
राशिद हाशमी, सीनियर टीवी जर्नलिस्ट और प्रोफ़ेसर
अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले भारत के लिए काफी मुश्किल भरे साबित हो रहे हैं। विशेष रूप से ईरान में स्थित चाबहार पोर्ट पर लिए गए उनके निर्णय ने भारत को सकते में डाल दिया है। यह बंदरगाह भारत की रणनीतिक योजना का एक अहम हिस्सा था, जिससे पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत सीधे अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक अपनी पहुंच बना सकता था। ट्रंप प्रशासन द्वारा ईरान पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों ने इस परियोजना को संकट में डाल दिया, जिससे भारत की विदेश नीति और आर्थिक हितों को बड़ा झटका लगा। इस प्रतिबंध के कारण भारतीय कंपनियों को चाबहार में अपने निवेश पर पुनर्विचार करना पड़ा, जिससे इस क्षेत्र में भारत की उपस्थिति कमजोर पड़ सकती है।
इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन द्वारा प्रवासी नीति में किए गए बदलावों ने बड़ी संख्या में भारतीयों के डिपोर्टेशन का कारण बना। अमेरिका में रहकर काम करने वाले हजारों भारतीय, विशेष रूप से एच-1बी वीज़ा धारक, इस फैसले से प्रभावित हुए। भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका की भूमि असुरक्षित होती चली गई, जिससे न केवल भारत-अमेरिका व्यापार और तकनीकी साझेदारी पर असर पड़ा, बल्कि प्रवासी भारतीयों के योगदान से भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलने वाले लाभ में भी कटौती हुई। अमेरिकी आईटी और चिकित्सा क्षेत्रों में कार्यरत भारतीयों को इस बदलाव के कारण अपने भविष्य को लेकर गंभीर चिंताओं का सामना करना पड़ा। यह भी देखा गया कि कई भारतीय छात्रों को शिक्षा के अवसरों में कटौती का सामना करना पड़ा, जिससे अमेरिका में भारतीय समुदाय पर दबाव बढ़ा।
इन फैसलों की तुलना यदि बाइडेन प्रशासन की नीतियों से की जाए, तो स्पष्ट रूप से दोनों के दृष्टिकोण में भारी अंतर नजर आता है। जहां ट्रंप की नीतियां संरक्षणवाद और कठोर प्रवासी नीतियों पर केंद्रित थीं, वहीं जो बाइडेन ने भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को प्राथमिकता दी। बाइडेन प्रशासन ने न केवल भारतीयों के वीज़ा नियमों में राहत दी, बल्कि चाबहार पोर्ट परियोजना पर भारत के साथ बातचीत को भी सकारात्मक दिशा दी। इससे भारत को ईरान के साथ अपनी परियोजनाओं को फिर से गति देने का अवसर मिला। इसके अतिरिक्त, बाइडेन प्रशासन ने भारत के साथ वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया, जिससे डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इकोसिस्टम को बल मिला।
ट्रंप शासनकाल में भारत-अमेरिका व्यापार संबंध भी तनावपूर्ण रहे। भारत के लिए अमेरिका का विशेष व्यापार दर्जा (GSP) समाप्त करने और भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने से दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों में कटुता आई। दूसरी ओर, बाइडेन प्रशासन ने इस दिशा में अधिक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया और कई द्विपक्षीय व्यापारिक वार्ताओं में भारत को व्यापारिक छूट देने की संभावनाओं पर चर्चा की। भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों में भी बदलाव देखा गया। ट्रंप प्रशासन ने भारत को रणनीतिक साझेदार तो माना, लेकिन सैन्य आपूर्ति और तकनीकी हस्तांतरण में अनावश्यक देरी की। इसके विपरीत, बाइडेन प्रशासन ने रक्षा क्षेत्र में भारत के साथ कई समझौतों को गति दी, जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिली। हालांकि, ट्रंप और बाइडेन दोनों ही प्रशासन ने भारत को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार माना, लेकिन उनकी नीतियों में स्पष्ट अंतर रहा। ट्रंप के फैसलों ने भारत को कई बार असहज स्थिति में डाला, जबकि बाइडेन प्रशासन ने द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक स्थिरता देने की कोशिश की। बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य और तकनीकी साझेदारी में भारत के साथ सहयोग बढ़ाने का प्रयास किया, जिससे भारत को वैश्विक मंच पर अधिक समर्थन प्राप्त हुआ।
कुल मिलाकर, ट्रंप प्रशासन के फैसलों ने भारत की विदेश नीति और व्यापारिक हितों को कठिन चुनौतियों में डाल दिया था। चाबहार पोर्ट पर उनका निर्णय और भारतीयों का डिपोर्टेशन इस बात का प्रमाण था कि ट्रंप की नीतियां भारत के लिए अस्थिरता का कारण बनीं। वहीं, बाइडेन प्रशासन ने इन मुद्दों को संतुलित करने की कोशिश की, जिससे भारत-अमेरिका संबंधों को नई दिशा मिली। ट्रंप के संरक्षणवादी और राष्ट्रवादी एजेंडे के मुकाबले बाइडेन की समावेशी विदेश नीति ने भारत को अधिक सहयोग और स्थिरता प्रदान की, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती मिली और भविष्य में भारत-अमेरिका साझेदारी और मजबूत होने की संभावना बढ़ी।