राष्ट्रीय (07/10/2012) 
आखिरकार कहां जाता है बीच का पैसा
कैथल, 06 अक्तूबर, स्थानीय अनाज मंडी मंडी में किसानों की धान बिकने के लिए आती है। जिसको सरकारी एजैंसियां खरीदता है। सरकार द्वारा इन एजैंसियों को धान खरीदने के लिए समर्थन मूल्य 1280 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया हुआ है। जबकि इन एजैंसियों द्वारा नियुक्त किए गए राइस मिलर यह धान 1150 रुपए प्रति क्विंटल तक की दर पर खरीदकर कागजों में सरकार द्वारा 1280 रुपए प्रति क्विंटल दिखाया जाता है। इस प्रकार यह बीच का 130 रुपए प्रति क्विंटल का पैसा कहां जा रहा है और इससे किसको फायदा व किसको नुकसान हो रहा है। यह चिंता का विषय है। उल्लेखनीय है कि धान की खरीद में लगी सभी सरकारी एजैंसियां अपने आप खरीद न करके राइस मिलरों को खरीदने के लिए नियुक्त किया गया है। इन राइस मिल मालिकों को मंडी में से धान खरीदकर इसका चावल निकालने के बाद चावल इन एजैंसियों को देना है। मंडियों में जो धान नमी वाला आता है उसको भी ये राइस मिल मालिक खरीद लेते है परन्तु कम मूल्य पर यह धान राइस मिल मालिक खरीद कर इसका बिल सरकारी एजैसियों को समर्थन मूल्य 1280 रुपए प्रति क्विंटल की दर से भिजवाते है और बीच का पैसा आढ़ती के माध्यम से किसानों से ले लेते है। ऐसा करने से राइस मिल मालिक को फायदा तो होता है। परन्तु सरकार को भारी चूना लगता है। क्योंकि जैसे राइस मिल मालिक 1150 रुपए यां 1200 रुपए प्रति क्विंटल धान लेता है तो वह किसान के नाम लिखवाकर 130 व 80 रुपए प्रति क्विंटल की दर से पैसा ले लेता है। इसका टैक्स सरकार को भरना पड़ता है। मार्केट फीस 4 प्रतिशत व वैट 5 प्रतिशत यानि की 9 रुपए प्रति सैकड़ा के हिसाब से सरकार को चूना लगता है। कुल मिलाकर ऊपर लिखे बीच के दाम जैसे 130 व 80 पर 12 रुपए व 7 रुपए प्रति क्विंटल का चूना सरकार को भी लगता है। इतना ही नहीं कुछ धान ऐसा भी होता है जो बिकता तो है समर्थन मूल्य से ऊपर परन्तु उसके बिल बनाए जाते है 1280 रुपए प्रति क्विंटल के। जैसे कि जो धान 1325 रुपए प्रति क्विंटल बिकती है तो उसके बिल 1280 रुपए के बनाकर राइस मिल मालिक बीच के 45 रुपए प्रति क्विंटल आढ़ती को दे देता है। जो आढ़ती को किसानों को देना होता है। कुछ आढ़ती यह पैसा और कुछ इसके बीच के दाम कम बताकर किसानों को चूना लगाते है। जिस कारण से सरकार को इस पैसे पर न तो मार्केट फीस नहीं मिलती और न ही वैट टैक्स। इससे भी सरकार को ही नुकसान होता है। कुल मिलाकर इस बीच के पैसे से सरकार को नुकसान ही नुकसान होता है। जबकि किसानों को फायदा कम आढ़तियों व राइस मिल मालिकों को फायदा ज्यादा होता है। मंडी में पहुंचे किसान रामदिया, गुरनाम, महेंद्र, नफिया, प्यारा लाल ने बताया कि ये राइस मिल मालिक नमी की मात्रा ज्यादा बताकर उनकी धान को खरीदन से मना कर देते है। जिस कारण से उनको अपनी धान मजबूरन कम मूल्य पर बेचनी पड़ती है।
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