विशेष (04/02/2024) 
संसद में विधेयक लाकर राज्यसभा में भी एससी/एसटी व ओबीसी वर्गो को आरक्षण दिया जाए।
फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने लोकसभा की तर्ज पर राज्यसभा में एससी /एसटी व ओबीसी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व दिए जाने की माँग को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैम्पस में एक बैठक आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता टीचर्स फोरम के अध्यक्ष प्रोफेसर के.पी.सिंह ने की। बैठक में डॉ.अनिल कुमार, श्री राजकुमार सरोज, श्री प्रीतम सिंह, श्री अजय कुमार आदि सदस्य गण भी उपस्थित थे। बैठक का मंच संचालन श्री अविनाश बनर्जी ने किया। बैठक में फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने प्रस्ताव रखा कि जिस तरह से लोकसभा सीटों का वितरण राज्य स्तर पर किया गया है उसी तरह से राज्यसभा की सीटों का राज्य स्तर पर वितरण कर एससी/एसटी व ओबीसी वर्गों को उच्च सदन राज्यसभा में भी सीटें आरक्षित की जाए। इन वर्गों को सभी राजनैतिक पार्टियाँ राज्यसभा में उचित प्रतिनिधित्व नहीं देती हैं। उन्होंने बताया है कि हाल ही में 15 राज्यों की 56 सीटों का कार्यकाल अप्रैल में समाप्त हो रहा है। इन 56 सीटों पर लोकसभा की भाँति राज्यसभा में भी एससी/एसटी व ओबीसी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व दिए जाने की माँग देश की राष्ट्रपति व भारत निर्वाचन आयोग से की है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि संसद में एक विधेयक लाकर राज्यसभा में इन वर्गों को आरक्षण दिया जाए। तभी भारतीय संविधान की मूल संकल्पना व सामाजिक न्याय का सिद्धांत पूरा होगा।

             फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने अपने वक्तव्य में कहा कि 15 राज्यों में पहली बार 56 सीटों का कार्यकाल अप्रैल में समाप्त हो रहा है। सबसे ज्यादा राज्यसभा की दस सीटें उत्तर प्रदेश से खाली हो रही हैं, इसके बाद महाराष्ट्र और बिहार से छह-छह, मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल से पाँच-पाँच, कर्नाटक और गुजरात से चार-चार, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश से तीन, राजस्थान से दो और उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और छत्तीसगढ़ से एक-एक सीट खाली होगी। उन्होंने बताया है कि इसके अलावा चार मनोनीत सदस्यों का जुलाई में कार्यकाल समाप्त हो रहा है जबकि दो मनोनीत सीट खाली है। राज्यसभा की इन खाली हो रही सीटों के लिए 8 फरवरी को नोटिफिकेशन जारी होगा और नामांकन 15 फरवरी तक दाखिल किए जाएंगे। डॉ.सुमन ने बताया है कि राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों की ओर से अप्रत्यक्ष तौर पर किया जाता है। राज्यसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है।

                 डॉ. हंसराज सुमन ने अपने वक्तव्य में जानकारी देते हुए बताया कि देश में हुए 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में राज्य स्तर पर एससी /एसटी के लिए सीटें आरक्षित की गई थीं। लोकसभा की 542 सीटों में आरक्षण के हिसाब से 131 लोकसभा सीटें आरक्षित हैं। इन आरक्षित सीटों में अनुसूचित जाति के लिए 84 सीटें आरक्षित हैं वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। इन सीटों पर कोई भी सामान्य या अन्य पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति उम्मीदवार नहीं बन सकता है। इसी तरह से राज्यसभा में 250 सीटें होती हैं, इसमें 238 राज्य विधान सभाओ के निर्वाचित सदस्यों की ओर से अप्रत्यक्ष तौर पर प्रतिनिधित्व किया जाता है तथा 12 राष्ट्रपति द्वारा स्वंय मनोनीत सदस्य होते हैं। उन्होंने कहा कि आरक्षण के हिसाब से 56 राज्यसभा सीटों में अनुसूचित जाति के -8, अनुसूचित जनजाति की 4 सीटें बनती हैं। इसी तरह से ओबीसी की 14 सीटें आरक्षित बनेगी। हालांकि अभी तक लोकसभा में ओबीसी वर्ग को आरक्षण नहीं दिया गया है। 

                  अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रोफेसर के.पी. सिंह ने कहा कि जिस तरह से लोकसभा संसदीय क्षेत्र में एससी/ एसटी समुदायों को आरक्षण दिया गया है उसी की तर्ज पर भारतीय निर्वाचन आयोग को राज्य स्तर पर राज्यसभा की सीटों पर उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए तभी इन वर्गों के लोगों को सत्ता में समान भागीदारी सुनिश्चित होगी। प्रोफेसर सिंह ने आगे कहा कि जनसंख्या के आधार पर लोकसभा व राज्यसभा सांसदों की सीटों में इजाफा होना चाहिए। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि राज्यसभा में एससी/एसटी व ओबीसी वर्गों के लोगों के लिए आरक्षित सीटें सुनिश्चित करने के लिए फोरम को हरेक राजनीतिक दलों के अध्यक्ष को पत्र लिखा जाना चाहिए और उनसे माँग की जाए कि राज्यसभा में राज्य स्तर पर इन वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए। बैठक में सभी सदस्यों ने इनकी माँग को स्वीकार किया। अंत में श्री अविनाश ने बैठक में उपस्थित लोगों को धन्यवाद दिया।
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