विशेष (13/07/2022) 
भास्कर योग व्यक्ति को महान बनाता है आचार्य कामिनी
सू्र्य के अनेक नामों में भास्कर भी एक है.यह योग कुण्डली मे तब बनता है जबकि बुध सूर्य से दिवतीय भाव में होता है एवं बुध से एकादश भाव में चन्द्रमा और इससे पंचम अथवा नवम में गुरू होता है.ग्रहों का यह योग अति दुर्लभ होता है.जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह महान योग बनता है वह व्यक्ति भी महान बन जाता है.इस योग के प्रभाव से धन वैभव से घर भरा होता है.भूमि, भवन एवं वाहन का सुख प्राप्त होता है.इनमें कला के प्रति लगाव एवं अन्य लोगों के प्रति स्नेह होता है.

1- तृतीय भाव का अधिपति और चंद्रमा केंद्र या त्रिकोण भावों में स्थित हो तो जातक को संतान सुख में बाधा होती है !

2- लग्न में मंगल, आठवें भाव मे  शनि या पंचम भाव में शनि हो तो भी जातक को संतान सुख में बाधा होती है ! 

3- बुध और लग्न भाव का अधिपति ये दोनों लग्न के अलावा केंद्र स्थानों में हो तो भी संतान सुख में बाधा होती है ! 

4- लग्न,के अष्टम एवम बारहवें भाव में पापग्रह हो तो संतान सुख में बाधा उत्पन्न होती है ! 

5- सप्तम भाव में शुक्र, दशवें भाव में चन्द्रमा, एवं सप्तम भाव में शनि या मंगल हो तो संतान सुख में बाधा होती है ! 

महाराज योग
लग्नेश पंचमेश में तथा पंचमेश लग्न में हो | 
लग्नेश शुभग्रहो से दृष्ट हो | 
लग्नेश तथा पंचमेश स्वराशिस्थ हो | 
इन योगो में जन्म लेनेवाला जातक उच्च शासनधिकारी बनता हे |

 स्त्री रोग योग
लग्न में शनि, मंगल या केतु हो | 
सप्तमेश 8, 12वें भाव में हो | 
सप्तमेश और द्वितीयेश पापग्रहो से युक्त हो | 
नीच का चन्द्रमा सातवें भाव में हो | 
सातवें भाव में बुध पापग्रहो से दृष्ट हो

 रोग योग
षष्ठेश सूर्य के साथ 1 या 8वें भाव में हो, तो मुखरोग | 
षष्ठेश चन्द्र के साथ 1 या 8वें भाव में हो, तो तालुरोग | 
12वें भाव में गुरू और चन्द्र साथ हों | 
मंगल और शनि का योग 6 या 12वें भाव में हो | 
लग्नेश रवि का योग 6, 8 व 12वें स्थान में हो | 
मंगल और शनि लग्न स्थान या लग्नेश को देखते हों | 
सूर्य ,मंगल तथा शनि-तीनों जिस स्थान में हो, उस स्थान वाले अगं पर रोग होता है | 
पापी मंगल पापराशि में हो | 
शुक्र और मंगल में सूर्य का योग हो | 
अष्टमेश और लग्नेश साथ हो | 
छठे स्थान पर शनि की पूरण दृष्टी हो | 
चन्द्र और शनि एक साथ कर्क राशि में हो मानसिक परेशानी 
छठे भाव में चन्द्र, शनि और बुध हों, तो जातक कोढ़ी या तवचा संबंधी रोग होता है | 
अष्टमेश नीच ग्रहों के बीच में हो | 
सूर्य पापग्रह द्रारा दृष्ट हो | 

ससुराल से धन-प्राप्ति के योग
सप्तमेश और द्वतीयेश एक साथ हों और उन पर शुक्र की दृष्टि हो | 
चौथे घर का स्वामी सातवें घर में हो, शुक्र चौथे स्थान पर हो, तो ससुराल से धन मिलता है | 
सप्तमेश नवमेश शुक्र द्वारा देखे जाते हों | 
बलवान धनेश सातवें स्थान पर बैठे शुक्र द्वारा देखा जाता हो |

सरस्वती योग
यह तब बनता है जब शुक्र बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ हों अथवा केन्द्र में बैठकर एक दूसरे से सम्बन्ध बना रहे हों। युति अथवा दृष्टि किसी प्रकार से सम्बन्ध बनने पर यह योग बनता है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है उस पर विद्या की देवी मां सरस्वती की कृपा रहती है। सरस्वती योग वाले व्यक्ति कला, संगीत, लेखन, एवं विद्या से सम्बन्धित किसी भी क्षेत्र में काफी नाम और धन कमाते हैं।
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