विशेष (17/04/2024) 
कवितावली के प्रवेशांक में रचनाओं का गुलदस्ता
कवितावली का अंक पाठकों के सम्मुख आ गया है । यह उम्मीद से भी ज्यादा साज-सज्जा और रचनाओं से उम्मदा और उत्तम है। आज का समय इलेक्ट्रॉनिक है। सब तरफ भागम भाग है। समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में साहित्य हाशिये पर जा रहा है। ऐसे समय में साहित्यिक पत्रिका का आना बहुत सुखद लगा। पत्रिका मासिक है। पत्रिका का विमोचन 5 अप्रैल आचार्य (डॉ0) विक्रमादित्य द्वारा मुख्य सम्पादक सुरेश पुष्पाकर, समूह सम्पादक राजीव निशाना और सभी कवियों एवम् साहित्यकारों की उपस्थिति में हुआ । इस अवसर पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन भी किया गया जिसमें पत्रिका में शामिल लगभग सभी रचनाकारों ने भाग लिया और पत्रिका में प्रकाशित अपनी एक-एक रचना का पाठ किया। 

पत्रिका मासिक है पत्रिका के समूह संपादक राजीव निशाना और मुख्य संपादक सुरेश पुष्पाकर हैं। 40 पृष्ठों में 25 रचनाकारों की अधिकाश रूप से कविताएँ एवम् कुछ लघुकथाएँ भी शामिल हैं। जिन रचनाकारों की रचनाएं पत्रिका में प्रकाशित की गई हैं उन में सतपाल सिंह, अलका कांसरा, विजय कपूर, डॉ0  दलजीत कौर, विमला गुगलानी, निर्लेप होरा, गीता मंजरी मिश्र (सतपथी), नीरू मित्तल, (नीर), दीपाली मिरेकर, हरिराम यादव, साहिल, पालम सैनी, कर्मवीर मित्तल, बाल कृष्ण गुप्ता सागर, रश्मी शर्मा, तरुणा पुंडीर तरुनिल, सीमा गुप्ता, प्रेम विज, डॉ० अरुण कुमार त्रिपाठी, संतोष गर्ग, शिल्पा गुप्ता, नीतू गर्ग, सुभाष भास्कर, आशिमा राज वार्ष्णेय और सुरेश पुष्पाकर शामिल हैं।

पत्रिका के आरम्भ में सतपाल सिंह की सरस्वती वंदना है जो अच्छी है। प्रसिद्ध कवियित्री अलका कांसरा की कविताएँ मुलाकात खुद से, कागज का टुकड़ा में ज़िंदगी के संदर्भ हैं। चर्चित कवि विजय कपूर की चार कविताएँ आधुनिक बोध की हैं। डॉ० दलजीत कौर की भ्रम और सपना उनकी लोकप्रिय लघुकथाएँ हैं। यह उन कवियत्रियों पर व्यंग्य है जिनकी साहित्य में कोई रुचि नहीं बल्कि प्रचार या दिखावे पर जोर है। कविताएँ भी हैं। विमला गुगलानी की लघुकथा माँ तो माँ है। माँ वृद्ध आश्रम पहुंच कर भी बच्चों की भलाई की कामना करती है। साथ में कविता भी है। गीता मंजरी मिश्र (सतपथी) की कविताएँ जीवन और समाज की हैं। नीरू मित्तल नीर की लघुकथा और होली पर कविता है। होली में वह हर तरह के विकार दहन करना चाहती हैं। साहिल की गजलें प्रभावशाली हैं। पालम सैनी की कविताएँ भी ध्यान आकर्षित करती हैं। बाल कृष्ण गुप्ता सागर की रचना भगवान शंकर जी का मानवता को संदेश और कविताएँ जीवन के रंगों को समेटे हुए हैं। डॉ० अरुण कुमार त्रिपाठी की कविता सामाजिक प्रेरणा से परिपूर्ण है। सुभाष भास्कर की कविता पिता होते हैं पर्वत से बहुत प्रभावशाली है। प्रेम विज की कविता भारत माता देश भक्ति से ओत-प्रोत है। सुरेश पुष्पाकर की लघुकथा गिद्ध आज की राजनीति पर प्रभावशाली प्रबल प्रहार है। संपादक की मेहनत झलकती है। मुझे पूरी उम्मीद है कि यह पत्रिका साहित्य के क्षितिज में विशेष स्थान हासिल करेगी।
प्रेम विज
सचिव (पूर्व)
चण्डीगढ़ साहित्य अकादमी
चण्डीगढ़
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