(19/10/2014) 
पशु बलि का औचित्य कितना सही कितना गलत- बिट्टू मेहता
शिवरात्री जिसमें भगवान शिव की पूजा की जाती है और नवरात्री जिसमें मां दुर्गा की पूजा की जाती है इन पर्वों के माध्यम से शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों का विकास किया जाता है।

लेकिन कुछ लोग आज भी इन पवित्र पर्वों के अवसर पर हजारों बकरों को बलि के नाम पर मौत के घाट उतरा जाता है इसके लिए पशुओं को असहनीय पीड़ा सहन करनी पड़ती हैं। कई जानवर तो अधमरे होते हैं जिससे उनकी मौत बड़ी भयनाक होती है। क्या इन सब से देवी-देवता और ईश्वर को खुशी मिलती है,  घोड़े, हाथी और शेर की बलि तो नहीं दी जा सकती है। कमजोर बकरी की बलि देना क्या यह सिद्ध करता है कि देवी,देवता या ईश्वर दुर्बल या कमजोर का घातक है,

देवी-देवता-ईष्वर को दीनबंधु, करूणानिधि जैसे नामों से जाना जाता है तो फिर उनके लिए एक निर्दोष जानवर की बलि देना कहां तक युक्तिसंगत है। जैविक दृष्टि से मनुष्य भी एक पशु है, धर्म, संस्कार एवं अच्छे कर्म से ही वह एक सामाजिक प्राणी बना हुआ है। यदि पशुता की बलि को बढ़ावा देंगे तो मनुष्य एक दिन इतना हिंसक हो जाएगा कि आदमी ही आदमी को मार कर खाने लगेगा। इसलिए देवी-देवता के नाम पर निर्दोष पशुओं की बलि चढ़ाना और अपने स्वार्थ के लिए मांस का भक्षण करना छोड़ दो, नही तो एक दिन मनुष्य इतना हिंसक हो जाएगा कि इंसान नही इंसान का गला घोंट कर उसके खून से अपनी प्यास बुझाएगा।

जो लोग धर्म के नाम पर बलि प्रथा करते हैं उन सभी देवता समाज के लोगों से एक बात जाननी है कि हिन्दू ग्रंथ के किस अध्याय में यह लिखा है कि पशु की बलि से देवी-देवता-ईश्वर खुश होते हैं और अगर किसी ग्रंथ में पशु बलि का उल्लेख किया गया है तो उसमें पशु बलि  से मतलब है कि यदि बलि देनी है तो पशु की नहीं अपितु मनुष्य के अन्दर छुपे हुए पशुता की देनी चाहिए। पशु मनुष्य के अन्दर किसी भी रूप में हो सकता है लोभ, मोह, काम क्रोध इत्यादि इन सब की बलि देकर तुम्हें उद्धार मिलेगा। इसलिए मेरी सभी देवता समाज के लोगों से हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि निर्दोष बेजुबान जानवरों की बलि बंद करके उसकी जगह नारियल को फोड कर एक नई प्रथा की शुरूआत करें।लेखक बिट्टू मेहता, शिमला

Copyright @ 2019.