राष्ट्रीय (18/03/2013) 
आतंकवाद

फिर से कश्मीर मे आतंकवादी हमला हुआ और इस हमले मे देश के 5 सी आर पी एफ जवानों की जान चली गई। अभी कुछ ही दिनो पहले हैदराबाद मे आतंकी विस्फोट हुआ था और इसमे भी कई लोगों की जाने चली गई थी। भारत मे पिछ्ले कई वर्षों से यह सिलसिला अनवरत चलता आ रहा है। आतंकवाद कभी कश्मीर को निशाना बना रहा है, कभी पंजाब को, कभी आंध्रा-प्रदेश, तो कभी इसके निशाने पर आता है देश का अन्य कोई हिस्सा। मूल रूप से आतंकवाद आज किसी न किसी रूप मे हमारे देश या फिर यूं कह ले कि पूरे विश्व के लगभग हर हिस्से मे अपनी छाप छोडने मे सफल हो जा रहा है। आतंकवाद को एक तरह से राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित तीव्र हिंसा का प्रयोग कहा जाए तो यह गलत नही होगा।

आतंकवाद निरपराध लोगों तथा संपत्ति क्षति पहुंचाने का आज एक प्रमुख माध्यम बन गया है। आतंकवाद का सर्वप्रथम प्रयोग ब्रुसेल्स मे दण्ड विधान मे समेकित करने के लिए 1931 मे बुलाए गए तीसरे सम्मेलन मे किया गया था, जिसके अनुसार आतंकवाद का अभिप्राय-जीवन, भौतिक अखण्डता अथवा मानव स्वास्थ्य को खतरे मे डालने वाला या बडे पैमाने पर संपत्ति को हानि पहुंचाने वाला कार्य करके जान-बूझकर भय का वातावरण उत्पन्न करना है। इसके पश्चात अनेक अंतराष्ट्रिय सम्मेलनों मे आतंकवाद को परिभाषित करने का प्रयास किया है। लेकिन आज तक आतंकवाद की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा नही बन पाई है। हां, आतंकवाद का रूप तब से लेकर अब तक मे विभत्ष से विभत्षम जरूर हो गया है।

साधारणत: आतंकवाद का अभिप्राय आतंक उत्पन्न करना है। आतंक उत्पन्न करने पीछे किसी संगठन अथवा समूह का कोई निश्चित लक्ष्य प्राप्त करना होता है। यह लक्ष्य राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं व्यक्तिगत भी हो सकता है। आतंकवाद मे ऐसे बर्बर हिंसक तरीकों को अपनाया जाता है, जिन्हे आज के सभ्य मानवतावादी समाज मे स्वीकार नही किया जा सकता है। अत: आतंकवाद कोई विचारधारा या सिद्धांत नही है, अपितु एक तरीका, एक प्रकिया या फिर एक उपकरण है जिसका प्रयोग कर कोई भी राज्य, राजनीतिक संगठन, स्वतंत्रतावादी समूह, अलगाववादी संगठन, जातीय या धार्मिक उन्मादी अपने उद्देश्य को प्राप्त करना चाहते है। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला करने से पहले आतंकवादियों के एक कमाण्डो ने अपने साथी से आतंकवादी से कहा था, आप अपने स्वयं की इच्छा से एक महान उद्देश्य की पूर्ति करने जा रहे है।

उपनिवेशों की समाप्ति की प्रक्रिया मे अनेक छोटे बडे राष्टृ स्वतंत्रता प्राप्त करते चले गए। इन राष्ट्रों मे कुछ अपनी विशेष जातीयता एवं धार्मिक समूह की पहचान के लिए पृथक राष्ट्रों की मांग करने लगे जिसके लिए फिर इन समूहों ने संगठित एवं सुनियोजित आन्दोलन प्रारम्भ किए। भारत, रूस, श्रीलंका आदि देशों मे जो आतंकवाद का स्वरूप है वह इन बातों की पुष्टि भी करता है। लिट्टे, हमास, रेड आर्मी, आई एस आई, अलकायदा, लशकर-ए-तोएबा आदि आतंकवादी संस्थाएं कहीं न कहीं अपनी जातीयता एवं धार्मिक समूह की पहचान दिलाने के लिए सुनियोजित तरीके से इन गतिविधियों को अंजाम तक पहुंचाते है। वैसे कई राष्ट्रों मे अलगाववाद तथा आतंकवाद का कारण वहां की राष्ट्रीय सरकारों द्वारा किसी जातीयता विशेष या क्षेत्र विशेष की उपेक्षा करना भी माना जाता रहा है।
 
 
विश्व स्तर पर आतंकवाद सदैव ही किसी न किसी रूप मे विधमान रहा है, लेकिन यह केवल किसी क्षेत्र विशेष मे ही रहा है, यह भी सच है कि इतनी अधिक संख्या मे कभी भी लोग एवं देश आतंकवाद के शिकार नही हुए, जितना वर्त्तमान मे हो रहे है। आज पूरी दुनिया इस आतंकवाद रूपी दानव के आतंक से मुक्त होना चाहती है। अमेरिका द्वारा आतंकवाद को समाप्त करने की जो पहल है वो सराहनीय है, लेकिन अमरिका का उद्देश्य क्या विश्व के अनेक भागों मे व्याप्त प्रत्येक आतंकवाद को समाप्त करना है? या फिर वो केवल उन्ही आतंकी संगठनों को खत्म करने की सोच रखता है जिससे केवल उसे खतरा है? आज के समय मे आतंकवाद रूपी दानव को जड से समाप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को आगे आने की विशेष आवश्यकता है।

अगर हमे अपने स्तर से इसे रोकने के लिए आगे बढना है तो फिर हमे राष्ट्र के नागरिकों को अपने राष्ट्र के प्रति राष्ट्रीयता की भावना पैदा करने वाली शिक्षा प्रदान करने पर विचार करना पडेगा। साथ ही साथ मानवाधिकारों के हनन पर रोक लगाने की ओर भी समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है। इससे आने वाले समय मे आतंकवादियों के निर्बल संगठनों को नया रक्त नही मिल पाएगा, जो उन्हे ध्वस्त करने की सबसे बडी रणनीति साबित हो सकती है। साथ ही साथ हमारे देश की सेना को भी आम जनता के साथ मानवीयता का व्यवहार रखने तथा क्षेत्रीय असमानता को दूर करने का प्रयास करना पडेगा। बेरोजगारी गरीबी की जननी है तथा गरीबी ही आतंकवाद का पथ-प्रदर्शक बनती है। ऐसे मे रोजगार के अवसर प्रदान करना या फिर बेरोजगारी भत्ता देने की पहल करना हमारी सरकार के लिए एक सफल प्रयोग हो सकता है।

जिस प्रकार 18वीं-19वीं सदी मे साम्राज्यवाद-उपनिवेशवाद के विस्तार के लिए, और 20वीं सदी साम्राज्यवाद-उपनिवेशवाद की चरम परिणति और उनकी समाप्ति एवं शीतयुद्ध के लिए जानी जाती है, उसी प्रकार 21वीं सदी आतंकवाद की चरम परिणति और विश्व शांति के लिए जानी जाएगी। ये उम्मीद की जा सकती है कि 21वीं सदी मे आतंकवाद का समूल नाश हो जाएगा और मानव सभ्यता भयविहीन वातावरण मे स्वयं को मुक्त अनुभव करेगी। बस दुनिया के सभी देशों को इसके लिए सार्थक पहल करने की आवश्यकता है। आने वाला समय निश्चित रूप से आतंकवाद रूपी अमर बेल के जड का समाप्त कर देने वाला होगा।  

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