भोपाल। वर्ष 2014 में शांति का 'नोबल प्राइज ' प्राप्त करने वाले डॉ. कैलाश सत्यार्थी ने दवाओं और अपने प्रवचनों के जरिये लोगों को गुमराह करने वाले बाबाओं को पाखंडी कहा है। उन्होंने रामदेव और निर्मल बाबा का नाम लिए बगैर कहा-'देश की जनता को पाखंडी बाबाओं से बचना होगा, जो लड़का होने की दवाई बेच रहे हैं या बेटी की शादी करने के लिए काली चप्पल पहनने का सुझाव दे रहे हैं।' दक्षिण कोरिया में 19-22 मई तक आयोजित होने जा रहे 'विश्व शिक्षा
सम्मेलन' में भारत
का प्रतिनिधित्व करने नोबल प्राइज विनर डॉ.कैलाश सत्यार्थी सोमवार को रवाना होंगे।
इसी मुद्दे पर सत्यार्थी शनिवार को भोपाल में मीडिया से रूबरू हुए। इतिहास की जय-जयकार करने वालों से अब काम नहीं चलेगा। भारत को
अब मजबूत नेतृत्व और नैतिक भारत के रूप में विश्व का अगुवा बनना होगा। इसके लिए
देश की जनता को पाखंडी बाबाओं से बचना होगा, जो लड़का होने की दवाई बेच रहे हैं और बेटी
की शादी करने के लिए काली चप्पल पहनने का सुझाव दे रहे हैं। गौरतलब है कि बाबा
रामदेव लड़का होने के दवाई 'पुत्र जीवक बीज' को लेकर विवादों
में घिरे हुए हैं। वहीं निर्मल बाबा अपने आयोजनों के कारण विवादास्पद रहे हैं। 'विश्व
शिक्षा सम्मेलन' में
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के साथ सत्यार्थी उद्घाटन भाषण देने वाले हैं।
उन्हें बच्चों की शिक्षा के बारे में भारत का नजरिया रखना है। इसी बात को लेकर वह
भोपाल के समन्वय भवन में मीडिया के सामने आए। उनका कहना है कि विश्व में जब तक एक भी बच्चा पढ़ाई से वंचित
रहता है, तब तक वह
बच्चों की शिक्षा के लिए संघर्ष करते रहेंगे। 1949 में मानव अधिकार घोषणापत्र जारी
हुआ, लेकिन 1990
तक बच्चों की शिक्षा के लिए किसी ने कोई पहल नहीं की। 1990 में घोषणा हुई कि 10
सालों में सभी को शिक्षा मिल जाएगी, लेकिन 2000 में जब डकार (अफ्रीकन देश सेनेगल
की राजधानी) में सम्मेलन हुआ, तो शिक्षा से वंचित बच्चों की संख्या 6.5
करोड़ से बढ़कर 13 करोड़ हो गई। उसके बाद जब हमने इस पर काम किया तो अभी भी 7 करोड़
शिक्षा से वंचित बच्चे हैं। इस बार 15 साल बाद दक्षिण कोरिया में विश्व शिक्षा
सम्मेलन हो रहा है,
जिसमें बच्चों की शिक्षा का भविष्य भी तय किया जाएगा। भले ही
विश्व के देश इस बात से खुशी मनाएं कि शिक्षा से वंचित बच्चों की संख्या कम हुई है, लेकिन मुझे खुशी तब
होगी जब तक एक भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। |