यूथ फार नेशन द्वारा आज हिन्दुओं के पक्ष में हुए फिल्म ओह माई गोड के प्रदर्शन में युवाओं का जोश देखते ही बनता था। दिल्ली के वी थ्री एस माल में एकत्रित हुए वाई एफ एन के सभी सदस्य केवल और केवल एक ही मांग पर अड़े थे कि अविलम्ब इस फिल्म को सिनेमाघर से हटाया जाए। सभी का एक स्वर में कहना था कि फिल्म में केवल हिन्दु जनमानस ही नहीं देवी-देवताओं अथवा साधु-सन्यासियों का भी घोर अपमान किया गया है, इसलिए हम इस फिल्म को आगे कतई नहीं चलने देंगे। प्रदर्शन का नेतृत्व यूथ फार नेशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हेमन्त कुमार शर्मा कर रहे थे। हेमन्त कुमार शर्मा ने जो जोशीले स्वर में कहा कि यदि आज के प्रदर्शन के बावजूद भी सरकार और सिनेमा मालिकों की नींद नहीं खुली तो हम अपने धर्म के समर्थन में कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाएंगे। वाई एफ एन का साथ देने पहुंचे वानर सेना प्रमुख श्री संजीव राठोर ने भी फिल्म की घोर निंदा करते हुए कहा कि अगर ये सब चलता रहा तो हम अपने धर्म को बचाने के लिए दल के साथ-साथ बल का प्रयोग करने के लिए भी बाधित हो जाएंगे। प्रदर्शन में वाई एफ एन प्रमुख मनीष राय भी शामिल थे। यूथ फार नेशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हेमन्त कुमार शर्मा के अनुसार फिल्म में फिल्माए गए कुछ आपत्तिजनक द्रश्य - केवल ध्यानाकर्षण हेतु...है जैसे की .... चरणामृत पिलाने वाले पात्र में शराब डालकर सभी भक्तों को शराब को चरणामृत बताकर पिलाना। हिन्दु धर्म, धर्म स्थलों और साधु-सन्यासियों का अपमान करना। साधु-सन्यासियों को भगवान का दलाल@एजेंट बताकर यह कहना कि यह लोग भगवान का धन्धा करते हैं। मंदिरों को लूट-खसोट करने वाली दुकान बताकर मंदिरों का अपमान करना। भगवान के नाम को कोर्ट में घसीट उनपर केस कर उनकी कार्रवाई करना व यह दिखाना कि भगवान सर्वोपरी नहीं अपितु कोर्ट में बैठा हुआ काले कपड़े पहनने वाला जज सर्वोपरी है। घुमाफिरा कर तिरूपति बालाजी मंदिर में बालों का दान करने को मंदिर का धंधा बताना। राम भक्त हनुमान जी की प्रतिमा को पत्थर बताकर उनका अपमान करना व मंदिर तोड़ने की बात करना। भगवान के मंदिरों को शापिंग माल और शिवलिंग को काला पत्थर बताना। दरगाह और चर्च की भी फिल्म में बदनामी करना। सर्वश्रेष्ठ धर्मग्रन्थों में से एक श्रीमद भग्वतगीता का फैंककर अपमान करना। साधु का रोल अदा करने वाला पात्र भगवान पर अपना कापीराइट बताकर स्वयं को भगवान से बड़ा समझता है और भगवान का घोर निरादर करता है। कांजीवाला पात्र अपने-आप को भगवान बताकर भगवान का निरादर करता है। |