(15/08/2014)
श्रीमदभागवत कथा सप्ताह के दूसरे दिन कार्यक्रम से पूर्व राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया
पूर्वी दिल्ली 15 अगस्त। छत्रपति शिवाजी समाज कल्याण एवं शिक्षा प्रचार समिति द्वारा आयोजित 11वें भव्य कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव मटकी फोड कार्यक्रम गोविंदा आला रे एवं श्रीमदभागवत कथा सप्ताह के दूसरे दिन आज सुप्रसिद्ध कथावाचक श्रद्धेय श्री गौरव कृष्ण जी महाराज ने अपने व्याख्यान में कहा कि भगवान में तन्मयता ही
भागवत कथा का फल है। आज की कथा में श्री कपिल भगवान चरित्र, श्री कपिल
गीता, श्री ध्रुव चरित्र पर महाराज जी ने अपना व्याख्यान दिया।
संस्था
द्वारा पूर्वी दिल्ली के डीडीए मैदान जागृति एन्कलेव दिल्ली-92 में आयोजित
किए जा रहे इस कार्यक्रम के दूसरे दिन का शुभारंभ आज तिरंगा ध्वज फहराकर
राष्ट्रगान व आजादी का जश्न मनाते हुए किया गया। इस मौके पर संस्था
संस्थापक व भाजपा नेता श्री जय भगवान गोयल एवं कथावाचक श्री गौरव कृष्ण जी
महाराज ने संयुक्त रूप से तिरंगा फहराकर सभी को स्वतंत्रता दिवस की
शुभकामनाएं दी और देश की प्रगति के लिए कार्य करने का आवाह्न किया।
आज के
कार्यक्रम में कार्यक्रम के मुख्य प्रायोजक आमात्रा ग्रुुप के डायरेक्टरर्स
श्री महेन्द्र बंसल, श्री सुशील चावला व मायो इण्टरनेश्नल स्कूल के
चैयरमेन श्री एस.पी. जालान एवं जागृति एन्कलेव मंदिर के प्रधान श्री
मोहनलाल गुप्ता व अन्य गणमान्य अतिथि सम्मलित हुए।
श्रीमदभागवत
कथा के द्वितीय दिवस की कथा का विस्तार से व्याख्यान करते हुए श्रद्धेय
श्री गौरव कृष्ण महाराज ने बताया कि श्रीमदभागवत कथा सुनने मात्र से ही
व्यक्ति की भागवान में तन्मयता हो जाती है। उन्होंने कहा कि धर्म जगत में
जितने भी योग यज्ञ, तप व अनुष्ठान आदि किए जाते हैं उन सभी का एक ही लक्ष्य
होता है कि हमारी भक्ति भगवान में लगी रहे। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत
के प्रारंभ में सत्य की वंदना की गई है क्योंकि सत्य व्यापक एव सर्वत्र
होता है और उसकी चाह सभी को होती है। पिता अपने पुत्र से सत्य बोलने की
अपेक्षा रखता है, भाई भाई से सत्य पर चलने की अपेक्षा करता है, यहां तक की
चोर चोर आपस में सत्यता रखने की अपेक्षा करते हैं। इसलिए आरंभ में श्री वेद
व्यास जी ने सत्य की वंदना के द्वारा मंगलाचरण किया है और भागवत कथा
विश्राम भी सत्य की वंदना के द्वारा ही किया है।
उन्होंने
कहा कि श्रीमदभागवत में निष्कपट धर्म का वर्णन किया गया है जो व्यक्ति
निष्कपट हो उसे ही कथा कहने एवं कथा सुनने का अधिकार है। उन्होंने बताया कि
श्रीमद्भावगत कथा श्रवण करने का संकल्प लेने मात्र से ही अनुरूध के पितामह
श्रीकृष्ण भक्त के ह्दय में आकर के अवरूद्ध हो जाते है।
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