(26/11/2013) 
पुनर्वास का सच , पच्चीस साल , हज़ारों करोड़ रूपए और एक हक़ीक़त भी
आखिर पच्चीस साल पुरानी स्लम कॉलोनी एक इतिहास बन गयी और साथ ही उस वक़्त के जिम्मेदार अधिकारियों की गलतियों पर भी पर्दा पड़ गया। भारत पाक के विभाजन की याद दिल गए ये दृश्य। रोते बिलखते बच्चे और बड़े। किसी आतंकवादी की पेश आया चंडीगढ़ प्रशासन।


गरीब  को भी  सिर   पर  छत  मिलनी  चाहिए  इससे  कोई  इंकार  नहीं  कर  सकता  लेकिन  इन  की   आड़  में  नेताओं  और  अफसरों  के  लोग  अपना  मुनाफा  तलाशने  में  लग  जाते  हैं। अब  चंडीगढ़ की इसी कॉलोनी 5 की बात करें तो  सैकड़ों  लोग  सरकारी  नौकरी  में  रहते  हुए  इस कॉलोनी  में  रह  रहे  थे।  सैकड़ों  झुग्गियाँ   किराये  पर  दी  गयी  थीं।  सैकड़ों  लोग  इनमे  ऐसे  हैं  जिनके  पास   पहले  से  कहीं  ना   कहीं  अच्छे  घर  हैं , अनेकों  लोग  हैं  जो  एक  अरसे   से  इनकम टैक्स भी  भरते  हैं  और  सरकारी  तंत्र  को  इसकी   कानों  कान  खबर  ना   हो  ऐसा  तो  सम्भव  ही  नहीं।   ये  जरूरत  मंद  लोगों  के  हक़  पर  डाका  नहीं  तो  और  क्या  है।  
दिहाड़ी दार   मजदूर  और  दो  जून  की   रोटी  के  जुगाड़  में  रात  दिन  पिस   रहे  लोग  आज  भी  सरकार   की   इस  सुविधा  से  वंचित  हैं।   क्योकि  उन्हें  जोड़  तोड़  करना  नहीं  आता। उन्हें पुनर्वास के अंतर्गत घर नहीं मिला और झोंपड़ा टूटने के बाद  वो  आज  भी  खुले  आसमान  के  नीचे  रातें  गुजारने   को  मजबूर  हैं।   ऐसी  नीतियां  जरूरतमंदों ,गरीबों  और  बेघर  लोगों  को  एक  आसरा  देने  के  लिए  बनाई  जाती  हैं  परन्तु भ्रष्ट तंत्र के कारण  आम तौर पर इनका  लाभ  उन्हें  नहीं मिल पाता और कुछ  साधन  संपन्न  लोग इससे फायदा उठा लेते हैं।
इस  विषय  में  सरकार  और स्थानीय प्रशासन  की   दोगली  निति  भी  उजागर  होती  है  एक  और  जहाँ  गरीबों  की  भलाई की  आड़  में कुछ  सरकारी  लोग  और  नेतागण  सरकारी  जमीनों  पर  कब्ज़ा  करके  इस  प्रकार  के  लाभ  उठाते  हैं।   वहीँ  दूसरी  ओर  अपनी  खरीदी  हुई  जमीन  परअपने  नाम  पर  बिजली  और पानी  के  कनेक्शन  लेकरवर्षों   से  रह  रहे  लोगों  के  घर  अतिक्रमण  रोकने के नाम पर प्रशासन  तोड़  देता  है।   लोग  रातों  रात   सड़क  पर  ला  दिए  जाते  हैं।  धरने  प्रदर्शन  यहाँ  तक  कि  आमरण  अनशन  तक  से  भी  कोई  राहत  नहीं  मिलती। 
पुनर्वास  के  नाम  पर  हजारों  करोड़  रूपए  लुटा  कर  वाहवाही  लूटने  वाली  सरकार   ने  कभी  भी  ये  जानने  की   कोशिश   नहीं  कीकि  लाभार्थियों  में  अधिकांश लोग  जोड़  तोड़  करके  आने  वाले  भी  हैं  जिनके  कारण  सही  जरूरत 
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