(18/12/2013) 
न्‍यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग
विधि और न्‍याय तथा संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री कपिल सिब्‍बल ने आज लोक सभा में आज एक प्रश्‍न के उत्‍तर में जानकारी दी की सरकार को छत्‍तीसगढ़, मद्रास और गुजरात उच्‍च न्‍यायालयों की कार्यवाहियों में क्रमश: हिन्‍दी, तमिल और गुजराती के प्रयोग के संबंध में राज्‍य छत्‍तीसगढ़, तमिलनाडु और गुजरात सरकारों से प्रस्‍ताव प्राप्‍त हुए हैं।

 उच्‍चतम न्‍यायालय की पूर्ण पीठ ने 11 अक्‍तूबर, 2012 को आयोजित अपनी बैठक में उच्‍च न्‍यायालयों में हिन्‍दी तथा प्रादेशिक भाषाओं के उपयोग के प्रस्‍तावों पर विचार किया है और 1997 तथा 1999 में अंगीकृत, प्रस्‍तावों को स्‍वीकार नहीं करने के पूर्ण पीठ न्‍यायालय के पूर्व के समान संकल्‍पों को दोहराया है। सरकार ने, इसका पालन करने का विनिश्‍चय किया है। 

संविधान के अनुच्‍छेद 348(2) के अधीन किसी राज्‍य का राज्‍यपाल, राष्‍ट्रपति की पूर्व सहमति से उन उच्‍च न्‍यायालयों की कार्यवाहियों में, जिनका मुख्‍य स्‍थान उस राज्‍य में है, हिन्‍दी या किसी अन्‍य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा। उपबंध के अनुसार चार राज्‍यों अर्थात बिहार, मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान और उत्‍तर प्रदेश के राज्‍यपाल अपने राज्‍यों में उच्‍च न्‍यायालयों की कार्यवाहियों में अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्‍त हिन्‍दी का उपयोग करने के लिए प्राधिकृत हैं। अन्‍य राज्‍यों में, उनके संबंधित उच्‍च न्‍यायालयों की भाषा अंग्रेजी बनी हुई है। 

मंत्री महोदय ने सदन को यह भी जानकारी दी कि उच्‍चतम न्‍यायालय ने 1990 और 1996 में पूर्ण पीठ में यह संकल्‍प किया था कि उच्‍चतम न्‍यायालय की कार्यवाहियों में हिन्‍दी को पुन:स्‍थापित करना व्‍यावहारिक नहीं था। 
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