राष्ट्रीय (24/09/2012) 
कामयाबी की राह

मिश्रा जी के पोते ने अपनी मां से पूछा कि क्या मेरी शक्ल बंदरों जैसी है? क्या मैं बंदरों की तरह खाता-पीता हू या मैं बंदरों के खानदान से हू । यदि नही तो दादा जी मुझे हर समय बंदर-बंदर कह कर क्यूं बुलाते है? इतना सुनते ही मिश्रा जी ने अपने पोते से कहा कि तू यह सब कुछ अपनी मां से क्यूं पूछ रहा है। तू सीधे-सीधे मेरे से बात कर मैं तुझे बताता हू  कि मैं तुझे बंदर क्यू कहता हू ? मिश्रा जी के पोते ने अपने दादा से कहा कि आप ही बता दो कि मैं आपको किस तरह से बंदर दिखाई देता हू ? मिश्रा जी ने अपने पोते को प्यार से अपने पास बिठाते हुए कहा कि बचपन में तो तू बहुत ही षरारती और हर समय उछल-कूद किया करता था, इसलिये तुझे प्यार से बंदर कहता था, लेकिन अब भी तेरी हरकते इस तरह की है कि तुझे बंदर के सिवाए कुछ कहा ही नही जा सकता।

मिश्रा जी के पोते ने हैरान होते हुए कहा कि अब तो मैं कोई षरारत भी नही करता। अच्छे कपड़े पहनता हॅू और सलीके से खाना खाता हॅू। अब तो कम से कम मुझे बंदर कहना छोड़ दो। मिश्रा जी ने पोते से कहा कि तेरे साथ के बच्चे कब की अपनी पढ़ाई पूरी करके तेजी से किसी न किसी क्षेत्र में कामयाबी की राह पर बढ़ रहे है। परंतु एक तू है कि अभी तक मिट्टी का माधो बना घर में बैठा हुआ है। क्या तूने कभी सोचा है कि तेरे मां-बाप किस तरह रो-धोकर दिन काट रहे है, किस तरह वो बेचारे लहू के आसूं पीकर तेरी हर फरमाईष पूरी करते है। लेकिन तू बिना किसी बात की चिंता किए जिंदगी को हंसी-खेल समझ कर जी रहा है। जब कभी तुझे कुछ समझाने की कोषिष करो तो तू आखें दिखा कर लाल-पीला होने लगता है। 

मिश्रा जी के पोते ने कहा कि मैं तो अपनी और से काम-काज ढूंढने के लिये दौड़-भाग में कोई कमी नही रखता अब मुझे सफलता नही मिल रही तो मैं क्या कर सकता हॅू। मिश्रा जी ने पोते से कहा कि ऐसा तुम्हें इस लिये लग रहा है क्योंकि अभी तक तुमने सिर्फ स्कूल और कालेज की मस्ती भरी जिंदगी देखी है असल जिंदगी नही। जबकि स्कूल-कालेज और असल जिंदगी में बहुत फर्क होता है। स्कूल में टीचर पहले आपको पाठ पढ़ाते है और फिर आपकी परीक्षा लेते है जबकि जिंदगी पहले परीक्षा लेती है और फिर आपको उससे सबक सिखाती है। अपने बेटे की इतनी बुराई सुनकर मिश्रा जी की बहू ने कहा कि मुझे आपकी बात में बोलना तो नही चाहिए लेकिन इतना तो आप भी समझते है कि पाचों उंगलियां कभी भी बराबर नही होती। बहू की बात सुनते ही मिश्रा जी को कहना पड़ा मुझे इतनी बात कहने से पहले अपने लाड़ले को समझाओं कि इस तरह के लोग फिर हर समय अपनी पाचों उंगलियां घी में भी रखने की नही सोचते।

अगर तुम्हारा बेटा दुनियां भर की योजनाऐं बना कर हर सुख को पाने का ख्वाब देख सकता है तो इसे यह भी समझाओ कि इन ख्वाबो को पूरा करना भी सीखे। तुम तो अपने लाड़-प्यार से हर समय इसे यही कहती रहती हो कि बेटा यह काम तुम से नही होगा, यह काम तुम्हारे लायक नही है। इस तरह की राह दिखाने की बजाए इसे अब यह सिखाओ कि हार या जीत उस समय तक हमारे जीवन में कोई मायने नही रखती जब तक हम कामयाबी नही पा लेते। कालेज की पढ़ाई करते-करते यह इतना तो जरूर सीख गया होगा कि असल सपने वो नही होते जो रात की नींद में देखे जाऐं, असली सपने तो वो होते है जो खुली आखों से देखे जाये और जिन्हें आप अपनी मेहनत, लगन और हिम्मत से साकार करते है।

बेटा एक बात कभी मत भूलना कि कामयाबी की राह कभी भी सरल नही होती, इस राह पर चलते हुए हमें हजारों अड़चनें रूपी पथ्थर मिलते है। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम इन पथ्थरों से दीवार खड़ी करते है या कि इन्ही पथ्थरों से कामयाबी की राह बनाते है। कामयाबी के इस सफर के दौरान समय-समय पर आत्मचिंतन करने की जरूरत होती है। सफलता की डगर पर चलते समय नकारात्मक सोच वाले आपके कई करीबी दोस्त और रिष्तेदार आपको अनेकों प्रकार के डर और खतरे दिखा कर आपको इस राह से भटकाने की कोषिष करते है। ऐसे लोग यह सब कुछ इसलिये करते है क्योंकि उन में इतनी हिम्मत नही होती कि अपने जीवन के सपनों को साकार कर सकें। ऐसे लोग या तो हर समय बीते हुए समय को याद करके पछताते रहते है या फिर आने वाले समय से भयभीत रहने लगते है। इन दोनो ही प्रकार के हालात पर किसी का बस नही होता तो ऐसे में इनकी चिंता करने से क्या फायदा?

कामयाबी की राह पर चलने वालों को नकारात्मक मंषा वाले किसी भी प्रकार का जोखिम उठाने से ऐसे डराते जैसे कि किसी भी नये काम में हाथ डालते ही आसमान नीचे गिर पड़ेगा। इस प्रकार की सोच रखने वाले षायद यह नही जानते कि जिंदगी में सबसे बड़ी परेषानी यही है कि किसी परेषानी का हिम्मत से सामना न करना। जो लोग जीवन में किसी प्रकार का साहस न जुटा कर आपको जिंदगी के साथ हर समय डर-डर कर चलने के लिये कहते है, इसका मतलब वो आपको जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देने की बजाए सफल होने से रोक रहे है। जिंदगी का भरपूर मजा लेना है तो हर नामुमकिन काम को करने का प्रयास करो। आप एक अलग ही किस्म का आंनद और सुकून महसूस करेगे। आलतू-फालतू के सब्ज़बाग दिखाने वालो को मिश्रा जी की इतनी महत्वपूर्ण बाते सुनकर यदि सुई की नोंक के बराबर भी समझ आ जाये तो उन्हें सफल और सम्पन्न जीवन के मायने आसानी से समझ आ जायेगे। जौली अंकल तो मिश्रा जी के विचारो से पूर्ण रूप से सहमत है कि जब कभी आप अपने मन और दिमाग को संतुलित करके कोई कार्य करते है तो कामयाबी की राह निष्चित तौर से आपको सफलता दिलाती है।  

जोली अंकल

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