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नई दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में 27 दिसंबर 2024 को आयोजित डॉ. शंकर दयाल सिंह व्याख्यानमाला 2024 में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा और परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद सरस्वती ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार और सांसद स्व. शंकर दयाल सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की।
श्री मनोज सिन्हा ने शंकर दयाल सिंह को संत साहित्यकार बताते हुए कहा कि वे सत्य और नैतिकता के प्रति पूर्ण समर्पित थे। उन्होंने 1975 की इमरजेंसी के दौरान अपनी किताब “इमरजेंसी: क्या सच, क्या झूठ” में निर्भीकता से अपनी अंतरात्मा की बात रखी। उनके लेखन ने कभी भी सत्य के सामने संबंधों को बाधा नहीं बनने दिया।
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने बताया कि स्व. शंकर दयाल सिंह का परिचय डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने कराया था। डॉ. सिंघवी की प्रेरणा से “हिंदू धर्म विश्वकोश” के निर्माण में शंकर दयाल सिंह ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वामी जी ने उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुए कहा कि उन्होंने ट्रेन यात्रा के दौरान अपनी अंतिम यात्रा शुरू की।
“हमारी जरूरतें और चाहतें” विषय पर बोलते हुए स्वामी चिदानंद ने कहा कि जीवन का असली आधार संचय नहीं, बल्कि संबंध हैं। उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा ने कहा कि आज के समय में विज्ञापन जगत हमारी चाहतों को जरूरतों के रूप में पेश कर रहा है और यह समाज के लिए चिंता का विषय है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. वर्तिका नंदा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रश्मि सिंह ने दिया। इस मौके पर साहित्य, राजनीति, संस्कृति और शिक्षा से जुड़े कई गणमान्य व्यक्तियों ने शिरकत की, जिनमें डॉ. संजय सिंह, संतोष भारतीय, और वीरेन्द्र कुमार सिंह जैसे नाम प्रमुख थे।
डॉ. शंकर दयाल सिंह साहित्य और राजनीति के बीच की कड़ी थे। उन्होंने चार दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं और हिंदी तथा गांधी विचारधारा के प्रति अपने समर्पण के लिए जाने जाते हैं। संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष के रूप में उनका योगदान अतुलनीय है। उन्होंने पटना में बीडी कॉलेज और मधुपुर में मधुस्थली आवासीय विद्यालय की स्थापना की।
1995 में उनके निधन के बाद उनकी स्मृति में हर साल यह व्याख्यान उनके जन्मदिन पर आयोजित किया जाता है। इस मंच पर पूर्व प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और कला, साहित्य, तथा राजनीति से जुड़े कई महानुभाव अपने विचार रख चुके हैं।
गत वर्ष केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने “सर्वधर्म समभाव और हमारा संविधान” पर व्याख्यान दिया था।
डॉ. शंकर दयाल सिंह की स्मृति में आयोजित यह व्याख्यानमाला न केवल उनके विचारों और कृतियों को जन-जन तक पहुंचाने का माध्यम है, बल्कि यह साहित्य, संस्कृति और राजनीति को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मंच भी है।