राष्ट्रीय (17/08/2014) 
जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर अधिक ध्‍यान देने की आवश्‍यकता

बेसिक देशों यानी ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन के मंत्रियों की 18वीं बैठक  हाल ही में नई दिल्‍ली में संपन्‍न हुई। आगामी 23 सितम्‍बर को होने जा रहे सयुक्‍त राष्‍ट्र जलवायु सम्‍मेलन से पहले आयोजित की गयी इस बैठक में चार देशों के पर्यावरण मंत्रियों ने हिस्‍सा लिया। जलवायु सम्‍मेलन का आयोजन न्‍यूयार्क में संयुक्‍त राष्‍ट्र महासचिव बानकी मून द्वारा किया जाएगा। सम्‍मेलन का उद्देश्‍य जलवायु परिवर्तन संबंधी वार्ता, जो दिसम्‍बर में पेरू की राजधानी लीमा में आयोजित की जानी है, के लिए राजनीतिक माहौल तैयार करना है।

      नई दिल्‍ली में हुई बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि अब समय आ गया है कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दों के समाधान के लिए बेसिक देशों के साथ घनिष्‍ठ सहयोग करना चाहिए। इसमें कहा गया कि धनी देशों को वास्‍तव में प्रदूषण जन्‍य जलवायु परिवर्तन से निपटने में प्रमुख भूमिका अदा करनी चाहिए तथा 'ऐतिहासिक दायित्‍वों' को ध्‍यान में रखते हुए उपयुक्‍त कार्रवाई करनी चाहिए। भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का दुष्‍प्रभाव कम करने के लिए विकासशील देशों ने जो उपाय किए हैं, वे विकसित देशों की तुलना में अधिक ठोस हैं। अत: अब विकसित देशों का यह दायित्‍व है कि इस बारे में अपने वायदे पूरे करें।

      चीन के राष्‍ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग के उपाध्‍यक्ष शी जेनुहा ने इस बात की ओर ध्‍यान दिलाया कि विकासशील देश प्रदूषण कम करने की लागत का करीब 60 प्रतिशत योगदान कर रहे हैं, जिससे ग्रीन हाउस गैस उत्‍सर्जन में कमी आई है। भारत और अन्‍य देशों में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में हुई व्‍यापक प्रगति को भी इसका श्रेय दिया जा सकता है।

      यह दुर्भाग्‍य की बात है कि हमारे समक्ष धरती का तापमान बढ़ने के खतरे मुंह बाए खड़े हैं लेकिन इस दिशा में कुछ अधिक नहीं हो पा रहा है। प्राय: यह देखने में आया है कि सर्वाधिक वांछित उपायों के बारे में विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद सामने आते हैं।

      उदाहरण के लिए पर्यावरण के क्षेत्र में सभी प्रयासों का केन्‍द्र बिंदु समझा जाने वाला क्‍योटो समझौता और परवर्ती वार्ताओं ने विकसित देशों पर यह दायित्‍व डाला है कि वे विकासशील देशों को पर्याप्‍त वित्‍तीय, तकनीकी और क्षमता निर्माण संबंधी सहायता उपलब्‍ध कराएं ताकि वे उपशमन प्रयासों को लागू कर सकें। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बाद में जारी संयुक्‍त वक्‍तव्‍य में इस बात पर निराशा प्रकट की गयी कि 2020 तक विकसित देशों द्वारा सौ अरब अमरीकी डॉलर उपलब्‍ध कराने के बारे में कोई स्‍पष्‍ट रूपरेखा तैयार नहीं की गयी। विकसित देशों से निरंतर अपील की जाती रही है कि वे विकासशील देशों को उपयुक्‍त मात्रा में, विशिष्‍ट और विश्‍वसनीय ढंग से नवीन, अतिरिक्‍त और भरोसमंद  वित्‍तीय सहायता मुहैया कराने के अपने दायित्‍व का पालन करें।

      इस पृष्‍ठ भूमि में बेसिक देशों की नई दिल्‍ली में बैठक हुई, जिसमें विकसित देशों से कहा गया कि वे ग्रीन क्‍लाइमेट फंड (जीसीएफ) यानी हरित जलवायु कोष के लिए शीघ्र और पर्याप्‍त पूंजी की व्‍यवस्‍था करें। बैठक में इस बात पर भी जोर दिया गया कि सभी पक्ष राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अंशदान करने की अपनी इच्‍छा से यथा शीघ्र अवगत कराएं।

      जलवायु परिवर्तन की पहचान स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति भी इस सदी के सबसे बड़े खतरे के रूप में की गयी है। इसे देखते हुए यह जरूरी है कि विश्‍व के राष्‍ट्र यथा शीघ्र मिलकर इससे संबंधित मुद्दों का समाधान करें। इस चुनौती से निपटने के लिए शीघ्र कदम उठाने की आवश्‍यकता है।

      यह स्‍वाभाविक है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक नुकसान विकासशील देशों को उठाना पड रहा है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि‍विकसित राष्‍ट्र अपनी जिम्‍मेदारी से पीछे हटें। चूंकि जलवायु परिवर्तन का स्‍वरूप वैश्विक है, अत: इसके समाधान के उपाय भी वैि‍श्‍वक होने चाहिए।

      सौभाग्‍य से चार देशों का यह समूह (बेसिक) इतना शक्तिशाली है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र समझौते के अंतर्गत विकासशील देशों पर अनुचित ढंग से कुछ भी थोपने के विकसित देशों के किसी भी प्रयास का जवाब दे सकता है।

      दो दिन की बैठक के बाद जारी संयुक्‍त वक्‍तव्‍य में इस समूह ने अपने इस दृष्टिकोण की पुष्टि की कि संयुक्‍त राष्‍ट्र समझौते के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन के बारे में होने वाले किसी भी समझौते में समान और साझा लेकिन भिन्‍न दायित्‍वों के सिद्धांत का अनुपालन अवश्‍य किया जाए।

      मंत्रियों ने यह बात दोहराई कि लीमा में होने वाली बातचीत में उठाए जाने के लिए 6 मुख्‍य तत्‍वों की पहचान की गयी है, जिनका समाधान 'संतुलित और व्‍यापक ढंग से' तथा 'पारदर्शी, समावेशी, पक्ष-संचालित और सहमति-निर्माणप्रक्रिया' के जरिए अवश्‍य किया जाना चाहिए।

      बैठक में इस तथ्‍य को उजागर किया गया और उस पर चिंता प्रकट की गयी कि 2020 से पूर्व के लक्ष्‍यों में अंतराल न केवल उपशमन को लेकर है, बल्कि विकासशील देशों के लिए अनुकूलन, वित्‍त व्‍यवस्‍था, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण में सहायता की दृष्टि से भी है। उन्‍होंने यह बात दोहराई कि प्रदूषण दूर करने के प्रयासों में विकासशील देशों का योगदान विकसित देशों के योगदान से कहीं अधिक है और यदि विकसित देश विकासशील देशों को धन, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता का कारगर ढंग से पालन करें तो विकासशील देश अधिक बड़ी भूमिका इस दिशा में अदा कर सकते हैं।

      मंत्रियों ने बाली प्रक्रिया में स्‍थापित संस्‍थानों को पूरी तरह चालू करने और उनके बीच समन्‍वय की आवश्‍यकता पर बल दिया, जिनमें ग्रीन क्‍लाइमेट फंड, वित्‍त संबंधी स्‍थायी समिति, प्रौद्योगिकी संबंधी कार्यकारी समिति, जलवायु प्रौद्योगिकी केन्‍द्र और नेटवर्क तथा अनुकूलन समिति शामिल हैं।

      उम्‍मीद की जा सकती है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र जलवायु सम्‍मेलन की इस महीने के अंत में होने वाली अगले दौर की बातचीत विकासशील देशों की चिंताओं को ध्‍यान में रखते हुए अधिक कारगर होगी। बेसिक मंत्रियों की अगली बैठक अक्‍टूबर में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित की जाएगी।
अशोक हांडू*

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