राष्ट्रीय (15/10/2012) 
पैट्रोटेक-2012 सम्मेलन

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि हाइड्रोकार्बन क्षेत्र के सामने बहुत चुनौतियां हैं, लेकिन पिछले अनुभव और सही दूरगामी फैसलों से इनसे निपटा जा सकता है। आज नई दिल्ली में पैट्रोटेक-2012 सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए श्री मुखर्जी ने कहा कि विशिष्ट परिस्थितियों के लिए कम खर्च वाली उन्नत और नवीनीकृत प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक स्वस्थ्य और व्यवहार्य हाइड्रोकार्बन क्षेत्र हमारी अर्थव्यवस्था के विकास में बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है।

 मुखर्जी ने घरेलू तेल और गैस उद्योगों से कहा कि वे अपने कारोबार से संबंधित फैसले लेते समय सतत विकास के लक्ष्य को सामने रखें और ऐसी नीतियां बनाएं, जिनमें सुरक्षा, पर्यावरण और लोगों के हित शामिल हों।

 मुखर्जी ने कहा कि देश की 12वीं योजना में सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत से अधिक वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए जरूरी होगा कि देश में पेट्रोलियम और पेट्रोलियम पदार्थों की मांग के बारे में बेहतर प्रबंधन हो। अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतों की मौजूदा प्रवृत्ति को देखते हुए इनके मूल्यों को वैश्विक मूल्यों के अनुरूप रखना उपभोक्ताओं और निवेशकों, दोनों के हित में होगा। उन्होंने कहा कि भारत सरकार इसके लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाने के लिए कृत संकल्प है।

 मुखर्जी ने कहा कि वित्तीय बाजारों की तरह विश्व के ऊर्जा बाजार भी बुनियादी तौर पर वैश्विक हैं और अंतर-निर्भर हैं और कोई भी देश अपने आपको इससे अलग नहीं कर सकता। ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक-दूसरे पर निर्भरता आज की अनिवार्यता है।

 मुखर्जी ने पेट्रोलियम पदार्थों के उचित मूल्य और आपूर्ति स्रोतों को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इसके साथ-साथ इस क्षेत्र में अनुसंधान और नई प्रौद्योगिकियों के विकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। आज वही कंपनियां आगे निकल जाती हैं, जो उभरती नई प्रौदयोगिकियों को अपनाती हैं। इस संबंध में शिक्षण संस्थाओं और उद्योगों में जो अनुसंधान और विकास परियोजनाएं शुरू की जा रही हैं, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग उनकी पूरी सहायता करते हैं।

मुखर्जी ने अन्य तेल उत्पादक देशों और उनके तेल और गैस उद्योगों के साथ परस्पर लाभ के लिए मजबूत आर्थिक भागीदारी की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि पैट्रोटेक-2012 में भाग लेने वाले प्रतिभागी इस बारे में तेल और गैस कंपनी की एक एसोसिएशन द्वारा विचार किए जाने की संभावना का पता लगाएं।

मुखर्जी ने कहा कि पिछले दिनों भारत में नये तेल और गैस भंडार मिले हैं, जो बहुत ही उत्साहजनक है। भारत सरकार ने 1997-98 में जो नई खोज लाइसेंसिंग नीति शुरू की थी, उसमें 14 अरब अमरीकी डॉलर से अधिक का निवेश किया जा चुका है, जिसके परिणाम स्वरूप तेल और गैस के 87 भंडारों का पता लगा है। उन्होंने कहा कि भारतीय तेल और गैस उद्योग के घरेलू उत्पादन में भी बहुत वृद्धि हुई है और पिछले कुछ वर्षों में भारत पेट्रोलियम पदार्थों का एक प्रमुख निर्यात केन्द्र बन गया है। भारत की तेल परिष्करण क्षमता 21.5 करोड़ मीट्रिक टन वार्षिक है और पेट्रोलियम पदार्थों का निर्यात 6 करोड़ टन से भी अधिक हो गया है, जिससे 60 अरब अमरीकी डॉलर का राजस्व प्राप्त हो रहा है।

मुखर्जी ने कहा कि भारतीय तेल उद्योग बेहतर गुणवत्ता वाले ईंधन उपलब्ध कराने के लक्ष्य को भी पूरा करने में सफल रहा है। इससे हमारे शहरों में वायु प्रदूषण में सुधार हुआ है। पेट्रोलियम पदार्थों की जगह प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल किया जा रहा है। 31 मार्च, 2012 तक देश के 10 राज्यों में सीएनजी के 776 स्टेशन लगभग 17 लाख वाहनों को सीएनजी की आपूर्ति कर रहे थे। दिल्ली में तो पूरा सार्वजनिक परिवहन सीएनजी पर चल रहा है। तेल कंपनियां लगभग 19 लाख घरों को प्राकृतिक गैस की भी आपूर्ति कर रही हैं।

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