राष्ट्रीय (30/04/2013) 
प्राथमिकता के आधार पर लैन्टाना हटायेगा वन विभाग
लैन्टाना एक विदेशी हानिकारक खर-पतवार है जिसके कारण वर्तमान में शिवालिक पहाडि़यों की लगभग 185000 हैक्टेयर वन भूमि प्रभावित हो रही है। इस खरपतवार के कारण न केवल वन सम्पदा को नुक्सान पहुंच रहा है बल्कि भूमि की उपजाऊ शक्ति भी प्रभावित हो रही है, जिससे लोगों की आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। प्रदेश सरकार ने इस गंभीर समस्या का संज्ञान लेते हुये वन विभाग को निर्देश दिये हैं कि प्रभावित क्षेत्रों से प्राथमिकता के आधार पर खरपतवार को हटाया जाये ताकि भूमि की उपजाऊ शक्ति को यथावत रखते हुये लोगों की आजीविका के साधनों में वृद्धि की जा सके।
प्रदेश के विशेषकर निचले क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि तथा वन क्षेत्रों को लैन्टाना के कारण होने वाले नुक्सान को देखते हुये वन विभाग ने 5000 हैक्टेयर प्रभावित भूमि पर ऐसे फलदार एवं अन्य पौधों की किस्में लगाने का निर्णय लिया है जो पर्यावरण मित्र हों। प्रदेश सरकार ने वृहद स्तर पर औषधीय एवं चैड़ी पत्ती वाले  वृक्ष लगाने का निर्णय भी लिया है ताकि क्षेत्रवासियों को भोजन, चारा एवं र्इंधन प्राप्त हो सके और इनसे गुज्जर तथा गद्दी घुमन्तु जनजातियां भी लाभान्वित हो सकें।
वन विभाग ने भारतीय प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबन्धन एवं योजना प्राधिकरण (कैंम्पा), केन्द्र सरकार के ग्रीन इंडिया मिशन तथा आंशिक रूप से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज+गार गांरटी अधिनियम (मनरेगा) के अन्तर्गत लगातार फैलती जा रही लैन्टाना से ग्रसित भूमि के उपचार का निर्णय लिया है। इस कार्य में सहभागी वन प्रबन्धन समितियां, जिनमें स्थानीय लोग शामिल हैं का सहयोग भी लिया जायेगा। वर्तमान प्रदेश सरकार लोगों को वन एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने पर बल दे रही है। इस वर्ष 2000 हैक्टेयर गैर कृषि भूमि को वनों के अधीन लाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है।
प्रदेश के कुल 55673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 37033 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल अर्थात 66.52 प्रतिशत को वनों के अधीन चिन्हित किया गया है। भारतीय वन सर्वेक्षण की वर्ष 2011 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश का 3224 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल सघन वन क्षेत्र, 6381 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल हल्के सघन वन क्षेत्र तथा 5074 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल खुले वनों के अधीन है। शेष क्षेत्र में झाडि़यां तथा बंजर भूमि इत्यादि शामिल हैं।
वर्ष 2011-12 तक पौधरोपण के माध्यम से 10385 वर्ग किलोमीटर अतिरिक्त क्षेत्रफल को वनों के अधीन लाया गया है। वन विभाग के सघन प्रयासों से प्रदेश में हरित आवरण में वृद्धि हुई है। वर्ष 1991 में प्रदेश का वन आवरण 11780 वर्ग किलोमीटर था, जो वर्ष 2011 में बढ़कर 14679 वर्ग किलोमीटर हो गया। इस प्रकार प्रदेश के वन आवरण में 2899 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई। भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009 से प्रदेश के वन आवरण में 11 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई है।
विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत लगभग 3000 हैक्टैयर वन क्षेत्र पर मिट्टी एवं जल संरक्षण उपचार भी सुनिश्चित बनाया गया है। अगले पांच वर्षों में 15000 हैक्टेयर वन भूमि का उपचार किये जाने की योजना है।
प्रदेश की बहुमूल्य वन सम्पदा के संरक्षण के लिये राज्य सरकार द्वारा राज्य वन नीति-2005 के दिशा-निर्देश अपनाये गये हैं। 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत वन आवरण बढ़ाने, प्रतिपूरक पौधरोपण करने तथा स्थानीय लोगों की सहभागिता से उचित मानकों के आधार पर पौधरोपण करने का निर्णय लिया गया है। नीति के अन्तर्गत लैन्टाना जैसी खरपतवार के उन्मूलन के लिये समुचित योजना बनाई गई है।
वन सम्पदा के संरक्षण के दृष्टिगत प्रदेश सरकार ने वन रक्षकों के 205 पद भरने का निर्णय लिया है तथा वर्ष 2013-14 में वन विभाग के लिये 422 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस धन राशि में से 132.32 करोड़ रुपये वन एवं वन्य जीव संरक्षण के लिये निर्धारित किये गये हैं जोकि गत वर्ष की तुलना में 5 करोड़ रुपये अधिक हैं। 
वर्तमान प्रदेश सरकार प्राकृतिक संसाधनों के सत्त प्रबन्धन, संरक्षित वन्य क्षेत्र के बाहर एवं पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में वन्य जीव संरक्षण तथा संरक्षित वन्य क्षेत्र के बाहर मनुष्य एवं वन्य जीवों के सम्पर्क को सीमित करने के प्रबन्धन के लिये आवश्यक कदम उठा रही है। राज्य सरकार के सत्त प्रयासों के कारण माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने वन्य अभ्यारण्यों से बाहर किये जाने वाले प्रस्तावित क्षेत्रों को अनुसूचित करने का निर्णय लिया है। इस निर्णय के अनुसार 775 गांव संरक्षित वन्य क्षेत्र से बाहर किये जांयेगे, जिससे एक लाख से अधिक जनसंख्या लाभान्वित होगी।
इसके अतिरिक्त 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत वन आवरण में वृद्धि एवं संरक्षण के लिये नीतियों की संस्तुति करने के लिये एक कार्यकारी समिति भी गठित की गई है। अगले पांच वर्षों में लगभग 80,000 हैक्टेयर क्षेत्र में पौधरोपण किया जायेगा। वन विभाग ने इस वित्त वर्ष में 45 लाख औषधीय पौधे लगाने का निर्णय भी लिया है। विभाग ने प्रशिक्षण एवं क्षमता स्तरोन्यन तथा जलागम क्षेत्रों में बायो-इंजीनियरिंग उपाय लागू करने के लिये नीति तैयार की है। इसके अतिरिक्त पौधरोपण के क्षेत्र में निजी क्षेत्र का सहयोग लेने और झाड़ी युक्त क्षेत्रों में पुनः पौधरोपण करने का निर्णय भी लिया गया है ताकि प्रदेश के हरित आवरण में और वृद्धि की जा सके ।
    

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