
आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर राजधानी दिल्ली स्थित संविधान क्लब में एक ऐतिहासिक सम्मेलन का आयोजन हुआ, जहां लोकतंत्र सेनानियों और देशभर से जुटे समाजसेवियों ने एक स्वर में लोकतंत्र की रक्षा और आपातकाल पीड़ितों के सम्मान की पुरजोर मांग की। यह आयोजन संपूर्ण क्रांति राष्ट्रीय मंच और लोकनायक जयप्रकाश अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विकास केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।
सम्मेलन का उद्देश्य न केवल आपातकाल की विभीषिका को याद करना था, बल्कि उन सेनानियों के संघर्षों को रेखांकित करना भी था जिन्होंने उस अंधेरे दौर में देश को लोकतंत्र की राह पर बनाए रखने के लिए अपनी आजादी तक दांव पर लगा दी। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से उन सेनानियों को समान पेंशन और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान देने की मांग उठाई गई, जो आपातकाल के दौरान जेल गए थे। साथ ही, लोकनायक जयप्रकाश नारायण के योगदान को अमर करने के लिए उनके नाम पर एक अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय की स्थापना की आवश्यकता पर भी बल दिया गया।
सम्मेलन में पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया ने जयप्रकाश नारायण, नानाजी देशमुख जैसे लोकतंत्र के नायकों को “अमर दीप” की उपाधि देते हुए कहा कि “तानाशाही की रात कितनी भी लंबी हो, जनबल का सूर्य अंततः उगता ही है।” सुनील देवधर ने अपने बचपन के अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे उनके घर का तहखाना भूमिगत गतिविधियों का केंद्र बना और कहा कि “आपातकाल लोकतंत्र का अपहरण था, जिसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।”
पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल ने दिल्ली विश्वविद्यालय में चले छात्र आंदोलनों की यादें साझा करते हुए कहा कि वह दौर दूसरी आजादी की लड़ाई जैसा था। उन्होंने कहा कि आज जब संविधान दिवस मनाया जाता है, तो यह याद रखना जरूरी है कि सत्ता से ऊपर लोकतंत्र है। भारत रक्षा मंच के संयोजक सूर्याकांत केलकर ने लोकतंत्र सेनानियों की आज की उपेक्षित स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि उनके योगदान को सरकारी स्तर पर मान्यता मिलनी चाहिए।
पूर्व सांसद सूरज मंडल ने आपातकाल को संविधान पर हमला बताते हुए देश की जनता के प्रतिरोध को इतिहास का सुनहरा अध्याय बताया। वरिष्ठ पत्रकार सुधांशु रंजन ने प्रेस, न्यायपालिका और संसद पर आपातकाल के प्रभाव को उजागर करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को इस इतिहास से अवगत कराया जाना चाहिए। वहीं, अंशुमान जोशी ने उन गुमनाम सेनानियों की बात की, जिनकी कुर्बानियां आज भी अनदेखी रह गई हैं।
कार्यक्रम का समापन उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य सुधाकर सिंह ने किया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वाले हर सेनानी की कुर्बानी को इतिहास में उचित स्थान मिलना चाहिए।
सम्मेलन में यह भी मांग की गई कि 25 जून को ‘लोकतंत्र रक्षा दिवस’ के रूप में मान्यता दी जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को याद रहे कि लोकतंत्र किसी एक व्यक्ति की नहीं, पूरे देश की धरोहर है — जिसे बचाने के लिए हजारों लोगों ने संघर्ष किया।