राष्ट्रीय (21/09/2012) 
साहब बहादुर आपकी कलम से ...

मिश्रा जी अपने छोटे बेटे की शादी  के कुछ दिन बाद सुबह पार्क में जब सैर करने निकले तो उनके कुछ पुराने साथीयों में से एक ने मजाक करते हुए कहा, कि सुना है शादी  के बाद आदमी साहब बहादुर बन जाता है। साहब बहादुर से आपका क्या मतलब है, मैं आपकी बात को ठीक से समझ नही पाया। उनके साथी ने कहा कि आप तो बहुत गंभीर हो गये, मेरा तो सिर्फ इतना कहना था कि समाज में किसी का कुछ भी रूतबा हो, शादी  के बाद हर कोई उसके नाम के आगे साहब लगा कर बुलाने लगता है। बीवी की फरमाईषे और घर की जरूरते पूरी करते-करते आदमी बहादुर यानि नौकर बन कर रह जाता है। मिश्रा जी ने कहा, इस बारे में तो मैं कुछ ठीक से नही कह सकता, हां इतना जरूर यकीन से कह सकता हॅू कि रिटायरमैंट के बाद आदमी की हालात एक नौकर जैसी तो क्या गधे से भी बुरी हो जाती है। मिश्रा जी के दोस्त को लगा कि आज सुबह-सुबह उसने मिश्रा जी की किसी दुखती रग पर हाथ रख दिया है।

थोड़ी तसस्ली देने के बाद उसने पूछा कि क्या बात बहुत परेषान लग रहे हो? मिश्रा जी ने उसे बताना शुरू  किया कि आप तो जानते ही हो कि मैं सेवानिवृती से पहले बहुत ही अच्छे सरकारी औदे पर नियुक्त था। सेवानिवृति के अवसर पर कई बड़े अफसरों ने मेरे काम की सराहना करते हुए मुझे सम्मानित किया था। घर, नौकर-चाकर से लेकर गाड़ी तक सब कुछ सरकार ने मुहैया करवा रखा था। हर छोटे से छोटे काम के लिए एक ही आवाज पर कई नौकर दौड़े चले आते थे। कुछ साल पहले जब मैं सेवानिवृत हुआ तो हर किसी की जुबान से एक ही आवाज सुनाई देती थी कि जिंदगी में काम तो बहुत कर लिया, अब सारा दिन आराम से बैठ कर चैन की बंसी बजाओ। मैं खुद भी सोच-सोच कर हैरान होता था कि बिना किसी काम काज के मेरा सारा दिन कैसे कट्रेगा? आजकल मैं कहने को तो घर में कुछ काम नही करता लेकिन सारा दिन पांच मिनट भी चैन से बैठना नसीब नही होता।

दिन की शुरुआत  होते ही पत्नी दूध और नाश्ते  का सामान लाने के लिये कह देती है। इससे पहले कि मैं वापिस आकर शांति  के साथ चंद पल समाचार पत्र के दर्शन  कर सकूं, बहू पोते को तैयार करने और उसे स्कूल छोड़ने का हुक्म सुना देती है। इस डयूटी को निपटा कर कई बार मन करता है कि थोड़ी देर तसस्ली से बेैठ कर चाय की चुस्कीयों का आंनद लिया जाये। परंतु दूर से ही पत्नी मुझे देखते हुए कहती है कि क्या बात आज मुन्ना को स्कूल छोड़ने में बहुत देर कर दी। मैं तो कब से तुम्हारा इंतजार कर रही हॅू। मैने कहा क्या बात आज नाश्ता  बहुत जल्दी बना लिया। पत्नी का जवाब था कि चाय-नाश्ता  आ कर करना, पहले जरा बिजली और टेलीफोन का बिल जमां करवा आओ क्योंकि आज आखिरी तारीख है। यदि आज यह बिल जमां नही हुआ तो बिजली विभाग वाले हमारी बिजली काट देगे। आप तो अच्छी तरह से जानते ही हो कि मैं बिना एयरकंडीशन  के एक मिनट भी नही रह सकती। मैने अपनी बीवी से कहा कि मै तुम्हारा पति हॅू, कभी कभार पति की कुछ सेवा भी किया करो। इतना सुनते ही मेरी पत्नी उल्टा मुझ पर नाराज होते हुए बोली कि मैने कब कहा कि तुम मेरे पति नही, ड्राईवर हो। अभी पत्नी के हुक्म पूरे भी नही होते कि पोते का स्कूल से आने का समय हो जाता है। लाख कोषिष करने पर भी वो अपने स्कूल के होमवर्क को लेकर मेरा भेजा चांटना षुरू कर देता है। कभी कभार गलती से घर के किसी सदस्य को किसी काम के लिये ना कह दो तो उसे लगता है कि मैने उसे 25 किलो की गाली दे दी हो। इस सारे महौल से तंग आकर कई बार तो मन यही करता है कि मै यहां से कहीं बहुत दूर चला जाऊ। लेकिन घरवालों ने अपने सभी षौंक पूरे करने की चाह में चार पैसे भी मेरे लिये नही छोड़े।

मिश्रा जी के दोस्त ने उन्हें समझाते हुए कहा कि परेषानी चाहे कैसी भी हो, कभी भी इस तरह से सभी के सामने अपना हृदय मत खोलो, जो बुद्विमान हैं और परमात्मा से डरने वाले हैं केवल उनसे अपने व्यवहार के संबंध में बात करो। एक बात और याद रखो कि आज के इस युग में अपने लिए तो सभी जीते हैं पर दूसरों के लिए जीने वाले बहुत कम होते है। मैं मानता हॅू कि तुम्हारे घर वालों ने तुम्हारा बहुत मन दुखाया है लेकिन जब आप कामयाबी के शिखर पर होते है तो आपको हर कोई सलाम करता है, परंतु जब आपके पास कोई ताकतवर कुर्सी या औदा नही होता तो उसी समय आपको मालूम पड़ता है कि आपके सच्चे शुभचिन्तक  कौन है? मुझे लगता है तुम्हारे घर वाले शायद यह नही जानते कि घरों में बड़े बुजुर्गों के अपमान से अच्छे संस्कारों की बहने वाली गंगा सूख जाती हैं। वैसे बहादुर इंसान उसे ही कहा जाता है जो सभी परिस्थितियों में संतुलन बनाए रखना जानता हो। मेरी एक बात और ध्यान रखना कि अगर आप हर कार्य हंसते-खेलते खुशी से करें तो कोई भी कार्य मुश्किल नही लगेगा। साधु संत तो यहां तक समझाते है कि जब तक कोई जीव कार्य कर रहा है, तभी तक वह जीवित है, जब वो कर्म करना छोड़ देता है तो वो एक मुर्दे से बढ़ कर कुछ नही होता। जौली अंकल मिश्रा जी के परिवार वालों के साथ सारे समाज को यहीं सदेंष देना चाहते है कि हम चाहें साहब हो या बहादुर, नंम्र होकर चलना, मधुर बोलना और बांटकर खाना, यह तीन ऐसे गुण है जो हमें इश्वरिये  पद पर पहुंचाते है।

 

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