विश्वविद्यालय स्तर की छात्र राजनीति और राष्ट्रीय राजनीति के बीच एक गहरा और जटिल संबंध है। यह केवल एक संयोग नहीं है कि कई प्रमुख राजनीतिक नेताओं ने अपने करियर की शुरुआत विश्वविद्यालय के परिसरों से की है। वास्तव में, विश्वविद्यालय स्तर की छात्र राजनीति अक्सर भविष्य की राष्ट्रीय राजनीति की प्रारंभिक नर्सरी होती हैं। यह न केवल भविष्य के नेताओं को प्रशिक्षित करने का एक मंच प्रदान करती है, बल्कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा और बहस के लिए एक महत्वपूर्ण मंच भी प्रदान करती है। इसीलिए छात्र राजनीति के दाव पेंच सीखने वाले अधिकांश छात्र नेताओं ने विश्वविद्यालय में प्रवेश लेकर छात्र संघ चुनाव जीतकर अपनी केंद्रीय राजनीति में पहचान बनाई है । भारत के तमाम केन्द्रीय विश्वविद्यालय, राज्यों के विश्वविद्यालय, उनसे संबद्ध कॉलेजों में प्रति वर्ष छात्र-संघ के चुनाव होते हैं। इन चुनावों के मुद्दे छात्रों की समस्याओं से लेकर देश की विभिन्न समस्याओं से भी जुड़े होते हैं। इन चुनावों में राष्ट्रीय राजनीति पर भी बहस होती है। लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव की गूंज न केवल राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करती है बल्कि उसका असर आने वाले विधानसभा चुनावों पर भी पड़ता है । इस बार के छात्र संघ चुनाव के साथ हरियाणा में विधानसभा का चुनाव हो रहा है इसका कितना प्रभाव पड़ेगा यह तो 27 सितम्बर के बाद ही पता चलेगा ।
विश्वविद्यालय स्तर की छात्र राजनीति युवा छात्रों को नेतृत्व के गुण विकसित करने का एक अनूठा प्लेटफार्म प्रदान करती है। छात्र संघ के चुनावों में भाग लेना, विभिन्न मुद्दों पर अभियान चलाना, और अपने साथी छात्रों का प्रतिनिधित्व करना – ये सभी गतिविधियाँ छात्रों में नेतृत्व कौशल विकसित करने में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए — स्थानीय मुद्दों पर बोलने की क्षमता विकसित करना, पार्टी की कार्य योजना के अनुरूप विचारों को रखना, संगठन तैयार करने की क्षमता विकसित करना, प्रशासन तक अपनी मांग दृढ़ता से रखने की क्षमता विकसित करना, कार्य करने की रणनीति बनाने की क्षमता विकसित करना, कुशल प्रबंधन की क्षमता विकसित करना आदि ।
ये कौशल न केवल राजनीति में, बल्कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए अग्रणी भूमिका निभाने में महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, विश्वविद्यालय स्तर की छात्र राजनीति भविष्य के नेताओं को तैयार करने में मदद करती है, चाहे वे राजनीति में जाएं या किसी अन्य क्षेत्र में। छात्र राजनीति युवाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के बारे में विचार करने और जागरूक होने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह उन्हें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करने और उन पर कार्रवाई करने का एक ऐसा मंच प्रदान करती है जो भविष्य की केंद्रीय राजनीति में उनकी पहचान बना सके। इससे न केवल उनकी राजनीतिक समझ विकसित होती है बल्कि उन्हें सचेतन नागरिक बनने के लिए भी प्रेरित करती है। ध्यान देने वाली बात है, सन 1970 और 1980 के दशक में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों ने जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में “संपूर्ण क्रांति” आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। यह आंदोलन तत्कालीन सरकार की भ्रष्टाचार और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ़ व्यापक रूप ले लिया था। जिसके परिणामस्वरूप आपातकाल की घोषणा हुई और उसमें गैर कॉंग्रेस के छात्र संगठनों से जुड़े छात्रों की धरपकड़ हुई जिसमें बहुत से छात्र नेताओं और आंदोलनकारी शिक्षकों को जेल में डाल दिया गया था। लंबी जेल यात्रा से छूटने के बाद इनमें बहुत से राष्ट्रीय राजनीति में आ गए थे। विधानसभा और लोकसभा के चुनावों का इन्होंने नेतृत्व किया था। गैर कॉंग्रेस की सरकार में ये विधायक, सांसद और मंत्री भी बने।
विश्वविद्यालय परिसर विभिन्न विचारधाराओं और राजनीतिक दृष्टिकोणों के मिलन का मुख्य स्थान होता है। छात्र राजनीति इन विचारों के टकराव और बहस के लिए एक मंच प्रदान करती है। यह छात्रों को अपने विचारों को परिष्कृत करने, दूसरों के दृष्टिकोण को समझने और अपनी स्वयं की राजनीतिक समझ को विकसित करने में मदद करती है। उदाहरण के लिए, दिल्ली विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ( ABVP ), नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया ( NSUI ) , स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ( SFI ) व आम आदमी पार्टी के छात्र संगठन (CYSS) के अलावा बहुत से छात्र संगठन सक्रिय हैं, जो विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हीं छात्र संगठनों से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में बड़े मुकाम हासिल किए हैं। 1974 में डूसू अध्यक्ष रहे श्री अरुण जेटली एनडीए सरकार में कानून मंत्री बने, भाजपा महासचिव, उसके बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता, मोदी सरकार में वित्तमंत्री रहे। छात्र राजनीति से सफर तय करने वाले श्री विजय गोयल सन 1977-78 में डूसू अध्यक्ष रहे, भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। इसी तरह 1985 में डूसू अध्यक्ष रहे श्री अजय माकन, पूर्व केंद्रीय मंत्री व कॉंग्रेस महासचिव भी रहे हैं। महिला नेत्री अलका लांबा एनएसयूआई की पूर्व अध्यक्ष, 1995 में डूसू अध्यक्ष बन एक नया इतिहास बनाया और महिला अधिकारों के लिए सदैव लड़ाई में आगे रहीं, वर्तमान में कॉंग्रेस की नेता है। श्रीमती मीरा कुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रह चुकी हैं। इसी कड़ी में विहिप के आलोक कुमार, पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल, श्रीसुब्रमण्यम स्वामी, मोदी सरकार में मंत्री श्री हर्ष मल्होत्रा, मंत्री किरण रिजिजू , पूर्व केंद्रीय मंत्री हरदीप पूरी, पूर्व सांसद श्री जय प्रकाश अग्रवाल , पूर्व डूसू अध्यक्ष नूपुर शर्मा, श्री नवीन जिंदल, श्री राजेश लिलोटिया, 1997-98 में डूसू अध्यक्ष रहे श्री अनिल झा, भाजपा नेता व पूर्व विधानसभा सदस्य रहे हैं। पूर्व मंत्री मीनाक्षी लेखी, एनडीएमसी के उपाध्यक्ष,भाजपा दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष श्री सतीश उपाध्याय सन 1984-85 में सबसे कम उम्र के डूसू में उपाध्यक्ष रहे हैं। डूसू में सन 1982 – 83 में उपाध्यक्ष रहे व वर्तमान में विधायक श्री बिजेंद्र गुप्ता भी छात्र राजनीति से निकले हैं। हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय से दर्जनों नेता निकले हैं। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, पूर्व शिक्षामंत्री किरण वालिया, श्री अरविंदर सिंह लवली, विधानसभा अध्यक्ष श्री रामनिवास गोयल, पूर्व सांसद श्री सुशील गुप्ता, पूर्व विधायक श्री राजेश गर्ग, श्री अनिल भारद्वाज , श्री हरिशंकर गुप्ता , पूर्व केंद्रीय मंत्री कृष्णा तीरथ , भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री वीरेंद्र सचदेवा , श्री आशीष सूद , सुश्री आरती मेहरा , श्री अमित मलिक, श्री गौरव खारी , महेंद्र नागपाल आदि ने छात्र राजनीति में एक ऐसा मुकाम हासिल किया है। जो अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों को राजनीति में आने के लिए संसद व विधानसभा के दरवाजे खोल दिए गए ।
छात्र राजनीति देश की शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक और बेरोजगारी के मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विश्वविद्यालय के छात्र समाज के सबसे संवेदनशील और जागरूक वर्ग से आते हैं, और वे युवाओं से संबंधित मुद्दों पर आवाज उठाते हैं। उदाहरण के लिए, 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने महिला सुरक्षा और लैंगिक न्याय के मुद्दे पर व्यापक प्रदर्शन किए। इस मुद्दे ने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया और अंततः महिला सुरक्षा कानून में बदलाव लाने में मदद की। अधिकांश प्रमुख राजनीतिक दलों के अपने छात्र संगठन हैं जो विश्वविद्यालय परिसरों में सालभर सक्रिय रहते हैं। ये संगठन न केवल अपने मूल राजनीतिक दलों के विचारों और नीतियों का प्रचार करते हैं, बल्कि भविष्य के नेताओं को भी तैयार करते हैं। कई राष्ट्रीय नेताओं ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत इन्हीं छात्र संगठनों से की है। बाद में उन्होंने विचारधारा के अनुसार पार्टी ज्वाइन कर ली । पार्टी ने उनकी योग्यता व कार्यो को देखते हुए चुनाव में टिकट दिया और आज वे जनता के बीच रहकर अपनी पहचान बना चुके है, अब वे किसी परिचय के मोहताज नहीं है ?
विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाले छात्रों की शिक्षा के साथ- साथ राजनीतिक विचारधारा के निर्माण का भी समय होता है। यह वह समय है जब वे विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक सिद्धांतों से परिचित होते हैं, उन पर बहस करते हैं, और अपने स्वयं के विचारों को आकार देते हैं। ये विचार अक्सर उनके भविष्य के राजनीतिक करियर की नींव बनते हैं। विश्वविद्यालय स्तर की छात्र राजनीति में सक्रिय रहने से छात्रों को एक व्यापक नेटवर्क बनाने का अवसर मिलता है। वे अपने साथी छात्रों, शिक्षकों, और कभी-कभी स्थानीय या राष्ट्रीय नेताओं के संपर्क में आते हैं। ये संबंध उनके भविष्य के राजनीतिक करियर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विश्वविद्यालय स्तर की छात्र राजनीति अक्सर मीडिया का ध्यान आकर्षित करती है, विशेष रूप से जब यह बड़े मुद्दों या विवादों से जुड़ी होती है। इससे युवा नेताओं को राष्ट्रीय मंच पर पहचान मिलती है और उन्हें अपने विचारों को जनता तक पहुंचाने का अवसर मिलता है।
विश्वविद्यालय स्तर की छात्र राजनीति से उभरे नेता जब राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करते हैं तो वे अक्सर अपने विश्वविद्यालय के अनुभवों और वहाँ के विकसित दृष्टिकोण को साथ लाते हैं। यह राष्ट्रहित में नीति निर्माण को कई तरह से प्रभावित करता है। विश्वविद्यालय से निकले नेता अक्सर युवाओं से जुड़े मुद्दों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वे शिक्षा, रोजगार, डिजिटल प्रौद्योगिकी और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों को नवीन दृष्टिकोण से व्यवस्थित करने की सोच रखते हैं। विश्वविद्यालय स्तर की राजनीति से आए नेताओं की शैक्षणिक पृष्ठभूमि अक्सर उनके नीतिगत दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। वे अपने अनुभव और विशेषज्ञता से बेहतर परिवर्तन कर सकते हैं। देखने में आया है कि विश्वविद्यालय परिसरों में अक्सर सामाजिक न्याय, समान भागीदारी, अवसर की समानता के मुद्दों पर गहन चर्चा करते हैं। इससे प्रभावित नेता अक्सर इन जरूरी सामाजिक मूल्यों को राष्ट्रीय नीति निर्माण में लाते हैं। विश्वविद्यालय के माहौल में विकसित नवाचार की भावना अक्सर राष्ट्रीय नीतियों में परिलक्षित भी होती है। ये नेता पारंपरिक दृष्टिकोणों को चुनौती देने और नए मूल्यों, नयी विकसित स्थितियों को प्रस्तावित करने में सक्षम हो सकते हैं।
विश्वविद्यालय स्तर की छात्र राजनीति और राष्ट्रीय राजनीति के बीच बहुआयामी संबंध है। यह भविष्य के नेताओं को तैयार करने, महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने, और राष्ट्रीय नीति निर्माण को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। देश के विभिन्न विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थान इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये देश को कई प्रमुख नेता प्रदान करते हैं। हालांकि इसके नकारात्मक पक्ष भी होते हैं लेकिन राजनीति के प्रथम पायदान से लेकर देश की सक्रिय राजनीति तक इसका अपना महत्व है। यह शैक्षणिक उत्कृष्टता के साथ संतुलन, हिंसा की रोकथाम, और समावेशी राजनीति को बढ़ावा देती है। निश्चित रूप से विश्वविद्यालय स्तर की छात्र राजनीति एक महत्वपूर्ण प्रशिक्षण क्षेत्र है जो न केवल भविष्य के राज नेताओं को तैयार करता है, बल्कि एक जीवंत लोकतंत्र के लिए आवश्यक नागरिक जुड़ाव और राजनीतिक चेतना को भी बढ़ावा देता है। यह भारत जैसे विविधता भरे गतिशील लोकतंत्र के लिए विशेष महत्व रखता है, जहाँ युवा आबादी की आवाज और आकांक्षाएँ राष्ट्र के भविष्य को आकार देने में खास भूमिका निभाती हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है । यहाँ देश-विदेश से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आता हैं। यह न केवल उच्च शिक्षा का केंद्र है बल्कि यहाँ से हर साल लाखों छात्र डिग्री लेकर निकलते हैं। इनमें कुछ ऐसे भी छात्र है जिन्होंने राजनीति को अपना करियर बनाकर अपनी विचारधारा के अनुसार पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और राजनीति में आए। आज विधानसभाओं व संसद में दिल्ली विश्वविद्यालय के ये चेहरे नजर आ जाते हैं । हर साल सितम्बर के महीने में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) का चुनाव होता है। इस बार 27 सितम्बर 2024 को डूसू चुनाव होना निश्चित हुआ है। तमाम राजनीतिक पार्टियों के छात्र संगठनों के छात्र अपना भाग्य आजमा रहे हैं। अब देखना यह है कि अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारियों का ताज किसके सिर सजेगा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई), स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) व आम आदमी पार्टी (सीवाईएसएस) छात्र संगठनों के अलावा बहुत सी राजनीतिक पार्टियों के छात्र संगठन अपना उम्मीदवार खड़े किए हुए हैं। हालांकि मुद्दों की राजनीति पर अब चुनाव नहीं लड़े जाते हैं। वर्ष 2014 से पहले छात्र राजनीति अपने-अपने घोषणा पत्र व छात्रों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर चुनाव लड़ा करते थे। लेकिन आज राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दे तो दूर स्थानीय मुद्दे भी गायब हो गए । हालांकि एबीवीपी ने साल भर छात्रों के बीच रहकर उनके मुद्दों को न केवल उठाया बल्कि समाधान भी कराया । एबीवीपी ने पहली बार कॉलेज यूनिट में बहुजन समाज के नेताओं की जयंती , पुण्यतिथि व उन पर कार्यक्रम कर छात्रों को जागरूक किया । जाते- जाते संविधान निर्माता , बोधिसत्व बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी प्रतिमा लगाकर यह संदेश दिया कि बाबा साहेब सभी वर्गों के हैं । इनके द्वारा किए गए कार्यक्रमों में समरसता , समानता , बंधुत्व व भाईचारे की बात हुई । अन्य छात्र संगठनों ने भी छात्रों की समस्याओं को लेकर धरने-प्रदर्शन किए , साल भर सुर्खियों में भी रहे , पर उन्हें डूसू चुनाव में कितना लाभ मिलेगा यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे ?
( लेखक ,दिल्ली विश्वविद्यालय के अरबिंदो कॉलेज के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं )