राष्ट्रीय (17/10/2012) 
भारत और मध्य एशिया के बीच राष्ट्रीय सेमिनार

उपराष्ट्रपति का कहना है कि आधुनिक मध्य एशिया के बारे में देश के संस्थानों में जो अध्ययन किये जा रहे है उनका इस्तेमाल आपसी सहयोग बढ़ाने में किया जाना चाहिए। एम.हामिद अंसारी ने यह बात भारत और मध्य एशिया के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने पर राष्ट्रीय विचार गोष्ठी का उदघाटन करते हुए कहीं। इसका आयोजन आज चंडीगढ़ में ग्रामीण एवं औद्योगिक विकास तथा अनुसंधान केंद्र (सीआरआरआईडी) ने किया। अंसारी ने कहा कि भाषा ज्ञान प्राप्त करने पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही, फील्डवर्क पर भी ज्यादा मेहनत की जानी चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि विदेशनीति नये सिरे से नहीं बनाई जाती बल्कि जमीनी हकीकत के आधार पर बनाई जाती है। महत्वकांक्षाएं और उद्देश्य इसे स्वरूप प्रदान करते है। कामयाबी तब मिलती है जब टुकड़े-टुकड़े मिली कामयाबी धैर्यपूर्वक इकट्ठी कर ली जाए।

 अंसारी की राय थी कि खुले समुद्र से दूर होने पर भी पिछले दो दशकों से मध्य एशिया दुनिया का सबसे तेजी से विकसित हेाने वाला इलाका रहा है और उसमें विकास की बहुत संभावनाएं हैं। संसाधनों की वहां कमी नहीं, बुनियादी सुविधाएं बेहतर है और इस इलाके की रणनीतिक स्थिति बहुत बढि़या है। श्री अंसारी ने कहा कि मध्य एशिया के अनेक देशों ने प्राइवेट सेक्टर के साथ कंपीटीशन बढ़ाने और आर्थिक प्रगति तेज करने के लिए बाजार- अनुकूल आर्थिक सुधार शुरू किये है। इसी का नतीजा है कि अनेक विकसित देश इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों से फायदा उठाने में लगे है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब तक अफ्गानिस्तान की स्थिति पर विचार नहीं किया जाता, तब तक मध्य एशिया पर कोई सार्थक चर्चा पूरी नहीं होगी। इतिहास हमें सिखाता है कि अगर किसी ने अपना दबदबा बनाने की कोशिशें कीं, तो वह भारी मुश्किल में पड़ जायेगा। इसलिए अगर अफगानिस्तान को लेकर सहयोग और आर्थिक सुरक्षा के लिए वास्तविक विकल्पों की बात की जाए तो पूरे क्षेत्र को फायदा होगा। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में आर्थिक विकास, सामाजिक सौहार्द और कानून के शासन को आधार बनाया जाना चाहिए। साथ ही, अफगान जनता की लोकतांत्रिक इच्छाओं का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

 हामिद अंसारी ने कहा कि भविष्य की दुनिया का आकलन अतीत के खून-खराबे के नतीजों के आधार पर नहीं लगाया जाना चाहिए। भारत चाहता है कि इस इलाके में शांति स्थिरता और आर्थिक विकास जारी रहे। भारत को उम्मीद है कि मध्य एशिया के लोग अपने बीच कट्टरपंथियों और धार्मिक उग्रवादियों को जगह नहीं देंगे, क्योंकि ये प्रगति में बाधक होते है।

उपराष्ट्रपति ने शांति, सुरक्षा और विकास के लिए मध्य और दक्षिण एशिया के बीच सहयोग की संभावनाएं तलाशने के लिए यह आयोजन करने पर सीआरआरआईडी को बधाई दी।

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