चंद रोज बाद ही आने वाला है देश के लिए सबसे ज्यादा अहमियत वाला महापर्व। आजादी और उसकी सालगिरह के एक जैसे मायने है।, लेकिन जेल की चारदीवारी में कैद उन 24 बंदियों के लिए इसकी अलग ही परिभाषा है। जैसे-जैसे 15 अगस्त का दिन नजदीक आएगा, वैसे-वैसे इनकी धड़कनें इस बात पर तेज होती चली जाएंगी कि आजादी मिलेगी कि नहीं ! दरअसल इन बंदियों की रिहाई की दास्ता ही अलग है। जिसमें 365 दिनों का अतिरिक्त अंतराल आया। रिहाई के लिए जरूरी है। कि बंदी की ओर से यदि फैसले के
विरुद्ध याचिका लगाई गई है। तो उसे वापस लिया जाए। पिछले साल जो 24 बंदी रिहाई के
दायरे में आए, सबसे पहले
उनसे याचिकाएं वापस कराई गई। एक ओर रिहाई हो नहीं पाई और दूसरी ओर बंदी न्यायिक
प्रक्रिया से भी बाहर हो गए। बाद में पुनरू कोर्ट के समक्ष अर्जी लगाई गई। जेल
प्रबंधन की ओर से पक्ष रखा गया कि किन कारणों से याचिकाएं वापस ली गईं और अब उन पर
दोबारा विचार करना कितना जरूरी है। इसके बाद प्रक्रिया शुरू हुई और एक-एक करके ऐसे
सभी 24 बंदियों की याचिका री-स्टोर कराई गई। किस्मत ने फिर खेल खेला, फिर से रिहाई की
उम्मीद जाग गई। इस 15 अगस्त को आजादी का भरोसा भी दिलाया गया, लेकिन शर्त वही रखी
गई ! अधिकांश बंदियों ने री-स्टोर की गई याचिका पुनरू वापस ले ली है। आजादी की
उम्मीद भी पूरी है।,
लेकिन इन्हीं बंदियों के सीने में अतीत का एक डर भी है। जो कभी-कभार धड़कनें
बढ़ाने से नहीं चूकता। |