विशेष (03/01/2024) 
कानून लागू होने के 9 महीने बाद भी हरियाणा की अदालतों के कामकाज में हिंदी का प्रयोग नहीं
चंडीगढ़ - भारत देश को स्वतंत्र हुए करीब साढ़े  76  वर्ष हो गए हैं जबकि14 सितंबर 1949 को देवनागरी लिपि में हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा (राजभाषा) के रूप में अपनाया गया था.

हरियाणा प्रदेश की स्थापना  57 वर्ष पूर्व 1 नवंबर 1966 को हुई थी. उसके बाद  प्रदेश विधानसभा मार्फ़त  बनाए‌ गए हरियाणा राजभाषा कानून, 1969  द्वारा हिंदी भाषा को हरियाणा  की  राजभाषा का दर्जा  प्रदान किया  गया था.  

इसी  बीच  पंजाब एवं हरियाणा   हाई कोर्ट में  एडवोकेट एवं कानूनी विश्लेषक हेमंत कुमार ( 9416887788) ने  बताया कि आज से 9 महीने पूर्व‌ 1 अप्रैल 2023 से   हाई कोर्ट के अधीन हरियाणा की  सभी सिविल (दीवानी ) एवं क्रिमिनल (दंड/फौजदारी) अदालतों,  सभी रेवेन्यू (राजस्व) अदालतों और  रेंट ट्रिब्यूनल आदि   में   प्रदेश की राजभाषा हिंदी में कामकाज करने सम्बन्धी   चार वर्ष  पूर्व राज्य विधानसभा द्वारा बनाए गए हरियाणा राजभाषा (संशोधन) कानून, 2020  को‌ लागू कर दिया  गया‌ था.

इस सम्बन्ध में प्रदेश के सूचना, लोक सम्पर्क, भाषा  और संस्कृति विभाग के‌ तत्कालीन  प्रधान सचिव अनुराग अग्रवाल, आईएएस  द्वारा  9 दिसम्बर, 2022 को उपरोक्त  राजभाषा संशोधन कानून की धारा 1(2) में उसे लागू करने की उक्त  तारीख अर्थात 1 अप्रैल 2023 निर्धारित की गई थी.

हेमंत  ने  आगे बताया कि हरियाणा प्रदेश की स्थापनाअर्थात  1 नवंबर 1966 के बाद प्रदेश विधानसभा द्वारा बनाए गए  हरियाणा राजभाषा कानून, 1969  मार्फत हिंदी  को हरियाणा  की  राजभाषा का दर्जा  प्रदान किया  गया था.  हालांकि जहाँ तक प्रदेश में स्थापित जिला / सेशंस  एवं अन्य अधीनस्थ न्यायालयों ( मजिस्ट्रेट अदालतों) के दैनिक कामकाज  का विषय है तो   करीब चार  वर्ष पूर्व  11 मई 2020  को हरियाणा सरकार के गजट  में हरियाणा राजभाषा (संशोधन) कानून, 2020 को नोटिफाई (अधिसूचित) किया  गया था जिसे  मार्च, 2020 में हरियाणा विधानसभा द्वारा विधेयक के तौर पर पारित  किया गया  था एवं  31 मार्च 2020 को उसे   हरियाणा के तत्कालीन राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य की स्वीकृति प्राप्त हुई थी.
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इस संशोधन कानून  द्वारा हरियाणा राजभाषा अधिनियम, 1969 में एक नई धारा 3 ए  जोड़कर हरियाणा प्रदेश के सभी सिविल (दीवानी ) और क्रिमिनल (दंडनीय)  न्यायालयों.अदालतों, जो पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के अधीन हैं, सभी राजस्व (रेवेन्यू ), रेंट (किराया ) अदालतों  एवं राज्य सरकार द्वारा गठित अन्य सभी प्रकार की  कोर्टों  और ट्रिब्यूनलों के आधिकारिक काम-काज में हिंदी भाषा का प्रयोग करने सम्बन्धी प्रावधान किया गया था.
 
 हेमंत  ने आगे  बताया कि हालांकि उक्त संशोधन कानून 11 मई 2020 से नोटिफाई (अधिसूचित ) किया गया था परन्तु इसकी   धारा 1 (2 ) के अनुसार यह इसके नोटिफाई होने की तिथि  से नहीं बल्कि उस तारीख से लागू होना था  जो कि  हरियाणा सरकार द्वारा निर्धारित  कर एक अलग  नोटिफिकेशन जारी कर अधिसूचित की जायेगी.  दिसम्बर, 2022 में यह  तिथि 1 अप्रैल 2023 निर्धारित की गई थी.   इसमें  यह भी उल्लेख है कि   इस संशोधन कानून लागू होने के अर्थात उस निर्धारित कर अधिसूचित की गयी तिथि के छः माह के भीतर राज्य सरकार द्वारा सभी प्रदेश के सभी उक्त न्यायालयों के स्टाफ को इस सम्बन्ध में आवश्यक  अवसंरचना (संसाधन) और प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा.

  इस प्रकार राज्य सरकार द्वारा नियत एवं अधिसूचित की गयी तिथि से उक्त संशोधन कानून  लागू तो हो गया   परन्तु उसके बाद भी सरकार द्वारा अदालतों के जजों/अधिकारियों और  वहां कार्यरत कर्मचारियों को  इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रेनिंग आदि उपलब्ध करवाने के बाद ही यह वास्तविक और ज़मीनी तौर पर क्रियानवित हो सकता है.  हालांकि वास्तविकता‌ यह है  कि उपरोक्त हरियाणा राजभाषा संशोधन कानून लागू होने के  आज 9 महीने बाद भी इस संबंध में  प्रदेश सरकार के भाषा विभाग द्वारा गंभीरता से उपयुक्त  एवं वांछित कार्रवाई नहीं की गई है जिससे प्रदेश में  स्थापित विभिन्न अदालतों का दैनिक कामकाज हिन्दी‌ भाषा में प्रारंभ किया जा सके.

 
हेमंत ने  बताया कि  यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रदेश में वकीलों का एक वर्ग ऐसा भी है जो जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में हिंदी भाषा के प्रयोग सम्बन्धी कानून बनने से सहज नहीं है एवं इसका पुरजोर विरोध करता रहा  है. इसलिए  उक्त कानून को   पहले वर्ष 2020 में  सुप्रीम कोर्ट में और फिर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती  दी गयी थी हालांकि दोनों अदालतों  ने उक्त कानून को लागू करने पर स्टे नहीं दिया. जून  2020 को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश  शरद बोबडे ने हालांकि इस  संबंध में  याचिका  के दौरान  मौखिक तौर पर कथित टिप्पणी  की  थी कि अदालतों में हिंदी भाषा लागू करने में किसी को ऐतराज़ नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारे देश में अधिकाँश लोग अंग्रेजी  भाषा में सहज नहीं है.  
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