राष्ट्रीय (15/10/2012) 
मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने फल्गु तीर्थ पर की पूजा अर्चना व पिंडदान
कैथल, 15 अक्तूबर , 15 अक्तूबर  हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आज विश्व प्रसिद्ध फल्गु तीर्थ पर विधि विधान से पूजा अर्चना की तथा पितरों की आत्मिक शांति के लिए तर्पण किया। वीआईपी घाट पर प्रदेश के मुख्यमंत्री को स्थानीय पुरोहित विनायक भारद्वाज, पुरूषोत्तम दास, नरेश भारद्वाज और ईशु भारद्वाज ने मंत्रोच्चारण के बीच पिंड दान व पूजा अर्चना के कार्य को संपन्न करवाया। श्री हुड्डा ने अपने संदेश में प्रदेश की जनता के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए फल्गु मेलें में देश के कौने-कौने से आए लाखों श्रद्धालु यात्रियों की सुखद यात्रा की कामना की। उन्होंने अपने संदेश में श्रद्धालु यात्रियों का आह्वान किया कि वे मेला प्रशासन द्वारा किए गए पुख्ता प्रबंधों के बीच पवित्र सरोवर में डूबकी लगाएं व अपने पितरों की आत्मिक शांति के लिए विधिवत रूप से तर्पण इत्यादि के कार्य को पूर्ण करवाएं। उन्होंने कहा कि अश्विन मास में आने वाली सोमवती अमावस्या का अपना एक पौराणिक महत्व है और हर मेले में यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या पहले की अपेक्षा बढ़ रही है। उनका कहना था कि इस तरह के मेलों के आयोजन से प्रदेश वासियों को राज्य में अमन और शांति बनाए रखने का जहां पैगाम मिलता है, वहीं प्रदेश वासी और देश के दूसरे हिस्सों से आने वाले लोग अध्यात्म से भी जुड़ते हैं। यहां रहकर सर्व शक्तिमान के सानिध्य में स्वयं को महसूस करके जब यात्री पवित्र सरोवर में डूबकी लगाते हैं, तो फल्गु ऋषि का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त होता है। इस मौके पर मुख्य संसदीय सचिव सुल्तान जडौला, विधायक जिले राम शर्मा, मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार प्रो. विरेंद्र सिंह, पूर्व विधायक दिनेश कौशिक व उपायुक्त चंद्रशेखर, पुलिस अधीक्षक श्री कुलदीप सिंह यादव, अतिरिक्त उपायुक्त दिनेश सिंह यादव, मेला प्रशासक एवं उप मंडलाधीश हवा सिंह पचार सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारी व गणमान्य व्यक्ति उनके साथ मौजूद रहे।
गौरतलब है कि फल्कीवन में बहती हुई फल्गु नदी में स्नान तथा तर्पण करने से मनुष्य को अग्रीष्टोम और अतिरात्र यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। भारतीय संस्कृति तथा आस्था के प्रतीक धर्म क्षेत्र कुरूक्षेत्र की 48 कोस की परिधि में पडऩे वाले फल्कीवन के गांव फरल में गत 30 सितंबर से 15 अक्तूबर तक चले इस फल्गु मेले का धार्मिक एवं आस्तिक व्यक्तियों के लिए विशेष महत्व है। महाभारत ग्रन्थ के वन पर्व के 83 और 84 अध्याय में भी फल्गु महात्मय एवं फल्गु नदी के महत्व का उल्लेख किया गया है। यह महात्मय वास्तव में फल्कीवन, ईष्श्दवती नदी, पितृपक्ष और सोमवती आमावस्या इन चारो के एकत्र होने पर ही बनता है। जब पितृपक्ष  की आमावस्या सोमवती बन जाए या दूसरे शब्दों में आश्विन मास की अमावस्या के दिन सोमवार आ जाए तब फल्गु नदी में स्नान करने का महत्व बहुत अधिक होता है।
Copyright @ 2019.