तमिलनाडु के करूर ज़िले में हुई भीषण भगदड़ की दर्दनाक घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। एक राजनीतिक रैली के दौरान मची इस अफरातफरी में 41 निर्दोष लोगों की जान चली गई, जबकि सौ से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। इस मानवीय त्रासदी ने असंख्य परिवारों को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है और समाज को सुरक्षा व्यवस्थाओं की गंभीरता पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर दिया है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) ने इस घटना पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए तुरंत कार्रवाई की। संवैधानिक दायित्व के तहत अनुसूचित जाति समुदाय के अधिकारों की रक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने वाले आयोग ने घटना के तुरंत बाद स्थल का निरीक्षण किया। इस निरीक्षण का नेतृत्व आयोग के माननीय अध्यक्ष श्री किशोर मकवाना ने किया। उनके साथ डॉ. रविवर्मन (निदेशक, राज्य कार्यालय), डॉ. आर. स्टालिन (उप निदेशक, मुख्यालय, एपीसीआर प्रकोष्ठ), श्री लिस्टर (वरिष्ठ अन्वेषक) सहित ज़िले के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक भी मौजूद रहे।
माननीय अध्यक्ष ने सबसे पहले घटना स्थल का जायज़ा लिया और वहां की सुरक्षा व्यवस्थाओं और घटनाक्रम का विस्तृत मूल्यांकन किया। इसके बाद उन्होंने अनुसूचित जाति समुदाय के 15 पीड़ितों में से 12 मृतकों के परिवारों के घर जाकर शोक संवेदना व्यक्त की। इस दौरान उन्होंने घायलों का भी हालचाल लिया और आयोग की ओर से उन्हें हर संभव सहायता का भरोसा दिलाया।

श्री मकवाना ने कहा कि आयोग इस दुखद समय में पीड़ित परिवारों के साथ खड़ा है और यह सुनिश्चित करेगा कि उन्हें न्याय और सहायता दोनों मिलें। आयोग ने अधिकारियों से घटना की पूरी जांच में पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने पर जोर दिया। उन्होंने ज़िले के प्रशासन और पुलिस अधिकारियों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है, जिसमें भीड़ प्रबंधन, सुरक्षा इंतज़ाम, पुलिस बल की तैनाती, और आयोजन स्थल की स्वीकृति प्रक्रिया से जुड़ी जानकारियाँ शामिल होंगी।
आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि प्रत्येक मृतक के परिवार से एक पात्र सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए, जिससे उनके दीर्घकालिक आजीविका का संरक्षण हो सके। साथ ही केंद्र सरकार से अपील की गई है कि पीड़ित परिवारों को राहत राशि और आवश्यक सहायता जल्द से जल्द प्रदान की जाए।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की यह तत्पर और संवेदनशील पहल न केवल प्रशासनिक जिम्मेदारी का उदाहरण पेश करती है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि देश के किसी भी नागरिक की पीड़ा आयोग की नजरों से ओझल नहीं रहती। करूर की इस त्रासदी ने जहाँ पूरे देश को दुखी किया है, वहीं आयोग का यह कदम पीड़ितों के प्रति मानवीय संवेदना और न्याय की उम्मीद को मजबूत करता है।







