राष्ट्रीय (13/07/2014) 
असली सुन्दरता यही है
प्रकृति की तमाम चीजें सुंदर हैं। दोष तो सिर्फ मानव की नजरों का है कि किसी चीज को वह सुंदर ढंग से देखता है, किसी को असुंदर ढंग से। दूसरे लहजे में यह कहा जा सकता है कि दुनिया में कोई भी व्यक्ति साधारण या अनाकर्षक नहीं है।
हर व्यक्ति अपने आप में एक चमत्कार है। यह अलग बात है कि लोग सुन्दरता को अपने-अपने ढंग से परिभाषित करते हैं।
अब प्रश्न उठता है कि औरत के चेहरे को कौन-सी चीज सुन्दर बनाती है। कौन-सा गुण है जो उसे ट्रॉय की हेलन बना देता है जिस कारण जंग लड़ी जाती है।
कलाकारों ने तो सदियों से इस सवाल से रूबरू होने का प्रयास किया है।
इधर वैज्ञानिक भी इस सवाल से रू-बरू होने का प्रयास करने लगे हैं।
विश्व प्रसिद्ध सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक डेविड पैरेट और उनके सहयोगियों का मत है कि सौंदर्य का आधार, पहचान और समझ मूलतः शरीर से होती है।
पैरेट स्पष्ट कहते हैं कि शरीर के कुछ अंग जैसे आंखें, उन्नत उरोज, रंग-रूप, होंठ, केश आदि सौंदर्य के मुख्य आधार होते हैं
इनकी प्रकृति अगर सुंदर हुई तो ज्यादातर लोगों को ऐसी स्त्री सुंदर प्रतीत होगी।
अनुसंधानकर्ताओं का सुनिश्चित मत है कि आंखों को चेहरे की सुंदरता को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता।
एक बिन्दु पर पहुंचकर वह सार्वभौम स्वरूप शामिल कर लेती है लेकिन अभी भी वास्तविकता कुछ और है। अंततोगत्वा लोगों को यथार्थ के धरातल पर आना ही पड़ता है। सिर्फ गोरा रंग और तीखे नयन नक्श ही सौंदर्य की वास्तविक परिभाषा का आधार नहीं हो सकते।
आकर्षक व्यक्तित्व का राज मोती की तरह सीप में छिपा रहता है और सौंदर्य की आभा अंदर से ही फूटती है। सौंदर्य का बीज अपने अंदर है तो उसकी झलक आपकी त्वचा से ही मिल जायेगी।
बहरहाल, वह व्यक्ति ही वास्तव में सुन्दर है जिसके चेहरे से अंदरूनी शांति और खुशी झलके। ये दोनों चीजें बनावटी नहीं हो सकती।
इन्हें तो खुद के भीतर पैदा करना पड़ता है। सौंदर्य सिर्फ शरीर से ही नहीं बल्कि मस्तिष्क से भी झलकता है। सूरत कुछ है तो सीरत बहुत कुछ है।
 संजय कुमार चतुर्वेदी(अदिति)

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