सेण्ट स्टीफ़न्स कॉलेज के संस्कृत विभाग ने, IQAC के तत्वावधान में तथा संस्कृत साहित्य सभा के सहयोग से, 04 दिसंबर, 2024 को “मातृत्व और मातृ वात्सल्य: संस्कृत साहित्य में माता का अन्वेषण” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय शोध-संगोष्ठी का सफलतापूर्वक आयोजन किया। इस कार्यक्रम में गहन विचार-विमर्श, विचारोत्तेजक चर्चाएँ और देश भर के प्रतिष्ठित शिक्षाविदों और शोध विद्वानों की उपस्थिति हुई।
कार्यक्रम की शुरुआत विभाग के छात्रों द्वारा मंगलाचरण से हुई। अतिथियों के अभिनंदन के बाद डॉ. पंकज कुमार मिश्र के द्वारा विषय की व्याख्या प्रस्तुत की गई। उन्होंने मुख्य रूप से सेण्ट स्टीफ़न्स कॉलेज के संस्कृत विभाग के प्रसिद्ध व्यक्तित्वों में से एक, स्वर्गीय डॉ. हर्ष कुमार के बारे में बात की, जिनके जन्मदिन पर संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा था। डॉ. मिश्र ने संस्कृत साहित्य में माँ के प्रेम के चित्रण की न्यूनता पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारतीय विश्वदृष्टि के भीतर मातृत्व के तीन आदर्शों की पहचान की – जननी , धात्री एवं माता- और अपनी अंतर्दृष्टि का समर्थन करने के लिए पाठ्य संदर्भ प्रदान किए। उन्होंने मातृ प्रेम के विषय को विद्वानों की चर्चाओं में लाने के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “संस्कृत साहित्य में महिलाओं की प्रमुखता के बावजूद, माता का वात्सल्य अक्सर पृष्ठभूमि में रहा है।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. ओमनाथ बिमाली थे। इस अवसर पर प्रो. मीरा द्विवेदी, डॉ. अशुतोष दयाल माथुर, और कॉलेज के प्राचार्य प्रो. जॉन वर्गीस ने अपने विचार साझा किए। प्रो. वर्गीस ने कहा, “ईश्वर हर जगह नहीं हो सकते, इसलिए उन्होंने मां बनाई। अब समय आ गया है कि हम अपनी जड़ों की ओर लौटें और उन विषयों को उजागर करें जो अब तक छाया में रहे हैं।”
संगोष्ठी में देशभर के शोधार्थियों ने भाग लिया। 80 से अधिक प्राप्त शोध-पत्रों में से 18 को प्रस्तुति के लिए चुना गया। तीन सत्रों में विद्वानों ने संस्कृत साहित्य में मातृत्व के विभिन्न आयामों पर चर्चा की।
समापन सत्र में प्रो. भरतेन्दु पांडे ने मातृत्व की गहराइयों पर अपने विचार साझा किए। डॉ. नारायण दत्त मिश्रा, संपादक-वर्तावली (डीडी न्यूज़), ने इस विषय पर विशेष व्याख्यान दिया।
इस शोध – संगोष्ठी में लगभग 100 से अधिक प्रतिभागी और डॉ. चंद्रभूषण झा, डॉ. शमीम अहमद, डॉ. अभिषेक मिश्रा, डॉ. आशुतोष शुक्ला और डॉ. आदित्य प्रताप देव आदि सहित कई विद्वान शामिल थे।
सभी प्रतिभागियों को स्मृति चिह्न और प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। डॉ. मिश्र ने संगोष्ठी के शोध-पत्रों के आधार पर एक पुस्तक संकलित करने और प्रकाशित करने की योजना की घोषणा की, जिसका आगामी अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में विमोचन किया जाएगा।
यह संगोष्ठी संस्कृत साहित्य में मातृत्व के सूक्ष्म चित्रण को उजागर करने और इस महत्वपूर्ण विषय के साथ आगे विद्वानों की भागीदारी को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।