जबलपुर । विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के
कार्यकाल में हुईं नियुक्तियों के मामले को लेकर दर्ज एफआईआर निरस्त करने से
हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है। आठ आरोपियों की याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए
जस्टिस राजेन्द्र मेनन और जस्टिस मूलचंद गर्ग की युगलपीठ ने सशर्त राहत देते हुए
कहा कि आरोपियों की गिरफ्तारी यदि जरूरी हो तो उन्हें पहले सात दिनों का नोटिस
देना होगा। इस दौरान सातों दिन तक आरोपियों को थाने में हाजिर होना पड़ेगा। साथ ही
साथ उन्हें पासपोर्ट भी थाने में जमा करना होंगे। ज्ञातव्य है कि विधानसभा सचिवालय के उपसचिव एमएम मैथिल की
शिकायत पर जहांगीराबाद पुलिस थाना, भोपाल में 27 फरवरी 2014 को पूर्व विस
अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी एवं पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के साथ लगभग 18 आरोपियों के
विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराई गई थी। आरोप है कि वर्ष 1993 से 2003 के मध्य हुईं
नियुक्तियों के संबंध में अनियमितताएं दर्शाई गईं। एफआईआर रिटायर्ड जस्टिस
सचिन्द्र द्विवेदी द्वारा जनवरी 2006 में दी गई जांच रिपोर्ट के आधार पर की गई, जिसमें श्रीनिवास
तिवारी के सेवाकाल में हुईं नियुक्तियों पर प्रश्नचिन्ह लगाया था। मामले में आरोपी बनाए गए यज्ञनारायण शर्मा व 7 अन्य की ओर से
दायर इन याचिकाओं में मुख्य आधार लिया गया कि न्यायमूर्ति सचिन्द्र द्विवेदी
द्वारा बिना वैधानिक आधार के एक पक्षीय रिपोर्ट तैयार की गई, जिसे कभी भी
विधानसभा से अनुमोदित नहीं कराया गया एवं राज्य शासन द्वारा संविधान के विरुद्ध
जाकर नियुक्तियों के 22 वर्ष बाद राजनैतिक कारणों से न्यायमूर्ति द्विवेदी की
रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज करा दी गई, जो अवैधानिक है। मामलों पर बुधवार को आगे हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं
की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता व राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता
रवीश अग्रवाल और विधानसभा के लिये अधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव हाजिर हुए। करीब 15 मिनट तक चली
सुनवाई के बाद युगलपीठ ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर निरस्त करने से
इनकार करके याचिकाकर्ताओं को सशर्त राहत प्रदान की। |