(06/01/2017) 
इस नए साल में हारते-जीतते, लड़ते-भिड़ते रिहाई आंदोलन
अपने 10 वें वर्ष में है। फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए और कैदखानों में बंद उन बेगुनाहों की आवाज बनने की कोशिश हुई

जिनको आतंकी कह उनको,उनके परिवार और समाज को बदनाम करने की कोशिश की गई। इस सफर में जहां आज बहुत से नौजवान जेलों से अदालती प्रक्रिया के तहत रिहा हुएतो कहीं फर्जी गिरफ्तारियों और मुठभेड़ों में मारने की कोशिशें भी नाकाम की गईं। इस दरम्यान सूबे को सांप्रदायिकता की आग में झोंकने वाले फासिस्ट समूहों और राज्य मशीनरी को भी बेनकाब किया गया। इस बढ़ते सफर में सूबे के सबसे अधिक दलित उत्पीड़न क्षेत्र बुंदेलखंड के सवालों को भी उठाया गया। यह लंबा सफर पीड़ितों के परिवारों व उत्पीड़न क्षेत्रों के साथियों के सघर्षों के बल पर तय हुआजिनके बगैर यह लड़ाई संभव नहीं हो सकती थी। 

 

आज जब यूपी चुनाव की घोषणा हो चुकी हैऐसे में रिहाई मंच मानता है कि इंसाफ का सवाल सूबे की चुनावी राजनीति के प्रमुख एजेण्डों में होना चाहिए है। महिलादलितमुस्लिम उत्पीड़न में अव्वल स्थान पर रहने वाले इस सूबे में इंसाफ अहम सवाल है। जिस सूबे के बुंदेलखंड का किसान आत्महत्याओं के लिए जाना जा रहा हो वहां जिस किसी विकास की बात हो रही है वो उसको बेमानी करार दे देता है। गरीबों को दो जून की रोटी मयस्सर करने वाली सरकारी योजना पीडीएस का हाल किसी से छिपा नहीं है और बात हो रही है विकास की। यह विकास भी अच्छे दिनों’ और फील गुड’ जैसे दिनों की ही याद दिलाता है।

 

निश्चित ही नाइंसाफियों की यह दास्तान लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर करेगा। ऐसे में रिहाई मंच इंसाफ के सवाल पर बनाए जा रहे अपने मांग पत्र में आपसे सुझाव व सहयोग की अपेक्षा करता है।


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