(04/12/2022) 
आखिर जीवित गुरु की साक्षात पूजा क्यों नहीं करनी चाहिए - डॉ एच एस रावत
हमारे शास्त्रों में जीवित मनुष्य की या किसी गुरु की पूजा करना वर्जित है । सिर्फ उनका आदर और सम्मान तथा चरण वंदना की जा सकती है । इसका मुख्य कारण है कि गुरु मनुष्य जीवन मे वो सब काम करता है जो एक साधारण मनुष्य करता है ।

इसलिए जब गुरु ज्ञान रूप में ध्यान अवस्था में होता है तो उसका ध्यान करने से लाभ अवश्य मिलेगा । अगर गुरु काम , क्रोध , मोह , मद और लालच की वृतिओं में लिप्त है तो निश्चित तौर पर भक्त इस सब चीज़ों का भागी बनेगा । भक्त यह कह कर अपना पीछा नहीं छुड़ा सकता है कि यह गुरु का कर्म है हमे गुरु के कर्मो से क्या लें लेना है । 

अगर गुरु toilet की सीट पर बैठा है और शौच कर रहा है तो उस समय वो गुरु आपको सकारात्मक ऊर्जा नहीं दे सकता है । क्योंकि उस समय वो गुरु अपनी नकारात्मक ऊर्जा का विसर्जन कर रहा होता है । अगर भक्त उस समय अपने उस गुरु की पूजा करेगा तो भक्त सारी नकारात्मक ऊर्जा ग्रहण कर लेगा । 

इसी प्रकार गुरु अगर ध्यान से , मन से या शारीरिक रूप से समागम में रत है या मन में दूषित विचार आ रहे हैं और उस समय भक्त गुरु की पूजा मे लीन हो जाता है तो उस समय गुरु की सारी बुराइयाँ भक्त में प्रवेश कर जायेंगी । इस लिए शास्त्रों में गुरु की पूजा को वर्जित बताया गया है । गुरु के ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए । उसकी फोटो लगाकर उसके चित्र की पूजा करने से भक्त को पाप लग जाता है तथा भक्त के अंदर भी बुरे विचार आने शुरू हो जाते हैं । जीवित मनुष्य पर पाँच तत्त्वों व 5 कर्मेन्द्रियों और 9 ग्रहों का प्रभाव रहता है । इसलिए गुरु वो सब सोचता है जो साधारण मनुष्य सोचता है । 24 घंटे में हर मनुष्य पर चंद्रमा की कलाओं का प्रभाव रहता है । 

इसलिए आपने देखा होगा कि बहुत से  शिष्य अपने गुरु के लिए जान की वाजी लगा देते हैं । तथा गुरु के अपमान का बदला लेने के लिए हत्या पर ह्त्या कर देते हैं । अगर गुरु का सच्चा ज्ञान का आवरण भक्त ने ग्रहण किया होता तो भक्त के चित और मन में ऐसे हत्या के विचार न आते । जिस मनोभावना से गुरु ज्ञान देता है उसी भावना से भक्त ज्ञान ग्रहण करता है । कई दुष्ट भाव वाले गुरु भगवान कृष्ण का सहारा लेकर गोपियों के साथ नाच गान करते हैं । और कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण भी तो करते थे । अगर योगी भगवान श्री कृष्ण के चरित्र का हनन किया जा सकता है तो आजकल कलयुग के गुरु की क्या विसात है कि उनकी पूजा की जाये । 

इसलिए भक्ति भाव का सिद्धान्त यह शिक्षा देता है कि जिस भाव से आप भक्ति करोगे तो वो भाव आपके पास वापिस आता है । लेकिन यह परम ब्रह्म सत्य भगवान के साथ ही संभब है । अगर आपने सच्चे भाव से किसी गुरु की पूजा की और गुरु का भाव उस समय अच्छा नहीं है तो आपको उस गुरु के बुरे भाव ही आएंगे । योग विज्ञान भी यही कहता है कि जिस ध्यान से आप किसी की साधना करते हो तो उस के बुरे या भले विचार आपका ध्यान ग्रहण करता है । इसलिए पूजा भगवान की ही करनी चाहिए न कि किसी गुरु की । गुरु का ज्ञान ग्रहण करना चाहिए । गुरु एक मार्गदर्शक हो सकता है न कि भगवान का स्थान ले सकता है । और अच्छे व ज्ञानी गुरु का फर्ज बनता है कि वो अपने चित्र की पूजा न करवाये । अपने नाम के मंत्रों का जाप न करवाये । अगर कोई गुरु अपने नाम के मंत्र जपने को बोलता है तो घोर पाप है । 

इसलिए भक्त गुरु के साथ साथ स्वयं भी पाप का भागी बन जाता है ।
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