राष्ट्रीय (10/06/2013) 
सट्टा और सत्ता

सट्टा और सत्ता...जरा गौर से इन शब्दों को समझने की कोशिश करें तो आपको प्रतीत होगा की जिसकी जुबान में थोड़ी तुतलाहट होगी उसके लिए सट्टा और सत्ता के उचारण में कोई ख़ास अंतर नहीं होनी चाहिए। हमारे देश में जहाँ लोगो को मताधिकार का प्रयोग करने के लिए जागरूक करना पड़ता है और आजादी के ६५ वर्ष बाद आज भी 74% शिक्षित भारतीय में से औसतन 60 % ही मतदान करते है। लेकिन बात जब क्रिकेट की आती है तो यह हमारे देश में किसी जनसांख्यिकीय विशिष्टता की मोहताज नहीं है। भारत में लोगो को मताधिकार के प्रति संवेदनशीलता हो या न हो लेकिन क्रिकेट के सारे घटनाक्रम की जानकारी होती है।हमारे देश में क्रिकेट महज एक खेल नहीं है वल्कि सत्ता के गलियारे की वह रौशनी है जिससे राजनीतिज्ञों की सफलता की मापदंड तय की जाती है,अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बिगड़ते राजनितिक रिश्तो में क्षति नियंत्रण के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

मैं इन बातो का अपने आलेख में इसलिए जिक्र कर रहा हूँ की आज कल समूचा देश सट्टेबाजी पर चिल्ला रहा है,वह भी क्रिकेट के खेल की खेल जैसी मासूम सट्टेबाजी पर बेचारे और बहुत सीधे साधे दिखने-लगने वाले चेहरे बड़े दुर्दान्त अपराधियों और पापियों की तरह प्रस्तुत किये जा रहे हैं. राज कुंद्रा/गुरुनाथ मयप्पन से पुलिस पूछताछ कर चुकी है और उसके बाद BCCI ने उन्हें निलंबित भी कर दिया है और अब सटोरिये इस बात पर सट्टा लगा रहे होंगे कि उसकी गिरफ्तारी होगी या नहीं! क्रिकेट में सट्टेबाजी एक गुनाह है लेकिन BCCI द्वारा अनुबंधित खिलाड़िओं की बोली लगाकर मालिकाना हक हासिल किया जा सकता है मतलब BCCI अपनी छत्रछाया में एक खिलाडी को एक से ज्यादा बार SALE में लगा सकता है तो कोई गलत बात नहीं है और यह क़ानूनी रूप से वैध भी है...हो भी क्यों न भारतीय टैक्स प्रणाली में भी तो एक ही प्रोडक्ट पर कई बार टैक्स वसूला जाता है फिर BCCI इसमें क्यों चुके? अगर अनुबंधित खिलाड़िओं को भी कई बार SALE पर लगाया जा सकता है तो फिर सट्टेबाजी कैसे एक अपराध हो सकता है?

जिस देश की पूरी अर्थव्यवस्था सट्टेबाजी के इर्द गिर्द घूम रही हो,राजनीति सट्टेबाजी की शरण में हो,समूचा धर्मतंत्र सट्टेबाजी कर रहा हो,वहां सिर्फ क्रिकेट के सट्टे पर विलाप करना सचमुच आश्चर्यचकित करता है। अर्थशास्त्र के महाराजो की बात छोड़ दीजिए, जब बड़ी-बड़ी मालदार कंपनियां ग्राहकों को अपना माल खरीदने के लिए बहलाती-फुसलाती है, अपने शेयरों में निवेश के लिए ऊंचे-ऊंचे बुर्ज खलीफा निवेशकों के आगे बनाती हैं और अर्थ विशेषज्ञ इसमें पैसा निवेश की सलाह देते नजर आते हैं, तब आदमी को किस चीज के लिए उकसाया जाता है. ये लोग भी तो वही करते हैं, जो सट्टेबाज करते हैं-आओ, यहां पैसा लगाओ और रातोरात मालामाल हो जाओ!

अब जरा सट्टा से हट सत्ता में इसका प्रभाव देखते है। किसी भी चुनाव में राजनीतिक दलों के घोषणापत्र और उनके नेतागण जो बड़े-बड़े वादे करते हैं, लोगों को मनचाहा भविष्य देने की शेरशाह शूरी मार्ग जैसी लम्बी घोषणाएं करते हैं, जनता को अपने पक्ष में लाने के लिए हजार तरह के झूठे-सच्चे प्रलोभन देते हैं, वह सब क्या है? चुनाव हो जाते हैं,सरकारें बदल जाती हैं,लेकिन जनता की स्थिति यथावत बनी रहती है- आम जनता के साथ यह ठगी सीधे-सीधे सट्टेबाजी नहीं तो और क्या है? यह सट्टेबाजी भ्रष्टाचार का एक रंगीन अधोवस्त्र है जो सिर्फ दिखाने से दीखता है और अगर दिखाया नहीं गया तो यह भ्रष्टाचार की खुबसूरती में स्क्रैच कार्ड की तरह कार्य करता है।

अगर वाकई में सट्टा और सत्ता भ्रष्टाचार का रंगीन अधोवस्त्र है तो इस पर नैतिकता या कनफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट को दोषी ठहराने के वजाए सट्टा को क़ानूनी रूप से व्यस्क घोषित करना होगा ताकि सट्टा सार्वजानिक अधोवस्त्र हो और इसका इस्तेमाल आधिकारिक तौर पर हर खास ओ आम कर सके। क़ानूनी अमली जामा पहनने के बाद यह अधोवस्त्र(यानी सट्टा) नैतिक भी होगा एवं सरकारी खजाने की शोभा भी बढ़ाएगा :)

 

Copyright @ 2019.