
उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने देश की न्यायिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 104 वर्षीय लखन लाल, जो पिछले 40 वर्षों से जेल में थे, उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आखिरकार बेकसूर करार देते हुए रिहा कर दिया है।
लखन लाल को वर्ष 1982 में अपने गांव के ही एक व्यक्ति प्रभु पासी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। यह हत्या 1977 में हुई थी, लेकिन लखन लाल ने हमेशा अपनी बेगुनाही का दावा किया। उन्होंने जिला अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन न्याय मिलने में चार दशक लग गए।
परिवार ने लखन लाल की रिहाई के लिए हर संभव प्रयास किए — सुप्रीम कोर्ट से लेकर मुख्यमंत्री, कानून मंत्री और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण तक — लेकिन न्याय की प्रक्रिया में देरी होती रही।
आख़िरकार, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव पूर्णिमा प्रांजल और विधिक सलाहकार अंकित मौर्य की पहल पर मामले को फिर से हाईकोर्ट में उठाया गया। इसके साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सीधे शिकायत भेजी गई। इन प्रयासों का नतीजा यह रहा कि कोर्ट ने लखन लाल की तत्काल रिहाई का आदेश दिया।
मंगलवार को जब लखन लाल ने जेल से बाहर कदम रखा, तो उनके परिवार वालों की आंखें नम थीं। उन्होंने खुशी-खुशी उनका स्वागत किया, लेकिन लंबी जुदाई ने गहरा असर छोड़ा — लखन लाल अपने कुछ परिजनों को पहचान भी नहीं सके। फिलहाल वह अपनी बेटी के पास रह रहे हैं और वर्षों बाद घर लौटने की राहत महसूस कर रहे हैं।
इस मामले ने एक बार फिर न्याय व्यवस्था में प्रक्रियात्मक देरी और प्रशासनिक लापरवाही की गंभीरता को उजागर किया है। यह सवाल अब गहराता जा रहा है कि क्या देर से मिला न्याय वास्तव में न्याय कहलाएगा?