दिल्ली, 17 नवंबर: दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय में आयोजित ‘साहित्यकार से मुलाकात’ कार्यक्रम में प्रतिष्ठित लेखक, कवि और नाटककार श्री शेखर पवार ने दलित साहित्य की दिशा और दशा पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम का आयोजन अंतरराष्ट्रीय अंबेडकरवादी लेखक संघ (दिल्ली विश्वविद्यालय शाखा) द्वारा किया गया।
श्री पवार ने कहा कि आज का दलित साहित्य सामाजिक दायित्व से दूर होता जा रहा है और सुविधाभोगी मानसिकता में जी रहा है। उन्होंने मराठी दलित साहित्य को जमीनी सच्चाई से जुड़ा बताते हुए कहा कि अन्य भाषाओं में दलित साहित्य पर इसका गहरा प्रभाव है। उन्होंने दलित साहित्यकारों से अपील की कि वे समाज के बीच जाकर वास्तविक समस्याओं को समझें और उन्हें अपनी रचनाओं में प्रस्तुत करें।
कार्यक्रम में प्रो. हंसराज सुमन ने दलित साहित्य में बदलाव और इसकी चुनौतियों पर चर्चा की। श्री पवार ने कहा कि दलित साहित्य केवल लेखन नहीं बल्कि एक आंदोलन है, जो समाज में बदलाव की ऊर्जा देता है। उन्होंने बौद्ध दर्शन, कबीर, ज्योतिबा फुले और बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों को अपनाने पर जोर दिया।
कार्यक्रम के अंत में प्रो. के.पी. सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर कई शोधार्थी और शिक्षक उपस्थित रहे।