(06/02/2015) 
तम्बाकू निषेध: कानून ही नहीं, पालन भी जरूरी है
"तम्बाकू से कैंसर होता है", "धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है", "शराब विष से भी भयंकर है"। यह बताने के लिए देश में प्रतिवर्ष कितने रूपये व्यय हो रहे है ? इसके प्रयोग को रोकने के लिए जो नियम कानून बनाये गये है, क्या वास्तव में उसका पालन भी हो रहा है ? इसके बारे मंे सोचा कभी आपने। यदि नही सोचा तो अब सोचिए, जिस देश में आबकारी महकमें द्वारा अर्जित आय से मद्य निषेध विभाग का खर्च चलता हो उस देश में क्या सिर्फ नियम, कानून बना देने मात्र से ही इन लतों पर रोक लगायी जा सकती है अथवा कुछ और करने की आवश्यकता है ? यदि नही तो इससे बड़ी विसंगति की कल्पना फिलहाल नही की जा सकती।

यह सत्य है कि तम्बाकू के अलावा तमाम अन्य नशीली वस्तुओं का प्रयोग इन दिनों काफी बढ़ा है। जिसके चलते वर्तमान पीढ़ी को तमाम शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। नशे की प्रवृत्ति समाज को दीमक की भांति खोखला करती जा रही है। इसके बाद भी हम सचेत नही हो पा रहे हैं। जब हम स्वेच्छा से विषपान कर रहे हो तो सरकार हमे कहां तक बचाएगी। इसके बावजूद भी रोकथाम के लिए ढे़र सारे नियम कानून बनाये गये हैं। लेकिन दुर्भाग्य कि न हम उन पर अमल कर रहे हैं और न ही हाकिम उसका पालन। ऐसी दशा में हमें छोड़िए, हमारी भावी पीढ़ी का क्या होगा ? इस पर नहीं सोचा जा रहा है।
    आंकडे़ बताते है कि दुनिया में प्रति वर्ष 54 लाख लोग तम्बाकू के सेवन से जान गंवाते है। जिसमें भारतीयों की संख्या 8 लाख के लगभग है जो क्षयरोग, एड्स और मलेरिया जैसे खतरनाक रोगों से होने वाली मौतों से अधिक है। अपने देश में प्रतिदिन 2200 से अधिक लोग तम्बाकू सेवन के कारण मरते हैं। यानी साढ़े छः सेकेण्ड़ में एक स्मोकर की मौत होती है। मुंह के कैंसर से पीड़ितो में 95 प्रतिशत लोग तम्बाकू सेवन के आदी होते हैं। तम्बाकू सेवन करने वाले लोग अपने हमउम्र से दस वर्ष बड़े लगते हैं। जिनकी मौत भी पहले होती है।
    जानकार बताते है कि तम्बाकू के धुएं में लगभग 4 हजार रासायनिक तत्व होते हैं जिसमें 200 ज्ञात विष तथा 60 कैंसर पैदा करने वाले तत्व भी होते हैं। इनके प्रयोग से नब्ज की गति और रक्त चाप को बढ़ावा मिलता है। रक्त की नलिकाएं सिकुड़ती हैं और हृदय के सामान्य कार्य प्रभावित होते हैं। जब तम्बाकू इतना घातक है तो शराब की घातकता का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। इस बीच नकली और जहरीली शराब के दुष्परिणाम बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश सहित देश के तमाम प्रांतो में सामने आ चुके है। उत्तर-प्रदेश के गोरखपुर, वाराणसी, प्रतापगढ़ तथा अब उन्नाव का ताजा उदाहरण सीख लेने के लिए पर्याप्त है।
    इन नशीली वस्तुओ के प्रयोग से होने वाली हानियों से अपने नागरिको को बचाने और स्वस्थ समाज की परिकल्पना को साकार करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सदस्य देशों के साथ की गयी अर्न्तराष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण संधि के तहत भारत सरकार ने तम्बाकू का प्रयोग रोकने के लिए 18 मई 2003 को विस्तृत तम्बाकू नियंत्रण कानून पारित किया जिसे सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद (विज्ञापन का प्रतिशेध और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, प्रदाय और वितरण का विनिमय) अधिनियम 2003 नाम दिया गया है। जो सम्पूर्ण भारत में प्रवृत्त है। जिसमें 2 अक्टूवर 2008 को संशोधन भी किया गया है।
रोकने को ये हैं नियम
तम्बाकू उत्पाद के कुप्रभाव को रोकने के लिए उक्त संशोधित और प्रभावी अधिनियम की धारा 4 में सार्वजनिक स्थानांे पर धूम्रपान को अपराध घोषित किया गया है। इसके तहत ऐसे सभी स्थानांे पर हानियों को प्रदर्शित करने वाला बोर्ड़ लगाने का निर्देश है। जिसके उलंघन पर 200 रूपये के जुर्माने का प्राविधान है। लेकिन तीस कमरों से ज्यादा वाले होटल, तीस से अधिक व्यक्तियों के बैठने को क्षमता वाले भोजनालयों के साथ थोड़ी नरमी दिखायी गयी है। कानूनी प्रविधानो के तहत एयरपोर्ट में अलग से स्मोंकिंग जोन बनाया जा सकता है।
    इस अधिनियम की धारा 5 में तम्बाकू उत्पादों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष विज्ञापनांे को प्रतिबन्धित किया गया है। लेकिन दुकानों पर निर्धारित आकार में हानियों को प्रदर्शित करने वाला बोर्ड़ भी लगा होना चाहिए। फिल्मांे में तम्बाकू दृष्य भी अपराध के दायरे में रखे गये हैं। इसके उलंघन पर 1 से पांच साल की कैद व 1 हजार से पांच हजार तक के जुर्माने का प्रविधान है। जबकि धारा 6 में 18 वर्ष से कम आयु वर्ग को अथवा उसके द्वारा तम्बाकू उत्पाद बेचने को अपराध घोषित किया गया है। नियम तो यहां तक है कि तम्बाकू उत्पाद बिक्री स्थान पर नाबालिग दिखाई भी न पडे़। और शिक्षण संस्थानो के 100 गज के दायरे में ऐसे उत्पादो की बिक्री अपराध है। पर क्या इसका पालन हो रहा है। जबकि इसके उलघंन पर 200 रूपये के जुर्माने का प्राविधान है। धारा 7 में चित्रित वैधानिक चेतावनी के बिना तम्बाकू उत्पाद के पैकेट बेचना अपराध घोषित किया गया है। जिसके उलंघन पर 2 से 5 साल की कैद व 1 हजार से 10 हजार के जुर्माने का प्राविधान है।
क्या होता है इसका पालन
इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि तम्बाकू उत्पादों के प्रयोग को रोकने के लिए जो नियम कानून बनाये गये हैं उनका वास्तव में पालन नही हो पा रहा है। जिसका परिणाम विकृति के रूप सामने आ रहा है। नतीजा ये है कि सार्वजनिक व प्रतिबन्धित स्थानो पर भी खुलेआम धूम्रपान जारी है। दुकानों पर तो निर्धारित सूचनात्मक बोर्ड भी नहीं लगे है। नाबालिक तम्बाकू उत्पादों की दुकान खोल बैठे है और तमाम नाबालिक इसकी खरीद्दारी भी कर रहे है। यहीं नहीं तमाम स्कूलों के गेट के निकट तम्बाकू उत्पादकों की दुकाने सजी है और तमाम स्कूलों के शिक्षक अपनी छात्रों से तम्बाकू उत्पाद मगवाते है। क्या यहां नियमों और कानूनों का उल्लघन नहीं होता। यदि होता है तो क्या प्राविधान के अनुसार कार्यवाही की जाती है। और यदि नहीं तो इसका जिम्मेदार कौन है। 
ऐसा क्यों नहीं करते 
तम्बाकू उत्पादों के प्रयोग से होने वाली हानियों से बचाने के लिए नियम कानून पालन के साथ साथ प्रत्येक नागरिक को जागरूक होना पडेगा और शासन को भी गंभीर अख्तियार करने होगें। इसके पीछे होने वाले राजस्व लाभ की चिन्ता छोड कर राष्ट्र लाभ के प्रति कठोर होना होगा तभी इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। आम नागरिकों को आवश्यक है कि वे यदि इस तरह की लत के शिकार हैं तो भी उन्हें इसका प्रयोग अपने बच्चों से छिप कर करना चाहिए। ताकि वे इससे परचित ही न हो सके। दूसरी बात यह कि जब इससे इतनी बडी हानि है तो फिर सरकार इसके उत्पादन पर ही क्यों नहीं रोक लगा देती। हरियाण और गुजरात सहित देश के कई प्रांतों में जब नशे पर प्रतिबंध लगाया गया तो क्या वहां की व्यवस्था संचालित नहीं हो रही है। हां दीर्घगामी परिणाम के लिए कुछ तो कुर्वानिया देनी ही होगी। 
( लेखक घनश्याम भारतीय हैं जो वरिष्ठ पत्रकार है)
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