूत रेजीमेंट को भी तुरंत बंद
कर दिया जाना चाहिए। यदि यह विचार नहीं है तो भारतीय सेना में दलितों की भागीदारी
के लिए चमार रेजीमेंट के साथ-साथ बाल्मीकि, खटीक, धानुक, धनगड़ इत्यादि रेजीमेंट का अतिशीघ्र गठन
किया जाए। निजीकरण ने ऐसे शोषण का रूप धारण कर लिया है, जो कि विष्व में शायद ही
अन्यत्र देखने को मिलता है। चौथी श्रेणी की लगभग सभी भर्तियां ठेके पर की जा रही
हैं, जहां वेतन तो कम है ही, ये वेतन भी मजदूरों को पूरा नहीं दिया जाता। ठेकेदारी प्रथा को तुरंत बंद
करना चाहिए और जहां यह प्रथा चल रही है, वहां सरकार की
नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि ये देखें कि मजदूरों का वेतन बिना कटौती के उनके बैंक
खातों में जमा हो। इस ठेकेदारी प्रथा के सबसे ज्यादा शिकार सफाई कर्मचारी हैं। एक प्रदेश से बना जाति प्रमाण-पत्र को सभी प्रदेशों
में मान्यता मिले। खाली पड़े पदों को विशेष भर्ती अभियान चलाकर भरा जाए। दिल्ली में 20 सूत्रीय कार्यक्रम
में आबंटित जमीन के मालिकों को 30-40 साल बाद भी
मालिकाना हक नहीं दिया गया है। दिल्ली के मंत्रिमंडल द्वारा मालिकाना हक प्रदान
करने के लिए मंजूरी दे दी गयी है परन्तु यह मामला अभी भी गृहमंत्रालय में लंबे समय
से लंबित है। इसलिए मैं आग्रह करता हूं कि सरकार इन्हें अतिशीघ्र मालिकाना हक
दिलाए। शारांश अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय
परिसंघ की मुख्य मांगों पर रैली में भाग लेने वाले सभी लोगों ने प्रस्ताव पास किया, जिनका दुबारा नीचे उल्लेख
किया जा रहा है। 1. पदोन्नति
व निजी क्षेत्र में आरक्षण 2. आरक्षण
कानून बनाओ 3. जाति आधारित जाट, राजपूत आदि की तरह चमार रेजीमेंट के साथ-साथ माला - मादिगा,बाल्मीकि, खटीक, धनगर आदि रेजीमेंट भी बनाकर सेना में भागीदारी सुनिश्चित हो। 4. साउथ
अफ्रीका की क्रिकेट टीम में 6 अश्वेत के कोटे की
तर्ज पर भारत में भी दलितों-आदिवासियों व पिछड़ों को आरक्षण दिया जाए। 5. दिल्ली
सरकार लाखों कर्मचारियों को पक्का करे 6. सेना और
उच्च न्यायपालिका में आरक्षण 7. सफाई काम
में ठेकेदारी प्रथा को समाप्त करना 8. बैकलॉग
पदों को भरने हेतु विशेष भर्ती अभियान 9. समान
शिक्षा एवं भूमिहीनों को भूमि 10. अनुसूचित जाति
योजना एवं जन जाति उप योजना कानून बनाओ 11. एक राज्य का
जाति प्रमाण-पत्र सभी राज्यों में मान्य हो 12. महंगाई की दर
से छात्रवृत्ति में बढ़ोत्तरी 13. राष्ट्रीय
न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन और उसमें आरक्षण 14. जम्मू व
कश्मीर में धारा 370 हटाया जाए और आरक्षण लागू हो 15. दिल्ली में 20 सूत्रीय कार्यक्रम में आबंटित भूमि का मालिकाना हक 16. एससी/एसटी
बैंक की स्थापना एक लाख करोड़ रूपये की राशि से हो महोदय, मैं, पूरे देश से आए परिसंघ के पदाधिकारियों जैसे - ब्रह्म प्रकाश, परमेन्द्र, रवीन्द्र सिंह, एन. डी. राम, रामनंदन राम (दिल्ली), धर्म सिंह, केदारनाथ, सुशील कमल, नीरज चक, निर्देश कुमारी (उ.प्र.), सिद्धार्थ भोजने, दीपक तभाने, संजय कांबले, सुनील जोडे, सिद्धार्थ कांबले, सूर्यकांत किवांडे (महाराष्ट्र), एस.पी. जरावता, डॉ. मुख्तियार सिंह, महासिंह भूरानिया (हरियाणा), तरसेम सिंह, दर्शन सिंह चंदेढ़, रोहित सोनकर (पंजाब), विश्राम मीना, रंजीत मीना, एम.एल. रासु, मुकेश मीना (राजस्थान), हरिश्चंद आर्या (उत्तराखंड), आलेख मलिक, डी.के. बेहरा (उड़ीसा), परमहंस प्रसाद, नरेन्द्र कुमार (म.प्र.), रामूभाई वाघेला, एन.जे. परमार, (गुजरात), एस. करुपइया, पी.एन. पेरुमल (तमिलनाडु), के. कृष्णन कुट्टी, बाला कृष्णन (केरल), मधु चन्द्रा (मणिपुर), के. महेश्वर राज, प्रकाश राठौर, जे. बी. राजू (तेलंगाना), डॉ. श्याम प्रसाद (आंध्र प्रदेश), अनिल मेश्राम, हर्ष मेश्राम (छ.ग.), कमल कृष्ण मंडल, सुबराता बातूल, रामेश्वर राम, सपन हलदर, पी. बाला (प. बंगाल), मधुसूदन कुमार, दिनेश कुमार, बी. एन. प्रसाद, एल.एम. ओरांव (झारखंड), आर.के. कलसोत्रा (जम्मू व कश्मीर), मदन राम, कुमार धीरेन्द्र, शिवधर पासवान (बिहार), जे. श्रीनिवासलू, चन्नप्पा (कर्नाटक), सीताराम बंसल (हि.प्र.), प्रदीप बास्फोर (असम) के साथ आपके विचारार्थ एवं आवष्यक कार्यवाही हेतु यह सौंप रहा हूं। सधन्यवाद, आपका, (डॉ. उदित राज) |